Mirzapur : अब कोयला तस्करों पर वार, UP STF की बड़ी सफलता, सरगना समेत 14 गिरफ्तार, सोनभद्र से जुड़ा है तार
UP Latest News : यूपी मिर्जापुर में कोयला तस्करों के इलाकों में छापामार यूपी एसटीएफ ने एक तस्कर समेत उसके 14 साथियों को गिरफ्तार कर लिया है साथ ही कई वाहनों को भी जप्त किया गया है।
Mirzapur News : उत्तर प्रदेश में कोयला तस्करों के खिलाफ कार्रवाई करने में यूपी एसटीएफ को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में कोयला का तस्कर करने वाले सरगना समेत उसके 14 अन्य साथियों को यूपी एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया है। कोयला तस्करों पर कार्यवाही करते हुए यूपी एसटीएफ ने वाराणसी-शक्तिनगर हाईवे के पास अदलहट थाना क्षेत्र के कौड़िया कला तथा रस्तोगी तालाब क्षेत्र में छापा मारकर कोयला से लदे 14 ट्रक समेत 15 ट्रैक्टरों को जप्त कर लिया है। माना जा रहा इन तस्करों की गिरफ्तारी के बाद यूपी के कई अन्य क्षेत्रों में भी कोयले के तस्करों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हाथ लग सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में एक तरफ कोयले की वजह से बिजली का संकट उत्पन्न हो गया है, वही दूसरी तरफ वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग कौड़िया कला व रस्तोगी तालाब के पास धर्म कांटा पर गुरुवार को UP STF की टीम ने सघन छापेमारी किया। वाराणसी व अदलहाट पुलिस के साथ छापा मारकर कोयला लदे 14 ट्रक व 15 ट्रैक्टरों को जब्त कर लिया। एसटीएफ ने मुख्य कोयला माफिया के साथ 14 आरोपियो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। कोयला माफियाओं के पास से एक कार व एक लाख रुपये कैश व मोबाइल बरामद हुए।
जानिए कैसे पकड़े गए कोयला माफिया
एसटीएफ की फील्ड यूनिट वाराणसी पुनीत परिहार ने Newstrack से बातचीत में बताया कि मुखबिर से सूचना मिली कौड़ियाकला व रस्तोगी तालाब के पास धर्म कांटा में चोरी व तस्करी के कोयले लदे ट्रक व ट्रैक्टर काफी संख्या में आए हैं। कोयला खरीदने व बेचने की बात चल रही है। जिससे एसटीएफ व पुलिस की टीम पहुंची दोनों धर्मकांटा से कोयला लदे 14 ट्रक व 15 ट्रैक्टरों को जब्त कर लिया। इस दौरान वाहनों के चालकों समेत 11 लोगों को पकड़ा गया। मुखबिर ने बताया कि इस मार्ग पर वाणिज्य कर अधिकारियों, पुलिस और आरटीओ की लोकेशन बताकर गाड़ी पास कराने वाले गिरोह का सरगना धनंजय सिंह अपने सहयोगी के साथ अदलहाट बाजार में खड़ा है। सूचना पर एसटीएफ पहुंची और ब्रेजा कार सहित तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
जिसमे झारखंड निवासी विकास सिंह से एक लाख रुपये नगद व एक मोबाइल बरामद हुआ व अन्य दो आरोपी धनंजय सिंह व निखिल सिंह निवासी भटकी टोली थाना रामनगर जनपद वाराणसी शामिल के है। अन्य पकड़े गए लोगों में हिमांशु कुमार यादव निवासी तिपरी जमानियां गाजीपुर, पंकज यादव निवासी दरौली जमानिया गाजीपुर, राम सजीवन निवासी डीबुलगंज अनपरा सोनभद्र, वीरेंद्र सिंह निवासी बेलखरा अहरौरा मिर्जापुर, मैनेजर निवासी तीनताली राबर्ट्सगंज सोनभद्र, संजय कुमार सिंह बंगला चुनार मिर्जापुर, भगत सिंह निवासी बरेव अदलहाट, चंद्रराज सिंह निवासी सहदैया कर्मा सोनभद्र, कामेंद्र मिश्रा हाजीपुर अदलहाट, जय प्रकाश सिंह हिनौतीमाफी अदलहाट, निखिल सिंह निवासी बघली टोला रामनगर वाराणसी, वकील यादव निवासी दादो अहरौरा सहित कुल 14 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
सोनभद्र कबसिंगरौली में 22 साल से जमी हैं कोयला तस्करों की जड़ें
Sonbhadra : मिनी रत्न कंपनी नार्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की सोनभद्र-सिंगरौली सीमा क्षेत्र स्थित कोयला खदानें जहां बिजली परियोजनाओं को कोयला देने के साथ, देश की तरक्की का आधार बनी हुई हैं। वहीं ब्लैक डायमंड (Black Dimond) के धंधे में अकूत कमाई को देखते हुए, 22 साल से यह कोलफील्ड्स एरिया कोयला तस्करी का भी बड़ा केंद्र बनी हुई हैं। एसटीएफ की तरफ से अदलहाट में 5000 टन कोयले की बरामदगी और गिरोह के सरगना धनंजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद, कोयला तस्करी का सिंडीकेट एक बार फिर से चर्चा में है।
कोलफील्ड्स एरिया में जड़ जमाए इस गिरोह को सफेदपोशों से मिलने वाले संरक्षण की स्थिति यह है कि वर्ष 2009 में सीबीआई की जबरदस्त रेड, कई की गिरफ्तारी, कई कोल भंडारण स्थलों को ध्वस्त किए जाने के बावजूद, गिरोह का नेटवर्क बना रहा और सीधे कोयला चोरी की बजाय, कोल ट्रांसपोर्टिंग के धंधे में घुसकर, नए तरीके से तस्करी का खेल शुरू कर दिया गया। एक साल पहले राबर्ट्सगंज सांसद की तरफ से भी सवाल उठाए गए। कई जिम्मेदारों पर शह देने का आरोप भी लगाया गया लेकिन तस्करी का धंधा चलता रहा।
एसटीएफ के हत्थे चढ़े गिरोह, से जुड़े नामों पर चर्चा करें तो लोगों का कहना है कि सबसे पहले 1998 से 2000 में झारखंड के गढ़वा जिला निवासी धनंजय सिंह और तमिलनाडु के नायडू टाइटल वाले व्यक्ति ने कोयले के धंधे में इंट्री मारी और नीलामी में लिए जाने वाले कोयले की आड़ में जिले के अनपरा, शक्तिनगर के साथ ही सिंगरौली के मोरवा और बैढन में नेटवर्क बनाकर कोयला तस्करी का काम शुरू कर दिया। इसके लिए डीओ यानी निलामी पर लिए जाने वाले कोयले के कागजात को आधार बनाया और कोयले की निकासी और इसके वैधता की चेकिंग करने वाले जिम्मेदारों और उनसे जुड़े लोगों को मिलाकर तस्करी का खुला खेल खेला जाने लगा। बाद में चलकर इस नेटवर्क से एक जीओ उपनाम व्यक्ति वाले व्यक्ति के जुड़ने के बाद और तेजी आई। 2009 में जब इस तस्करी की जानकारी केंद्रीय कोयला मंत्रालय तक पहुंची तो सीबीआई ने रेड डाल दी। इसके बाद इस धंधे से जुड़े कई नामचीन चेहरे सलाखों के पीछे डाल दिए गए। रैकेट को हर तरफ से तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन जेल से बाहर आते ही फिर से नेटवर्क जुड़ना शुरू हो गया।
2015 से बदल गया तरीका, 2020 में जुड़े कई नए नाम, रसूखदारों की मिलती गई शह, बढ़ता गया दायरा
2015 के पूर्व वन विभाग की तरफ से एबी बिल की पर्ची काटे जाने का नियम नहीं होने के कारण सीधे एनसीएल से ही कोयला उठाकर वाराणसी की चंधासी मंडी तथा अन्य जगहों पर भेज दिया जाता था लेकिन 2015 से एबी बिल की पर्ची काटने का सिलसिला होने के बाद कोल ट्रांसपार्टिंग में ओवरलोडिंग को बढ़ावा देकर तस्करी का नया तरीका इजाद किया गया और इस कोयले को भी ई-आक्सन वाले कागजात के आधार पर वन विभाग से एबी बिल कटवाकर तस्करी का खेल खेला जाने लगा। इस धंधे के लिए कोयला भंडारण आसान बनाने के निमित्त कई जगह पर कोल डिपो जैसी जगह बना ली गई। सुकृत और अहरौरा के सीमा के निर्धारण करने वाली अहरौरा की पहाड़ी भी, तस्करी के नए तरीके का बड़ा केंद्र बन गई। 2015 से धीरे-धीरे यह खेल आगे बढ़ता रहा। चर्चा है कि 2020 में एक अधिकारी की तरफ से मिले कथित संरक्षण और पूर्व के चर्चित चेहरों के अलावा छत्तीसगढ़ से अनपरा आए नारायण नामक व्यवसायी के कथित जुड़ाव के बाद, फिर से तस्करी का बड़ा खेल शुरू हो गया।
इस तरह खेला जा रहा तस्करी का खेल, परिवहन विभाग पर भी सवाल
बताया जा रहा है कि एनसीएल की परियोजनाओं में कांटा होने के बाद निर्धारित वजन से अधिक कोयला वाहनों पर लोड कर लिया जाता है। इस काम में कांटा और डिस्पैच बाबू सहित कुछ अन्य की मौन सहमति होती है, इसलिए आसानी से ओवरलोड वाहन कोयला लेकर बाहर निकल आता है। बाहर आने के बाद चार-पांच गाड़ी के ओवरलोड माल के जरिए आसानी से एक ट्रक कोयले का माल तैयार कर लिया जाता है। डिबुलगंज से रेणुकुट के बीच कोयले पर पानी का छिड़काव कर कोयले का वजन बढ़ाने का तरीका अपनाकर कटिंग का माल उतारा जाता है सो अलग। बताते हैं कि एक ट्रेलर पर चार से पांच टन कोयला ओवरलोड रहता था। 14 चक्के में तब्दील 18 चक्के वाहन पर प्रति वाहन यह आंकड़ा आठ से दस टन पहुंच जाता है।
बिना कागज का कोयला परिवहन के लिए तैयार होने के बाद गिरोह से जुड़े धनंजय या अन्य दूसरे के नाम से लिए गए ई-आक्सन के जरिए उस कोयले का वन विभाग से एबी बिल कटवाया जाता है। यहां के बाद अवैध कोयले को वैधता का जामा पहनाकर चंधासी मंडी पहुंचा दिया जाता है। कई बार एनसीएल द्वारा दिए गए कागजात की आड़ में ही कई चक्कर माल सोनभद्र की सीमा से पार हो जाता है। रास्ते में पड़ने वाले कोल डिपो के जरिए भी इस कोयले की बड़ी खपत की जाती है। यहीं कारण है कि, तस्करी के इस खेल में एनसीएल, पुलिस, वन विभाग के कर्मियों की भूमिका पर सवाल तो उठाए ही जा रहे हैं। 18 चक्के वाले वाहनों का 14 चक्के में रजिस्ट्रेशन और बगैर देखे फिटनेस जारी करने को लेकर परिवहन विभाग की भी भूमिका सवालों के घेरे में है।
जिसने नहीं किया सहयोग, उसे होना पड़ा चलता, जिसने किया विरोध भुगतना पड़ा अंजाम
कोयला तस्करी की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसके लिए यह जानना काफी है कि 2009 के पहले वाली तस्करी पर अंकुश के प्रयास में एसपी नवीर अरोड़ा को तीन माह और एसपी प्रीतिंदर सिंह को महज चार दिन बाद चलता होना पड़ा था। हालांकि प्रीतिंदर को जिले में एसपी के रूप में दूसरी बार तैनाती मिली और उन्होंने एक लंबा समय भी गुजारा। 2015 के बाद से तस्करी के बदले तरीके को लेकर भी छोटे स्तर पर शह-मात का खेल चलता रहा।
2020 में जब इस धंधे ने तेजी पकड़ी तो जहां अचानक से गुरमुरा, राबटर्सगंज से लेकर अदलहाट तक नए कोल डिपो खुलते गए। वहीं इस अवैध परिवहन को सहयोग न देने वाले राबटर्सगंज के तत्कालीन दो प्रभारी निरीक्षकों को हटना पडा। एक पुलिसकर्मी को तो मिर्जापुर जोन के बाहर जाना पड़ा। रसूखदारों के बढते दबाव को देखते हुए जिले के दूसरे थानेदारों ने समझौते का रास्ता ही अख्तियार करना उचित समझा। हालत यह थी कि इस धंधे की उपर तक जानकारी पहुंचाने वाले एक पत्रकार के खिलाफ ही माफियाओं की तरफ से एफआईआर दर्ज करा दी गई।
एक कथित अधिकारी के भी संरक्षण को देखते हुए लोगों ने चुप रहने में ही भलाई समझी। हाल ही में जिले की पुलिस द्वारा चलाए गए अभियान में पकड़े गए 18 वाहनों में धनंजय के कथित ई-आक्सन से जुड़े कागजात पाए गए थे। मामले में कूटरचना का शक जताते हुए जल्द बड़ी कार्रवाई की बात कही गई थी लेकिन धनंजय का खेल चलता रहा। अब एसटीएफ ने इस धंधे पर रेड मारी है तो कौन-कौन बेनकाब होते हैं? किसकी गर्दन बच जाएगी? चर्चाओं का बाजार गर्म है। उधर डीएफओ रेणुकूट मनमोहन मिश्रा का कहना है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। व्यापक अभियान चलाकर वाहनों की धरपकड़ और ऐसे वाहनों का वन विभाग से रसीद (एबी बिल) न कटने पाए इस पर ध्यान दिया जाएगा।