वाराणसी: पद्म अवॉर्डों से निहाल हुई काशी, तीन दिग्गजों को पदम् श्री सम्मान
खासतौर से कि तीनों नाम प्रशासन की ओर से भेजी गई सूची से इतर है। हालांकि अन्य श्रेणी के पुरस्कारों की सूची में अबकी बनारस का कोई नाम नहीं है।
वाराणसी: गणतंत्र दिवस पर जारी पद्म अवॉर्डों की सूची ने इस बार भी काशी को निहाल किया। शहर की तीन विभूतियों को यह सम्मान मिला है। इसमें बनारस के डोमराजा रहे जगदीश चौधरी को मरणोपरांत पद्म श्री दिया गया है। इसके अलावा काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल और विकासशील इंसान चंद्रशेखर सिंह का नाम भी पद्मश्री की सूची में है। इस लिहाज से अवार्ड देने में सरकार ने हर क्षेत्र का ख्याल रखा है।
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शेरवाली कोठी में जश्न का माहौल
खासतौर से कि तीनों नाम प्रशासन की ओर से भेजी गई सूची से इतर है। हालांकि अन्य श्रेणी के पुरस्कारों की सूची में अबकी बनारस का कोई नाम नहीं है। मरणोंप्रान्नत पद्मश्री के लिए चुने गए काशी डोमराजा परिवार के प्रतिनिधि रहे जगदीश चौधरी लोकसभा चुनाव में मोदी के प्रस्तावक भी रह चुके हैं।बीते लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने प्रस्तावक के रूप में मान दिया तो अब सरकार की ओर से उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री की घोषणा ने बनारस वालों के दिल को बाग बाग कर दिया। साथ ही मीरघाट स्थित शेरवाली कोठी के वैभव में एक और नगीना जुड़ गया है।जगदीश चौधरी का बीते 25 अगस्त को बीमारी के चलते निधन हो गया था।
उन्नतशील किसान हैं चंद्रशेखर सिंह
बनारस के विकासशील किसान चंद्रशेखर सिंह कृषि क्षेत्र से पद्मश्री के लिए चुने जाने के साथ ही देश भर के कृषकों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बनकर सामने आए हैं।खास बात यह है कि चंद्रशेखर के जीवन में प्रेरणास्रोत बनी महामना की बगिया।पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर पंजाब सिंह से लेकर राकेश भटनागर तक के कार्यकाल में उन्हें लगातार बीएचयू से प्रोत्साहन मिला। पद्मश्री के लिए प्रस्ताव भी बीएचयू के कुलपति प्रोफेसर राकेश भटनागर ने दिया था जिसका प्रोफ़ेसर पंजाब सिंह ने समर्थन किया। चंद्र शेखर ने शुरू से ही कृषि को हाईटेक बाजार से जोड़कर देखा।
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संस्कृत का किया सम्मान
मोदी सरकार ने एक तरफ काशी के डोमराजा और उन्नतशील किसान का सम्मान किया तो संस्कृत का भी मां बढ़ाया। केंद्र सरकार ने संस्कृत व्याकरण के प्रकांड विद्वान और काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल को पदम्श्री सम्मान से नवाज कर समाज को सन्देश देने की कोशिश की। इस मौके पर रामयत्न शुक्ल ने कहा कि संस्कृत के उत्थान से ही विश्व का कल्याण संभव है। ऐसे में देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को संस्कृत होने की जरूरत है। प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल वासुदेवानंद सरस्वती, स्वामी गुरु शरणानंद रामानंदाचार्य,स्वामी रामभद्राचार्य जैसे संतों को विद्यादान दे चुके हैं।
रिपोर्ट- आशुतोष सिंह
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