UP Election 2022: क्या BJP दोहरा पाएगी सिद्धार्थनगर की विधानसभा सीटों पर 2017 का प्रदर्शन?

मान्यताओं की माने तो सिद्धार्थनगर अतीत में बुद्ध की क्रीड़ा स्थली हुआ करता था। पौराणिक कथाओं से देखें तो महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित यहां प्राचीन पलटा देवी मंदिर है।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Divyanshu Rao
Update:2022-01-27 18:31 IST

बीजेपी के झंडे की तस्वीर (सोशल मीडिया)

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश भी एक ऐसा राज्य है जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगता है। उत्तर दिशा में जब यह खत्म होता है तो नेपाल चालू हो जाता है। इसके कुछ जिले देश के उत्तर हिस्से में भारत के आखिरी छोर है। इनमें से एक जिला है सिद्धार्थनगर (Siddharthnagar)। सिद्धार्थ से हमें गौतम बुद्ध याद आते हैं। यह जगह भी महात्मा गौतम बुद्ध के लिए जानी जाती है। 

मान्यताओं की माने तो सिद्धार्थनगर अतीत में बुद्ध की क्रीड़ा स्थली हुआ करता था। पौराणिक कथाओं से देखें तो महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित यहां प्राचीन पलटा देवी मंदिर है। पहले यह जिला बस्ती जनपद का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन सन 1988 में सिद्धार्थनगर अस्तित्व में आया।

राजनीतिक रूप से इस जनपद में एक लोकसभा और 5 विधानसभा हैं। लोकसभा का नाम है डुमरियागंज और यहां से सांसद हैं भारतीय जनता पार्टी के जगदंबिका पाल। जानकारी के लिए बताते चलें कि जगदंबिका पाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। तब इनकी वजह से बड़ी राजनीतिक हलचल पैदा हुई थी। यह मात्र 24 घंटे ही यूपी के मुख्यमंत्री रहे थे।

बरहाल यहां 5 विधानसभा सीट हैं- शोहरतगढ़, कपिलवस्तु, बांसी, डुमरियागंज और इटवा। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 5 में से 4 सीटें जीती थी और एक सीट सहयोगी दल अपना दल ने जीती थी। यानी कि एनडीए ने इस जिले की सभी सीटों पर कब्जा जमाया था। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जिले में एक बड़ी जनसभा करते हुए मेडिकल कॉलेजों का लोकार्पण किया है।

पूर्वांचल को अपना गढ़ मानकर चल रही भारतीय जनता पार्टी के लिए इस बार भी यह जिला चुनौती के रूप में है। भाजपा यहां फिर से 2017 के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी तो नए राजनीतिक समीकरणों के आधार पर समाजवादी पार्टी भी जीत दर्ज करने की पूरी कोशिश करेगी। तो आइए सभी 5 विधानसभा सीटों का राजनीतिक हाल-चाल जानते हैं। 

बीजेपी झंडे की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

1- शोहरतगढ़ विधानसभा- अभी वर्तमान में यह सीट भाजपा के सहयोगी दल 'अपना दल' के पास है। यहां से विधायक है अमर सिंह चौधरी। इन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा के मोहम्मद जमील को 22,000 से अधिक वोटों से चुनाव हराया था। सन 2012 में यहां से समाजवादी पार्टी के लाल मुन्नी सिंह चुनाव जीते थे।

तो वहीं सन 2002 और 2007 में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था। वर्तमान में अमर सिंह चौधरी ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है और यह स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा गठबंधन से कोई नया प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरेगा। बहुजन समाज पार्टी ने पहले ही इस सीट पर राधा रमण त्रिपाठी को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रही जदयू ने यहां से ओम प्रकाश गुप्ता को प्रत्याशी घोषित किया है। इस बार के चुनाव में सारी नजर निर्णायक मुस्लिम वोटों पर रहेगी।

पिछली बार बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी ने समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। सपा से 2 प्रत्याशियों की दावेदारी मजबूत बताई जा रही है। एक सपा में शामिल हुए स्थानीय विधायक अमर सिंह चौधरी हैं और सन 2002 से चुनाव लड़ रहे मुमताज अहमद हैं। इसलिए इस विधानसभा की तस्वीर भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की सूची आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी।

2- कपिलवस्तु विधानसभा- यह विधानसभा गौतम बुद्ध के लिए अधिक जानी जाती है। यहां विश्व प्रसिद्ध काला नमक चावल का उत्पादन होता है। बौद्ध धर्म के अनुयाई इस चावल को भगवान बुद्ध का प्रसाद मानते हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में यह सीट आरक्षित है। 2012 से पहले यह विधानसभा सीट नौगढ़ के नाम से जानी जाती थी।

2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर श्यामधनी ने समाजवादी पार्टी के विजय कुमार को चुनाव हराया था। एससी और एसटी बाहुल्य सीट होने के बावजूद भी बसपा यहां तीसरे स्थान पर रही थी। आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि इस सुरक्षित सीट से बसपा कभी भी चुनाव नहीं जीत पाई है। यहां की स्थानीय विधायक का परिचय योगी आदित्यनाथ की नजदीकी होने का भी है। विधायक बनने से पहले श्यामधनी राही हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता हुआ करते थे। तभी से योगी आदित्यनाथ के साथ इनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं।

3- बांसी विधानसभा- बांसी विधानसभा सीट यहां के राजा जय प्रताप सिंह का मजबूत किला है। यह पिछले 8 में से 7 विधानसभा चुनाव में इस सीट से विधायक निर्वाचित हुए हैं। सन 1991 में निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते जय प्रताप सिंह सन 1993, 1996, 2002, 2012 और 2017 का चुनाव भाजपा के टिकट पर जीत चुके हैं। साल 2007 में समाजवादी पार्टी के लाल जी यादव इस सीट से चुनाव जीते थे। बसपा ने कभी यहां से चुनाव नहीं जीता है।

वर्तमान समय में जय प्रताप सिंह यूपी सरकार के चिकित्सा, परिवार और शिशु कल्याण मंत्री है। जातीय समीकरण को समझे तो यहां लगभग 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता, 16 प्रतिशत ब्राह्मण और भूमिहार, 12 प्रतिशत निषाद, 14 फीसद यादव और 8 फीसद लोधी राजपूत है। इसके अतिरिक्त 30 फीसद में वैश्य कायस्थ और अन्य पिछड़ी जातियां शामिल हैं। इस बार भी यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सीट राजघराने के पास रहती है या कोई अन्य दल सेंधमारी कर पाता है।

4- डुमरियागंज विधानसभा- विकास के पैमाने पर पीछे रहा यह विधानसभा क्षेत्र राप्ती नदी के किनारे पड़ता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ की वजह से आने वाली तबाही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के राघवेंद्र प्रताप सिंह ने बसपा की सैय्यदा खातून को महज 171 वोटों से चुनाव हराया था। मुस्लिम बाहुल्य इस विधानसभा सीट से मलिक कमाल यूसुफ 5 दफे विधायक रह चुके हैं।

इस सीट का राजनीतिक इतिहास भी बताता है कि यहां से मुस्लिम विधायक अधिक बने हैं। इस बार भी इस सीट पर सपा बनाम भाजपा की मजबूत टक्कर दिखाई पड़ेगी। स्थानीय लोगों की माने तो पिछली बार कांग्रेस और सपा के एक साथ लड़ने की वजह से सैय्यदा खातून चुनाव हार गई। कॉन्ग्रेस अगर अकेली चुनाव लड़ती तो निश्चित रूप से ब्राह्मण समाज के कई हजार वोट काट देती, जो 2017 में भाजपा को मिल गए थे।

5- इटवा विधानसभा- इस विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के कद्दावर ब्राह्मण नेता माता प्रसाद पांडे छः दफा विधायक रह चुके हैं। 2017 में भाजपा के टिकट पर सतीश द्विवेदी ने बसपा की अरशद खुर्शीद और सपा के माता प्रसाद पांडे को चुनाव हरा दिया था। वर्तमान में सतीश द्विवेदी योगी सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री भी है।

सन 1993 के बाद भाजपा इस सीट पर चुनाव जीती थी। इस बार बसपा ने हरिशंकर सिंह को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इसलिए ऐसे राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे हैं जहां मुस्लिम मतदाता सपा के साथ जा सकता है। ऐसी स्थिति में माता प्रसाद पांडे के लिए राह आसान हो जाएगी।

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