Unnao: 19वीं रमज़ान को शिया समुदाय ने मौला अली की शहादत की याद में निकाला जुलूस
Unnao: फज्र की नमाज़ के बाद शनिवार को मस्जिद से शिया समुदाय के लोगों ने गमगीन माहौल में अलम और ताबूत का जुलूस निकाला।
Unnao News: फज्र की नमाज़ के बाद शनिवार को मस्जिद से शिया समुदाय के लोगों ने गमगीन माहौल में अलम और ताबूत का जुलूस निकाला। भूखे-प्यासे अजादारों ने नम आंखों से शबीह-ए-मुबारक की जियारत कर आंसुओं का पुरसा पेश किया। जुलूस के आगे बढ़ते ही, सिर झुकाए अजादार सीने पर हाथ मार या अली मौला की सदा पढ़ते हुए मातम करते हुए जुलूस के साथ-साथ चले। बता दें कि शिया समुदाय के पहले इमाम हजरत अली अलेहिस्सलाम की शहादत के गम में 19वीं रमज़ान को ताबूत का जुलूस निकाला गया।
जुलूस से पहले किला स्थित मस्जिद-ए-फूल शहीद में मौलाना आबिद अब्बास ने मजलिस को खिताब कर मस्जिद में इमाम पर हुए कातिलाना हमले का दिलसोज मंजर बयां किया, जिसे सुन अजादारों की आंखें नम हो उठीं। मस्जिद से अज़ादारो ने अलम व ताबूत को उठा कर मातम करते हुए मस्जिद से लेकर तालिब सराय कर्बला में लेकर कर जुलूस को तमाम किया गया। इस दौरान पुलिस की तरफ से भी सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतज़ाम किए गए।
21 रमज़ान को हुई थी शहादत
मुसलमानों के आखिरी पैगंबर और रसूल अल्लाह हज़रत मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली का जन्म 13 रजब (इस्लामि कैलेंडर के हिसाब से सातवां महीना) 600 ईस्वी को हुआ। वहीं उनकी शहादत 21 रमज़ान को हुई. पैगंबर मोहम्मद के बाद सुन्नी मुसलमान हज़रत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया समुदाय हजरत अली को पहला इमाम मानते हैं। हजरत अली का जन्म मुसलमानों के बीच सबसे पाक माने जाने वाली जगह काबा में हुआ था।
ऐसी मान्यता है कि जब हजरत अली का जन्म होने वाला था तो उनकी मां फातमा बिन्ते असद काबे के पास गईं और काबे की दीवार में फट गई, जिसके बाद उनकी मां अंदर गईं और हजरत अली का जन्म काबे के अंदर हुआ। पैंगबर मोहम्मद के बाद हजरत अबू बक्र को पहला खलीफा माना गया। वे पैगंबर के ससुर भी थे। दो साल बाद उनकी मृत्यु हो गई, उसके बाद हजरत उस्मान और हजरत उमर को खलीफा बनाया गया। इसके बाद हजरत अली खलीफा बने।