यूपी के किसी भी चुनाव में मायावती की इतनी खराब हालत कभी नहीं हुई

Update: 2017-03-11 06:50 GMT

लखनऊ: यूपी में विधानसभा चुनाव के परिणाम बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती को गहरा सदमा दे गए हैं। उनका दलित वोट बैंक जिस पर वो सबसे ज्यादा भरोसा करती थीं, अब दरक गया। उनका दलित-मुस्लिम गठजोड का गणित भी काम नहीं आया।

मायावती ने ये सोचकर 100 से ज्यादा मुस्लिमों को टिकट बांटे कि दलित, मुस्लिम का एकमुश्त वोट उन्हें सत्ता की चाबी सौंप सकता है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि मायावती ने सिर्फ इसका गणित लगाया।मुस्लिमों को बसपा से जोड़ने के लिए जमीं पर कोई काम नहीं किया। मायावती को संभवत: ये लगा था कि दलित और मुस्लिमों के मत प्रतिशत उसे सत्ता तक पहुंचा देंगे, लेकिन चुनावी गणित का खेल नहीं नजर आया।

बसपा: लोकसभा चुनाव में अब तक

बसपा को लोकसभा चुनाव में पहली बार सफलता 1989 के चुनाव में मिली थी। तब उसके 4 प्रत्याशी जीते थे। 1991 के लोकसभा चुनाव में 3 तो 1996 के चुनाव में वह पहली बार दोहरे अंक में पहुंची थी। पहली बार बसपा को 11 सीटें हासिल हुई। 1998 के लोकसभा चुनाव में बसपा के 5 सदस्यों को जीत मिली, तो 1999 में यह आंकडा 14 तक पहुंच गया। लोकसभा के 2004 के चुनाव में बसपा को 19 तो 2009 के चुनाव में सबसे ज्यादा 21 सीटें मिली। लोकसभा के 2014 के चुनाव में मोदी लहर चली और बसपा कोई सीट नहीं जीत सकी।

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बसपा: विधानसभा चुनाव में अब तक का सफर

इसी तरह 1993 के विधानसभा चुनाव में बसपा-सपा ने गठजोड कर चुनाव लड़ा और 67 सीटें जीती। बाद में ये गठबंधन 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद टूट गया। विधानसभा के 1996 के चुनाव में भी बसपा को 67 सीट ही मिली।

विधानसभा के 2002 के चुनाव में बसपा को 98 सीटें मिली, जबकि 2007 के चुनाव में मायावती ने 206 सीट जीतकर यूपी में बहुमत से सरकार बनाई। विधानसभा के 2012 के चुनाव में बसपा को 80 सीटें ही मिल पाई। लेकिन वर्तमान विधानसभा चुनाव में उसे 20 से भी कम सीटें मिलती दिख रही है।

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