थर-थर कांपेगा देश : तैयार रहें मौसम की तगड़ी मार के लिए, बढ़ने वाली है भयानक ठंड

America Weather: मार्च में अमेरिका (america winter) अपनी घड़ियाँ एक घंटा आगे बढ़ा देते हैं और रात का जब दो बजता है तो घड़ी की सुई तीन बजे पर सेट हो जाती ।

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Ragini Sinha
Update:2021-11-11 11:29 IST

America Weather: अमेरिका में हुआ 25 घंटे का दिन (Social Media)

America Weather: बीते 7 नवम्बर को अमेरिका (America today live news) में लोग एक घंटा ज्यादा सोये क्योंकि जब वे गहरी नींद में थे तो रात दो बजे सब घड़ियाँ एक घंटा पीछे हो गईं सुई रात एक बजे का समय दिखाने लगी। इसकी वजह थी सर्दियों के मौसम का आगमन, जिसमें दिन की रोशनी का भरपूर इस्तेमाल करना है। 

अमेरिका में सर्दी

दरअसल, हर साल मार्च में अमेरिका (america winter) जैसे देश अपनी घड़ियाँ एक घंटा आगे बढ़ा देते हैं और रात का जब दो बजता है तो घड़ी की सुई तीन बजे पर सेट हो जाती है। ऐसे में लोग एक घंटा जल्दी उठ जाते हैं। इस दिन से कामकाज का ढंग बदल जाता है। तर्क ये दिया जाता है कि अगर लोग 7 या 8 बजे तक सोते रहेंगे तो वे सूरज की रोशनी को बर्बाद ही करेंगे। सो, सूर्योदय के आसपास उठने से ज्यादा कामकाज किया जा सकता है और सूरज का भरपूर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस बदलाव का मतलब ये भी है कि सूरज एक घंटे बाद ढलेगा सो सिर्फ घड़ी की सुई में फेरबदल करने से सूरज की रोशनी का पूरा इस्तेमाल होने लगता है।

गर्मियों में दिन लम्बे होते हैं जबकि सर्दियों में छोटे

वहीं, सर्दियों में घड़ी फिर रिसेट करनी होती है क्योंकि सूरज देर से निकलता है। चूँकि बात अमेरिका की हो रही है तो अगर वहां सूर्योदय 8 बजे होता है और लोग 7 बजे ही उठ गए तो एक घंटा कोई कामधाम तो होगा नहीं, सो वह समय बेकार जाएगा। ऐसे में घड़ी को एक घंटा आगे बढ़ा दिया जाता है।दूसरे शब्दों में कहें तो सर्दियों और गर्मियों में घड़ियाँ इस तरह एडजस्ट कर दी जाती हैं ताकि सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके, समय और रोशनी की बर्बादी न होने पाए। गर्मियों में दिन लम्बे होते हैं जबकि सर्दियों में छोटे। 'डे-लाइट सेविंग टाइम' ( Day light saving time) के जरिये घड़ियों को रिसेट करके अपने दिनों को उसी के अनुरूप ढाल लिया जाता है।

घड़ियों को मौसम के हिसाब से रिसेट करने के आईडिया का श्रेय बेंजामिन फ्रेंक्लिन को जाता है। 1784 में उन्होंने 'जर्नल डे पेरिस' नामक पत्रिका के संपादक को एक व्यंगात्मक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें ये देख कर हैरानी हुई है की सूरज 6 बजे उगता है। फ्रेंक्लिन ने कहा कि चूँकि कोई पेरिसवासी 6 बजे नहीं उठता है सो दिन की रोशनी बेकार चली जा रही है। ऐसे में घड़ी की सुइओं को रात दो बजे एक घंटा आगे कर देने से सूरज 7 बजे उगने लगेगा और आप अँधेरी रातों को छोटा कर सकते हैं और मोमबत्तियों का खर्चा बचा सकते हैं।

फ्रेंक्लिन की बात को आर्थिक नजरिये से देखिये तो वह काफी मुफीद नजर आती है। 1916 में जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऊर्जा का खर्च बचाने के लिए घड़ियों को मौसम के अनुरूप एडजस्ट किया था। इसके बाद देखादेखी अमेरिका ने 1918 में यही लागू किया। 

नींद का चक्र बिगड़ने से दुर्घटनाएं भी बढ़ जाती 

हालाँकि घड़ियों को साल में बार एडजस्ट करने की परंपरा का हमेशा से विरोध भी होता रहा है। आलोचकों का कहना है कि ऐसा करने से न सिर्फ इकॉनमी बल्कि सेहत और स्वस्थ मनोदशा पर भी असर पड़ता है। कई अध्ययनों के अनुसार, नींद का चक्र बिगड़ने से स्ट्रोक और हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ जाता है। मार्च महीने में घड़ियाँ एक घंटा आगे किये जाने के बाद वाले हफ्ते में हार्ट अटैक की घटनाएँ 24 फीसदी बढ़ गईं थीं। नींद का चक्र बिगड़ने से दुर्घटनाएं भी बढ़ जाती हैं, आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। डे-लाइट सेविंग के आर्थिक नुकसान भी गिनाये जाते हैं, एक अनुमान के अनुसार घड़ी को एडजस्ट करने से अमेरिका की इकॉनमी को हर साल 434 मिलियन डालर का नुकसान होता है। बहरहाल, जो भी हो अमेरिका समेत विश्व के 72 देश हर साल दो बार अपनी घड़ियाँ रिसेट करते हैं। वैसे भारत में नार्थईस्ट के राज्यों में भी हर साल समय एडजस्ट किया जाता है क्योंकि वहां सूर्योदय और सूर्यास्त का समय काफी अलग रहता है।

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