वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की उपस्थिति घटाने के क्रम में 5 हजार से ज्यादा सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की है। ट्रंप का कहना है कि अमेरिका अब अफगानिस्तान में सिर्फ 8,600 सैनिक रखेगा। पिछले 18 साल से अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच लड़ाई चल रही है। जिसे खत्म करने के लिए बीते एक साल से दोनों के बीच बातचीत चल रही है। वार्ता के बीच के बाद ट्रंप ने सैुनक घटाने की घोषणा की है।
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अफगानिस्तान में 8,600 अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी के बाद उनकी संख्या जनवरी २०१७ के स्तर पर आ जाएगी। 2011 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या अपने सबसे ऊंचे स्तर एक लाख पर पहुंच गई थी। अफगानिस्तान से किसी आतंकी संगठन के अमेरिका पर फिर से हमले के सवाल पर ट्रंप ने कहा है कि 'हम इतनी ज्यादा संख्या में सैनिकों के साथ वापस आएंगे जितने पहले कभी नहीं आए होंगे।'
अफगानिस्तान में अपना ठिकाना बना कर आतंकी संगठन अल कायदा ने अमेरिका में 11 सितंबर 2011 को हुए हमले की योजना बनाई थी। उस घटना के एक महीने बाद ही अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया था और उसके बाद से अमेरिकी सैनिक वहां तैनात हैं। अमेरिका के बाद नाटो मिशन के सैनिक भी अफगानिस्तान में तैनात हैं। इनमें जर्मनी के 1,300 और ब्रिटेन के 1,100 सैनिक शामिल हैं।
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गृह युद्ध की आशंका
अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत में अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों को हटाने पर जोर दिया जा रहा है लेकिन तालिबान के सूत्रों का कहना है कि इस समझौते का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका समर्थित अफगान सरकार के साथ उनकी लड़ाई समाप्त हो जाएगी। अमेरिका और तालिबान के अधिकारी पिछले साल से कतर में बातचीत कर रहे हैं जिसका मकसद अफगानिस्तान से अमेरिकी सुरक्षाबलों की वापसी सुनिश्चित करना और लंबे समय से चल रहे संघर्ष का अंत है। हालांकि, इसके बदले में तालिबान को यह गारंटी देनी होगी कि वह अफगानिस्तान की धरती से कोई साजिश नहीं रचेगा।
अमेरिकी वार्ताकार तालिबान पर दबाव डाल रहे हैं कि वह काबुल सरकार के साथ तथाकथित अफगान आंतरिक वार्ता और संघर्ष विराम के लिए सहमत हो। अमेरिकी सरकार करीब 18 साल से चले आ रहे संघर्ष को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहती है, लेकिन अफगान अधिकारियों और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सहयोगियों को आशंका है कि विदेशी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में एक नया गृह युद्ध शुरू हो सकता है। इससे तालिबान की सत्ता में वापसी हो सकती है और वहां इस्लामिक स्टेट समेत अन्य अंतरराष्ट्रीय चरमपंथियों को शरण मिल सकती है।
अक्टूबर 2001 में जब से तालिबान को सत्ता से बेदखल किया गया है, वे तभी विदेशी सेनाओं को बाहर निकालने और अपना कट्टरपंथी शासन कायम करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वह अफगान सरकार से बात करने को तैयार नहीं हैं और उसे अमेरिका की कठपुतली बताते हैं। चरमपंथियों के नियंत्रण में अब 2001 की तुलना में ज्यादा क्षेत्र है। लड़ाई में नागरिकों के साथ-साथ काफी संख्या में लड़ाके भी मारे जा रहे हैं। वर्तमान में करीब 14 हजार अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में तैनात हैं। ये अफगान सैनिकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं और चरमपंथियों के हमलों पर जवाबी कार्रवाई भी कर रहे हैं। वहीं नाटो और अन्य सहयोगियों के करीब छह हजार सैनिक भी अफगान सैनिकों की मदद कर रहे हैं। एक साल से हो रही बातचीत के बावजूद संघर्ष में कमी नहीं आई है। अमेरिकी सेना अफगानिस्तान के सुरक्षाकर्मियों के साथ मिलकर तालिबान और इस्लामिक स्टेट के ठिकानों को ध्वस्त कर रही है।