कालानमक की खुशबू से फिर महकी पूर्वांचल की तराई, किसानों की बढ़ी आय
सीएम योगी की कोशिशों से महात्मा बुद्ध की नगरी का महाप्रसाद 'कालानगर' की खुशबू अब दुनिया में फैल चुकी है। जिससे किसानों की आय भी बढ़ी है।
सीएम योगी आदित्यनाथ की कोशिशों से महात्मा बुद्ध की नगरी सिद्धार्थनगर का महाप्रसाद 'कालानगर' की खुशबू अब दुनिया में फैल चुकी है। पूर्वांचल के खेतों में 'कालानमक' की रोपाई शुरू हो चुकी है। जिससे किसानों की आय भी बढ़ी और धान की खेती को फिर से संजीवनी मिली है। इस बार काला नमक धान की नई प्रजाति "काला नमक किरन" की नर्सरी यहां पड़ चुकी है। सांभा धान की नर्सरी पहले डाली जा चुकी है, जिसकी रोपाई चंद दिनों बाद शुरू हो जायेगी। कालानमक चावल की ब्रॉडिंग होने से चावल की कीमत दो गुनी होकर 16 हजार रुपये प्रति कुंतल पहुंच गई है। जिससे किसानों का रुझान इस धान के प्रति बढ़ा है।
इस बार पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में तकरीबन 50 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कालानमक धान की रोपाई के लिए नर्सरी डालने का सिलसिला जारी है। यह सब कुछ यूं नहीं हुआ बल्कि एक जिला एक उत्पाद योजना में सिद्धार्थनगर के कालानमक को शामिल कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जीआईटैग धारी कालानमक की ब्रांडिंग एवं मार्केटिंग की रणनीति पर जोर दिया। जिसका परिणाम पिछले दो वर्षों से दिखाई दे रहा है। पिछले खरीफ सीजन में तकरीबन 45 हजार हेक्टेयर में किसानों ने कालानमक धान की खेती की गई थी। काला नमक में भरपूर खुशबू तभी आती है। जब धान की बाली आते समय मौसम ठंडा हो, जिससे इसकी खुशबू सेट हो जाय। जलवायु परिवर्तन के कारण अब ऐसा करना पड़ता है, क्योंकि ठंडक अब देर से आता है।
पूर्वांचल के बस्ती जिले के रहने वाले अंतर्रष्ट्रीय कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर राम चेत चौधरी ने इस पर रिसर्च किया है। उन्होंने बताया काला नमक धान के पौधे की लम्बाई 95 सेंटीमीटर तक ले आये। इससे उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं हुई है और पैदावार पारम्परिक काला नमक से दूनी हो गयी है। इस बौनी प्रजाति को "काला नमक किरन" कहा जाता है। डॉक्टर राम चेत चौधरी कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से सिद्धार्थनगर के किसान अब काला नमक की खेती के तरफ पुनः मुड़ गये हैं। अब व्यापारी गांव से काला नमक धान खरीद रहे हैं। इस वर्ष इसका निर्यात कई देशों को किया गया।
600 साल पुराना है इसका इतिहास
कालानमक की खेती सिद्धार्थनगर जिले में की जाती थी। मान्यता है कि चावल की इस प्रजाति का इतिहास ईसा से 600 वर्ष पूर्व, भगवान बुद्ध के समय का है। कालानमक चावल की कई प्रजातियां विकसित करने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ रामचेत चौधरी कहते हैं कि अनुसंधान न होने से इस चावल की उत्पादकता के साथ ही स्वाद-सुगंध कम होने लगी थी। उत्पादन कम होने और पानी ज्यादा लगने के कारण परंपरागत खेती करने वाले किसान भी मुंह मोड़ने लगे थे। कालानमक धान के टेक्नोलॉजी जेनरेशन, यूटिलाइजेशन व पॉपुलराइजेशन यानी नई प्रौद्योगिकी का विकास, उसका प्रयोग और जनता के बीच उसका प्रचार-प्रसार पर पूर्ववर्ती सरकारों ने कोई ध्यान नहीं दिया। हेरिटेज फाउंडेशन के ट्रस्टी अनिल कुमार त्रिपाठी के मुताबिक स्वाद में बेजोड़ एवं खुश्बू के लिए ख्यात इस धान के लिए 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी क्रांतिकारी परिवर्तन आया। जिसका परिणाम है कि सिद्धार्थनगर से पूर्वी उत्तर प्रदेश होते हुए इसका दायरा समूचे प्रदेश में बढ़ रहा है।
कालानमक को जीआई टैग मिला
कालानमक धान को डॉ रामचेत चौधरी के प्रयासों से 25 मार्च 2010 को भौगौलिक सम्पदा (जीआई) घोषित किया गया। समान जलवायु वाले गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा और श्रावस्ती के लिए कालानमक को जीआई टैग मिला। लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने इसके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन सांसद रहते सीएम योगी इसके विकास के लिए आवाज उठाते रहे। 2017 में सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कालानमक को सिद्धार्थनगर का ओडीओपी घोषित किया। बाद में इसे सिद्धार्थनगर के साथ ही बस्ती, गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर और संतकबीरनगर भी एक जिला एक उत्पाद घोषित कर दिया है।