Medicine Price Hike: महंगी हुई आपकी जरूरत की ये दवाएँ, क्यों कर रही सरकार ऐसा, आइये जाने लागत से ज्यादा बढ़ रहे मेडिसिन के दाम की वजह

Medicine Price Hike in April: अप्रैल से जरूरी दवाओं के दाम 12 फीसदी तक बढ़ने वाले हैं। इसमें बुखार उतारने वाली दवाओं से लेकर एंटीबायोटिक और हृदय रोग तक की सभी जरूरी दवाएं शामिल हैं। भारत का ड्रग रेगुलेटर हर साल दवा कंपनियों को शेड्यूल ड्रग के दाम बढ़ाने की अनुमति देती है।

Update: 2023-03-30 18:57 GMT

Medicine Price Hike: महंगाई की एक मार अब मरीजों पर पड़ने वाली है। अप्रैल से जरूरी दवाओं के दाम 12 फीसदी तक बढ़ने वाले हैं। इसमें बुखार उतारने वाली दवाओं से लेकर एंटीबायोटिक और हृदय रोग तक की सभी जरूरी दवाएं शामिल हैं। भारत का ड्रग रेगुलेटर हर साल दवा कंपनियों को शेड्यूल ड्रग के दाम बढ़ाने की अनुमति देती है। इन दवाओं की कीमतों में कितना इजाफा होगा, यह थोक महंगाई दर (डब्लूपीआई) के आधार पर तय होता है। बढ़ती महंगाई को देखते हुए फार्मा इंडस्‍ट्री दवाओं की कीमत बढ़ाए जाने की मांग कर रही थी। इंडस्ट्री का कहना है कि दवाएं बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा समुद्री रास्ते से इनकी ढुलाई और पैकेजिंग मैटेरियल का खर्च भी बढ़ा है।

कौन तय करता है दवाओं के दाम

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण भारत में दवाओं के मूल्य तय करना उन पर नियंत्रण रखना और उपलब्धता बनाये रखता है। बाजार में दवाओं की खुदरा कीमतें दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के आधार पर राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण द्वारा तय की जाती है।

महंगाई का असर

25 मार्च को जारी एक अधिसूचना में प्राधिकरण ने कहा है कि थोक मूल्य सूचकांक में वार्षिक परिवर्तन 12.12 फीसदी था। पिछले साल नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने आवश्यक दवाओं की कीमतों में 10.7 फीसदी।की बढ़ोतरी की अनुमति दी थी। वित्तीय वर्ष 2018 और 2022 के बीच कीमतों को केवल 0.5 फीसदी से 4.2 फीसदी की सीमा में बढ़ाने की अनुमति दी गई थी।

आयात पर निर्भरता

भारत में एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इनग्रीडिएंट्स) यानी दवाओं में पड़ने वाले एक्टिव तत्वों को चीन से इम्पोर्ट किया जाता है। ये निर्भरता 70 फीसदी तक है। जबकि कुछ जीवन रक्षक एन्टीबायोटिक के मामले में ये निर्भरता 90 फीसदी है।

भारत सरकार ने दवा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने, अधिक कीमतों वाली दवाइयों के स्थानीय स्तर पर निर्माण को प्रोत्साहित करने और चीन से आने वाले कच्चे माल के भारत में ही उत्पादन हेतु पीएलआई योजना चला रखी है।

मुनाफाखोरी

दवा के दाम निर्धारित तो कर दिए जाते हैं लेकि बहुत सी कंपनियां राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण के नियमों का भी पालन नहीं करती हैं। नियम के मुताबिक दवाओं की कीमत, लागत से सौ गुनी ज्यादा रखी जा सकती है, लेकिन असलियत में 1023 फीसदी तक ज्यादा कीमत ली जा रही है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी देशी-विदेशी दवा कंपनियों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि दवा कंपनियों ने सरकार द्वारा दिए गए उत्पाद शुल्क का लाभ तो लिया, लेकिन दवाओं की कीमतों में कटौती नहीं की।

कंपनियों का लाभ

जरा एक नज़र 2022 में कुछ प्रमुख भारतीय दवा कंपनियों के प्रॉफिट पर डालते हैं।
सिप्ला 29.58 अरब रुपये, डिविस लैब्स 29.48, ग्लेनमार्क - 19.98, डॉ रेड्डीज लैब्स 16.23, अल्केम लैब 15.4, अरबिंदो फार्मा 14.55, ग्लैंड 12.12, टोरेंट फार्मा 9.91, सनोफी इंडिया 9.44 और इप्का लैब्स 8.71 अरब रुपये।

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