एक्यूट इन्सेफिलाइटिस सिंड्रोम : सिर्फ आंकड़ों में घटी हैं मौतें

Update:2019-06-28 13:28 IST

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: एक्यूट इन्सेफिलाइटिस सिंड्रोम की असली स्थिति सरकारी दावों से एकदम अलग है। सरकारी आंकड़ों में सिर्फ जिला अस्पतालों में होने वाली मौतों को ही दर्ज किया जा रहा है। निजी अस्पतालों और दूर-दराज की सीएचसी व पीएचसी के आंकड़े जारी नहीं हो पाते हैं। सरकारी आंकड़ों में भी सेंसरशिप की बात सामने आ रही है।

यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कहते है कि एईएस व जेई के केस में 58 फीसदी और मौत में 83 फीसदी की कमी आई है। दूसरी ओर एईएस और जेई के मामलों का हिसाब रखने वाली संस्था एनवीबीडीसीपी के आंकड़ों के अनुसार 2017 में यूपी में एईएस के 4724 केस और 621 मौतें हुईं। इसी तरह जेई के 693 केस और 93 मौतें रिपोर्ट हुईं। 2018 में एईस के 3080 केस व 230 मौत, जेई से 323 केस व 25 मौतें रिपोर्ट हुईं। एनवीबीडीसीपी के इस वर्ष 30 अप्रैल तक के आंकड़ों में उत्तर प्रदेश में इस वर्ष के शुरुआती चार महीनों में एईएस से 330 केस व एक मौत और जेई से 16 केस व कोई मौत नहीं दर्शायी गई है। लेकिन जमीनी हकीकत दूसरी है। विभिन्न इलाकों में अज्ञात बुखार, रहस्यमय बुखार, दिमागी बुखार से लोगों खास कर बच्चों की मौतों की खबरें आती रही हैं। बहराइच के ‘अज्ञात बुखार’ के सभी लक्षण सरकार द्वारा परिभाषित एईएस के दायरे में आते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

गोरखपुर में बिहार के जेई व एईएस मरीज

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में हर वर्ष बिहार के सैकड़ों मरीज भर्ती हो रहे हैं। वर्ष 2018 में यहां एईएस के 1073 मरीज भर्ती हुए जिसमें बिहार के 100 से ज्यादा थे। गोरखपुर मंडल के एडीशनल डायरेक्टर हेल्थ पुष्कार आंनद ने बताया कि पिछले दो वर्ष से केस और मौतों की संख्या में 60 फीसदी से अधिक की कमी आई है। ये केस इसलिए भी कम रहे हैं क्योंकि इस इलाके में बारिश कम हुई। जिस वर्ष बारिश ज्यादा होती है, उस वर्ष इसके केस भी बढ़ जाते हैं। प्रदेश सरकार के मुताबिक जेई व एईएस से प्रदेश की करीब 3079 बस्तियां प्रभावित है। बताया जाता है कि इन जानलेवा बीमारियों के फैलने का सबसे बड़ा स्रोत दूषित पेयजल है।

पूर्वांचल में इन्सेफलाइटिस की रोकथाम के लिए स्वयंसेवी संस्था श्मानव सेवा संस्थान सेवाय ने 2009-2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट की नोटिस पर सरकार ने कहा कि इलाज की सुविधाएं व दवाइयां सभी लेवल के अस्पतालों में उपलब्ध हैं। हर जगह 24 घंटे बच्चों वाले डॉक्टर उपलब्ध हैं जबकि सच्चाई यह है कि पीएचसी-सीएचसी तो दूर मेडिकल कालेजों में भी डाक्टरों की कमी है। यूपी सरकार के जवाब से असंतुष्ट मानव सेवा संस्थान सेवा ने 2013 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में मामले को उठाया। यूपी सरकार ने आयोग को रिपोर्ट दी, लेकिन आयोग ने इसे महज खानपूर्ति करार देते हुए दिसम्बर, 2014 में गैर जमानती वारंट जारी कर प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, महानिदेशक, स्वास्थ्य एवं निदेशक, इन्सेफलाइटिस को दिल्ली तलब कर लिया। उस समय भी सरकार ने जो रिपोर्ट दी उस पर आयोग सहमत नहीं हुआ और सरकार से बीमारी की रोकथाम पर कार्ययोजना मांगी, लेकिन सरकार रिपोर्ट नहीं पेश कर सकी। बाद में आयोग ने मानव सेवा संस्थान से रिपोर्ट मांगी और उसके आधार पर 11 अगस्त, 2017 को यूपी सरकार से जेई व एईएस पर रिपोर्ट मांगी। जवाब में सरकार ने बस इतना कहा कि इस पर ध्यान दिया जा रहा है।

Tags:    

Similar News