STATE UNIVERSITIES में नियुक्ति का खेल, आखिर किस आधार पर होता VC का चयन?

यह कोई पहली बार नहीं है कि यूपी में किसी कुलपति के चयन पर सवालिया निशान लगे हों। वर्ष 2015 के जुलाई माह में प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम टेक्निकल इंस्‍टीट्यूट के वाइस चांसलर के पद पर नियु‍क्‍त किया गया था, तब ​उनकी नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठे थे। ​

Update:2016-11-19 17:37 IST

लखनऊ: समाज में सर्च लाइट कहे जाने वाले उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में कुलपतियों की नियुक्ति के मामले में सर्च कमेटी की सिफारिश के मायने बेमतलब होते जा रहे हैं। मनचाहे व्‍यक्ति को तैनाती देने के लिए सर्च कमेटी महज एक कोरी औपचारिकता बनकर रह गई हैं। हाल ही में 12 नवंबर 2016 को लखनऊ विश्‍वविदयालय के कुलपति के चयन में तीन नाम भेजने की नैतिक बाध्‍यता वाली सर्च कमेटी ने पांच लोगों की सूची सूबे के राज्‍यपाल राम नाइक को मुहैया कराई। इस सूची में लखनऊ के नेशनल पीजी कालेज के प्राचार्य प्रोफेसर एसपी सिंह का नाम तो था पर उनसे ऊपर तीन अपने अपने क्षेत्र के नामचीन लोगों का सूची में नाम दिया गया था। इनमें एक तो भागलपुर की यूनिवर्सिटी में अपने दूसरे टर्म को वाइस चांसलर के तौर पर पूरा कर रहे थे।इस सूची में दो पूर्णकालिक प्रोफेसर भी थे लेकिन उन सबको नजरअंदाज करके प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह को लखनऊ विश्‍वविदयालय के कुलपति के पद पर बैठा दिया गया।

सवाल- क्‍या सिर्फ अनुभव के आधार पर हुआ चयन?

-एलयू सूत्रों की मानें तो प्रोफेसर एसबी निम्‍से के बाद लखनऊ विश्‍वविद्यालय के कुलपति पद के लिए करीब 80 नामों को सर्च कमेटी ने शॉर्ट लिस्‍ट किया था। विश्‍वविद्यालय की इस सर्च कमेटी में तीन लोग थे, एक राज्‍यपाल के प्रतिनिधि, एक विश्‍वविदयालय के प्रतिनिधि के तौर पर बीएयचू के प्रोफेसर और एक इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रतिनिधि ने चयन प्रक्रिया में भाग लिया। इस सर्च कमेटी ने अंत में पांच नामों को शॉर्ट लिस्‍ट किया, जिसमें नेशनल कालेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर एसपी सिंह, भागलपुर की यूनिवर्सिटी के वर्तमान वाइस चांसलर जिन्‍होंने इससे पहले भी वीसी के पद पर कार्य किया है, इंदौर यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर, हैदराबाद की एक यूनिवर्सिटी की सीनियर प्रोफेसर और बीएचयू के सीनियर प्रोफेसर के नाम शामिल थे।

प्रोफेसर एसपी सिंह के पास नेशनल पीजी कालेज लखनऊ में 25 साल का प्रशासनिक और शैक्षिक अनुभव है। इन्‍होंने अर्थशास्‍त्र में पीएचडी की है। पर न तो इनके निर्देशन में किसी ने पीएचडी की है और न ही इन्‍होंने कोई शोध प्रबंध प्रकाशित कराया है। आम तौर पर प्रोफेसर सिर्फ विश्‍वविद्यालयों में होते हैं परंतु विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग ने वरीयता के मानदंडों को परिभाषित करते हुए डिग्री कालेजों के शिक्षकों को भी मौका दिया, प्रोफेसर सुरेंद्र प्रताप सिंह भी इसी में आते हैं।

राज्‍यपाल का लखनऊ विश्‍वविद्यालय से प्रेम है जगजाहिर

लखनऊ विश्‍वदियालय पर राज्‍यपाल राम नाइक का रहमोकरम जगजाहिर है। इससे पहले प्रोफेसर एसबी निम्‍से यहां के कुलपति थे। प्रोफेसर एसबी निम्‍से महाराष्‍ट्र से आते हैं, इन्‍हें इनका कार्यकाल पूरा होने के बाद 6 माह का कार्यविस्‍तार आसानी से मिल गया था।

सवाल- आखिर क्‍या है यूपी की स्‍टेट यूनिवर्सिटीज में वीसी के चयन की प्रक्रिया

-राजभवन के सूत्रों ने बताया कि स्‍टेट यूनिवर्सिटीज में वाइस चांसलर के पद पर नियुक्ति के लिए एक सर्च कमेटी का गठन होता है और यह कमेटी वरीयता क्रम में तीन नामों को राजभवन भेजती है। इन नामों में से किसी एक को राज्‍यपाल अपनी मर्जी से चुनकर वाइस चांसलर पद पर नियुक्‍त कर सकते हैं। जिस भी प्रोफेसर या अन्‍य व्‍यक्ति को यूपी में कहीं भी वीसी बनने की इच्‍छा होती है, वह वहां के लिए इंगित करते हुए अपना बायोडाटा राजभवन सचिवालय में भेज सकता है। जब भी किसी स्‍टेट यूनिवर्सिटी के लिए वीसी के पद पर चयन प्रक्रिया का संचालन होता है, तो राजभवन कार्यालय के डाटाबेस में जमा इन सभी बायोडाटा को सर्च कमेटी दवारा स्‍क्रूटनी किया जाता है। ये सारे बायोडाटा राजभवन सचिवालय में जमा करने की तिथि से एक वर्ष के लिए वैध रहते हैं।सूत्रों की मानें तो वर्तमान में लखनऊ विश्‍वविद्यालय के कुलपति के पद पर नियुक्ति मामले में इस डाटा बेस को नजरअंदाज किया गया।

वर्ष 2015 में एकेटीयू के कुलपति की नियुक्ति पर भी उठे थे सवाल

-यह कोई पहली बार नहीं है कि यूपी में किसी कुलपति के चयन पर लोगों ने सवालिया निशान लगाए हैं। जब वर्ष 2015 के जुलाई माह में प्रोफेसर विनय कुमार पाठक को डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम टेक्निकल इंस्‍टीट्यूट के वाइस चांसलर के पद पर नियु‍क्‍त किया गया था, तब भी उनकी नियुक्ति को लेकर कई सवाल उठाए गए थे।

ये है एलयू के नवनियु‍क्‍त वाइस चांसलर प्रोफेसर एसपी सिंह का परिचय

-प्रोफेसर एसपी सिंह लखनऊ यूनिवर्सिटी के पुराने छात्र हैं। ये मूल रूप से फैजाबाद के रहने वाले हैं। इनका जन्म 8 मार्च, 1955 को हुआ था। इनकी प्राइमरी से लेकर इंटर तक की पढाई फैजाबाद से ही हुई है। इसके बाद इन्होंने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही किया है। इन्होंने 1976 में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद गोंडा के एलबीएस पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में बतौर इकोनॉमिक्स के लेक्चरर के रूप में सेवाएं दीं। इसके बाद 1991 में उन्होंने नेशनल कॉलेज के प्रिंसिपल की बागडोर संभाली और 25 सालों तक इसी पद पर काम करते रहे। ये कालेज लखनऊ यूनिवर्सिटी से ही संबद्ध है। इसके अलावा इन्‍होंने अर्थशास्‍त्र से ही पीएचडी भी की है।

सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में ऐसी होती है वाइस चांसलर के पद पर चयन प्रक्रिया

-सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में वाइस चांसलर के पद के रिक्‍त होने पर सर्वप्रथम उसके लिए एक विज्ञापन निकाला जाता है। इसके साथ ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय दवारा वीसी के सेलेक्‍शन के लिए एक सर्च कमेटी का गठन किया जाता है। सर्च कमेटी का एक चेयरपर्सन भी नियुक्‍त किया जाता है। यह सर्च कमेटी प्राप्‍त आवेदनों में से एक-एक व्‍यक्ति के शैक्षिक और प्रशासनिक अनुभव के लिए स्‍कोर देती है। इतना ही नहीं, शोध कार्य, ग्रांट लाने में सफल रहने वाले और अन्‍य फैक्‍टर्स के लिए अलग से एपीआई (एके‍डमिक परफॉरर्मेंस इंडीकेटर) होता है। इसी स्‍कोर कार्ड के आधार पर चयन के लिए नाम छांटे जाते हैं। इसके बाद मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा कुलपति के पद पर अंतिम चयन के लिए तीन नामों की सूची राष्‍ट्रपति को भेजी जाती है, जहां अंतिम चयन होता है।

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