UP Politics: UP में हो सकता है बड़ा सियासी खेल, बसपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन पर चर्चा, दिल्ली में फार्मूले पर बातचीत
BSP and Congress Alliance: उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियों में एक बार फिर बसपा और कांग्रेस के साथ होने की हवाएं तेज हो गई हैं। लोकसभा चुनावों को लेकर हो रही तैयारियों में चर्चा है कि मायावती ने समर्थन पर बातचीत के लिए अपने देवदूत दिल्ली भेजा है।
BSP and Congress Alliance: अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है। भाजपा और सपा के अलावा बसपा मुखिया मायावती भी अपनी पार्टी के संगठन को चुस्त-दुरुस्त बनाने की कोशिश में जुट गई हैं। इस सिलसिले में आज उन्होंने लखनऊ में एक बड़ी बैठक भी की है। बसपा और कांग्रेस दोनों दलों के सियासी वजूद के लिए अगला लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ऐसे में दोनों दलों के बीच अंदरखाने गठजोड़ की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं।
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चर्चा है कि बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से इस बाबत हाल में लंबी चर्चा की है। माना जा रहा है कि बसपा मुखिया मायावती ने इस नेता को चर्चा के लिए दिल्ली भेजा था। हालांकि दोनों दलों की ओर से अभी तक इस बाबत आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है। सियासी जानकारों का मानना है कि 23 जून को पटना में होने वाली विपक्ष की बड़ी बैठक के बाद इस संबंध में कुछ जानकारी सामने आ सकती है।
दोनों दलों को लग चुका है बड़ा झटका
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2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने गठबंधन किया था। जातीय समीकरणों के लिहाज से इस गठबंधन को काफी मजबूत माना जा रहा था मगर इसके बावजूद 2019 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की थी। 2019 के चुनाव में बसपा को 10 और सपा को पांच लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सपा ने रालोद के साथ मिलकर भाजपा को मजबूत चुनौती दी थी मगर बसपा काफी पिछड़ गई। विधानसभा चुनाव के नतीजों से मायावती को करारा झटका लगा था।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भी करारा झटका लगा था। कांग्रेस सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी जबकि कभी अपने दम पर प्रदेश में सरकार बनाने वाली बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गई थी। निकाय चुनाव के दौरान भी दोनों दलों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था।
पहले तीन राज्यों में साझेदारी पर विचार
ऐसे में बसपा और कांग्रेस दोनों दलों के लिए अगला लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सियासी मजबूती हासिल करने के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। बसपा की मुखिया मायावती ने कांग्रेस से मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के दौरान साझेदारी के विकल्प पर विचार करने का अनुरोध किया है।
इन तीनों राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। तीनों राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है मगर बसपा भी अपना सियासी वजूद दिखाती रही है। चर्चा है कि इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में गठबंधन के बाद उत्तर प्रदेश में भी सपा और बसपा और कांग्रेस के बीच गठजोड़ हो सकता है। इस गठजोड़ में दोनों दलों को 40-40 सीटें दिए जाने की बात सामने आ रही है।
जातीय समीकरण भी सटीक बैठने का तर्क
वैसे दोनों दलों के बीच गठजोड़ के मुद्दे पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। सूत्रों का कहना है कि बसपा के वरिष्ठ नेता सोमवार को कांग्रेस के मुख्यालय पहुंचे थे और उन्होंने गठजोड़ की संभावनाओं के संबंध में कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से चर्चा की है। माना जा रहा है कि बसपा नेता मायावती का कोई संदेश लेकर कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे थे। दोनों दलों के बीच गठबंधन होने पर जातीय समीकरण के भी सटीक बैठने का तर्क दिया जा रहा है।
सपा के साथ ही बसपा ने भी मुस्लिम मतदाताओं पर नजरें गड़ा रखी हैं। कांग्रेस से गठबंधन करने की स्थिति में बसपा को मुस्लिम मतदाताओं की नाराजगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। सवर्ण और दलित पहले कांग्रेस को वोट देते रहे हैं और बसपा ने भी अगले लोकसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम,दलित और सवर्ण वोट बैंक के सहारे अपनी ताकत दिखाने का सपना पाल रखा है।
पटना की बैठक के बाद हो सकता है सियासी खेल
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मजबूती पर जोर देती रही हैं। हालांकि उनकी कोशिशों के बावजूद पार्टी अभी तक प्रदेश में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो सकी है। सपा के साथ हाथ मिलाने की स्थिति में कांग्रेस के पास ज्यादा सीटों पर लड़ने की गुंजाइश नहीं बचेगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव भी पहले बड़े दल को बड़ा दिल दिखाने की बात कर चुके हैं।
ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस की ओर से बसपा के फार्मूले पर विचार किया जा सकता है। वैसे अभी इस मुद्दे पर कोई खुलकर बात इसलिए भी नहीं कर रहा है क्योंकि पटना में 23 जून को विपक्षी दलों के नेताओं की बड़ी बैठक होने वाली है। विपक्ष के नेता इस बैठक में होने वाली चर्चा और यहां से निकलने वाले संदेश का इंतजार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद उत्तर प्रदेश में नए सियासी खेल की शुरुआत हो सकती है।