ए भाई ! महिला की महिला से शादी और बच्चे भी हो रहे हैं ये क्या गजब हुई गवा रे

बात करते हैं तंजानिया मुल्क की केन्या से लगने वाली सीमा के पास स्थित कितावासी गांव की। यहां अपने पति को छोड़ने के बाद 25 साल की बोके चाहा ने एक विधवा से शादी कर ली लेकिन यह शादी प्यार के लिए नहीं हुई। ये पुरुष प्रधान समाज से मुक्ति के लिए हुई थी।

Update:2019-05-06 15:47 IST

रामकृष्ण बाजपेयी

तंजानिया: महिला या लड़की। चाहे दुनिया के किसी भी समाज की हो। आभिजात्य वर्ग की हो गरीब के घर जन्मी हो या आदिवासी समाज की। किसी देश किसी टापू पर जन्मी हो परिस्थितियों और हालात से मुकाबले की उनकी लड़ाई एक जैसी ही होती है। उनके संघर्ष एक जैसे होते हैं।

इसीलिए कहा जाता है एक महिला ही महिला के दर्द को समझ सकती है। लेकिन जब महिला से महिला शादी करे। और बच्चे भी होने लगें तो बुद्धि काम करना बंद कर देती है। ये कैसे ये तो हो ही नहीं सकता लेकिन हो रहा है।

बात करते हैं तंजानिया मुल्क की केन्या से लगने वाली सीमा के पास स्थित कितावासी गांव की। यहां अपने पति को छोड़ने के बाद 25 साल की बोके चाहा ने एक विधवा से शादी कर ली लेकिन यह शादी प्यार के लिए नहीं हुई। ये पुरुष प्रधान समाज से मुक्ति के लिए हुई थी। शादी के बाद बच्चे भी हो रहे हैं और दोनो महिलाएं उनको मिलकर पाल रही हैं। उनका कहना है कि उन्होंने महिला का साथ इसलिए पसंद किया ताकि वह एक दूसरे की मदद कर सकें।

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चाहा ने 64 साल की क्रिस्टीना वैमबुरा से करीब पांच साल पहले कुरिया न्यूम्बा टोभू या महिलाओं के घर की परम्परा के तहत शादी की। यह प्रथा एक बुजुर्ग महिला को पुरुष परिवारीजनों के न रहने पर एक युवा लड़की से शादी करने की इजाजत दे देती है।

इस महिला के लड़के हो भी सकते हैं या भविष्य में होने वाले भी हो सकते हैं। लेकिन इसमें एक बात की गारंटी होती है कि महिला की संप्रभुता पर आंच नहीं आएगी। लेकिन इसके अलावा भी यह प्रथा महिला को सुरक्षा भी देती है।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि मारा क्षेत्र में जहां कुरिया आदिवासी बहुतायत में रहते हैं। 78 फीसद महिलाएं अपने पतियों के हाथों शारीरिक, सेक्सुअल या साइकोलाजिकल प्रताड़ना की शिकार हैं। समूचे तंजानिया में घरेलू हिंसा यहां सबसे ज्यादा है।

एक स्थानीय एनजीओ के अनुसार प्रताड़ना की शिकार कुरिया महिलाओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए महिलाओं का घर उन्हें बचाने का एक सुरक्षित रास्ता है। और यह परंपरा इस समाज में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। जिस तारीमे जिले में इन दोनों महिलाओं की शादी हुई है वहां यह करीब 20 फीसद घरों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

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चाहा का कहना है कि यहां जिंदगी बहुत बेहतर है। कोई मुझे पीटता नहीं। कोई लड़ता नहीं है। यह बच्चों और अपने लिए भोजन की व्यवस्था करने की साझेदारी है।

चाहा कहती है कि 15 साल की उम्र में उससे शादी करने वाले पति से उसे जान का खतरा था। और वह अपने बेटे के लिए एक सुरक्षित माहौल चाहती थी इसलिए उसने पति को छोड़ दिया।

चाहा अपने पिता के घर गई लेकिन उसे अपने दहेज में मिले पैसे पति को लौटाने थे। उसके पति ने नौ गाय दी थीं जो भारतीय मुद्रा में करीब 15 हजार की होती हैं। इसके बाद वैम्बुरा ने चाहा का हाथ मांगा। उसने उसके दहेज की रकम अदा करने को भी कहा। इसके बाद वैम्बुरा की दहेज की रकम से उसके पूर्व पति को पैसा लौटा दिया गया। अब चाहा वैम्बुरा के परिवार की है।

वैम्बुरा की कहानी भी मिलती जुलती थी उसकी शादी 11 साल की उम्र में हुई थी। पहले बच्चे की जन्म के समय मौत के बाद वह दोबारा मां नहीं बन सकी। यहीं से उस पर अत्याचारों का सिलसिला शुरू हो गया। उसका पति उसे रोज मारता और कहता कि तुम बांझ हो मेरे घर से निकल जाओ।

एक दिन वह उसके घर से निकल गई। उसने 11 साल एक फिश फैक्ट्री में काम किया। फिर गांव लौट आई। वैम्बुरा के भाई ने एक प्लाट ले दिया है जिसमें वह घर बनाकर चाहा के साथ रहती है। वैम्बुरा कहती है चाहा के आने से जिंदगी खुशहाल हो गई है। उसे एक साथी मिल गया है।

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मजे की बात यह है कि चाहा ने वैम्बुरा से शादी करने के बाद तीन लड़कों को जन्म दिया है। अभी वह और बच्चे पैदा करना चाहती है क्योंकि स्थानीय परंपराओं के अनुसार उसे अपना साथी चुनने की आजादी है।

इसमें कोई बंधन नहीं है। वह गर्भवती होने तक पुरुष साथी के साथ रहती है और फिर उसे छोड़ देती है। बच्चे को जब तक मां का दूध चाहिए पिलाती है जब छोटा बच्चा दूध पीना बंद कर देता है तो फिर से नए साथी की तलाश में जुट जाती है।

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