ये लोग हर साल अपना आशियाना तोड़ते हैं, जानिए आखिर क्यों करते हैं ऐसा

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में कुछ ऐसे लोग भी बसते हैं जो हर साल अपना आशियाना बनाकर उसमे रहते हैं और फिर एक वक्त ऐसा आता है जब वह उसे खुद अपने हाथों से तोड़ते हैं और दूसरी जगह बस जाते हैं।

Update:2020-02-07 21:56 IST

आसिफ अली

शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में कुछ ऐसे लोग भी बसते हैं जो हर साल अपना आशियाना बनाकर उसमे रहते हैं और फिर एक वक्त ऐसा आता है जब वह उसे खुद अपने हाथों से तोड़ते हैं और दूसरी जगह बस जाते हैं। भयंकर बाढ़ की डर के कारण ये परिवार अपने आशियाने को पक्का नहीं बनाता है। जब बाढ़ आती है तो इस जगह और रोड तक पर बाढ़ का पानी बह रहा होता हैं। सभी परिवार के पुरूष सिर्फ मजदूरी पेशा है। महिलाओं का कहना है कि वह पानी से बचने के लिए ही ऐसा करती हैं।

दरअसल ये बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र है। जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर थाना मिर्जापुर के जरियनपुर गांव है। ये लोग रोड के आसपास अपना आशियाना बनाते हैं। इनके पास अपने घर नहीं है। बेहद गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। शाहजहांपुर में करीब 40 परिवार ऐसे हैं जो हर साल कोलाघाट पुल से कुछ दूरी पर रोड के किनारे कच्चे घर को बनाकर उसमे रहते हैं। कुछ माह में उनकी जिंदगी पटरी पर आती है, लेकिन तभी बाढ़ आने का समय हो जाता है। तब फिर ये लोग धीरे-धीरे अपनाई झोपड़ी को तोड़कर दूसरी जगह पर बनाकर लेते हैं। पिछले कई दशक से ये परिवार इसी तरह से अपनी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

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इन परिवारों के पास सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए राशन कार्ड तक नहीं थे, लेकिन दो साल पहले इनमें से कुछ परिवारों को राशन कार्ड मिल गए हैं। जिससे उनको कुछ राहत तो हो गई है। इनके घर के बच्चों को अब सही समय पर खाना भी मिल जाता है, लेकिन एक समय वह भी था कि इनके पास न रहने के लिए घर था और न ही खाने के लिए राशन था।

बीजेपी के कद्दावर नेता व कैबिनेट मिनिस्टर सुरेश कुमार खन्ना का क्षेत्र है। इनके अलावा यहां के सांसद भी बीजेपी की हैं। इससे पहले सपा सरकार में मंत्री राममूर्ति वर्मा रहे चुके हैं और बसपा सरकार में अवधेश वर्मा भी मंत्री रहे चुके हैं, लेकिन सभी नेता इन सबके पास सिर्फ वोट मांगने आते हैं, लेकिन जब जीत मिल जाती है, तो वह सभी वादे भूल जाते हैं। यही वजह है कि आज भी ये परिवार अपने आशियाने को बनाकर तोड़ देते हैं।

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हालांकि अगर भयंकर बाढ़ की बात करें तो करीब सन 2010 से पहले बरसात शुरू होने से पहले ही ये लोग पलायन कर जाते थे, लेकिन बाढ़ से बचने के लिए जिला प्रशासन द्वारा कुछ अच्छे काम भी किये गए। बड़े-बड़े बांध बनाए गए जिससे 2010 के बाद इस इलाके मे बाढ़ तो आती है लेकिन ज्यादा नुकसान नहीं होता है। हालांकि इन परिवारों को अपने घर को जरूरत पड़ने पर तोड़ना पड़ता है, क्योंकि इनको सबसे ज्यादा खतरा अपने बच्चों का होता है।

Newstrack.com की टीम जब इन परिवारों के पास पहुंची तो वह घबरा गए कि कहीं उनको यहां से हटा दिया जाएगा, लेकिन जब उनसे newstrack.com ने बात की और उनसे हर साल होने वाली दिक्कतों के बारे में बात की तो वहां की महिलाओं ने खुलकर अपनी दास्तान बताई। महिलाओं का कहना है कि सभी लोग बेहद गरीब है। किसी को दो साल पहले राशन कार्ड मिले तो कुछ लोगों को एक साल पहले आवास दिये गए हैं। लेकिन सभी परिवारों को सरकारी सहायता नहीं मिल पाई है।

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उनका कहना है कि हमारे घर के पुरूष सिर्फ मेनहत मजदूरी करके अपने परिवार पाल रहे हैं। कहीं कोई अच्छी उम्मीद नहीं दिखती है। बरसात आते ही एक-एक पल खतरे के साये में कटता है। यही कारण है कि जब इस रोड पर बाढ़ का पानी आता है तो यहां से हम लोग अपनी झोपड़ी को तोड़कर दूसरे स्थान पर बनाते हैं। जहां पर बाढ़ का पानी नहीं पहुचता है और जब बाढ़ का पानी चला जाता है। तब फिर से अपना आशियाना तोड़ते हैं और अपनी पुरानी जगह पर आकर बना लेते हैं।

आपको बता दें कि ये बाढ़ ग्रस्त इलाका इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर कोलाघाट पुल है। ये पुल दो नदियों के उपर बना है। यहां पर दो नदियों का मिलन हुआ है। रामगंगा और बहगुल नदी। दोनो नदियां पूरी साल शांत रहती हैं, लेकिन जब बरसात का समय आता है तो दोनो नदियों मे पानी छोड़े जाने के कारण विकराल रूप ले लेती हैं। इस कारण पानी रोड पर आने के बाद खेतों की ओर रूख करती है। उसके बाद वही पानी घरों मे घुसता है।

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