Argentina Downfall: कभी बेहद अमीर था अर्जेंटीना, आज है डूबा महंगाई और कर्ज के दलदल में

Argentina Downfall: अर्जेंटीना की दास्तान विदेशी कर्जे, एक कल्याणकारी सिस्टम तथा कमाई से ज्यादा खर्चे के दलदल की है। यह एक ऐसा दलदल है जिससे अर्जेंटीना, जो कभी बेहद अमीर था, निकलने की बजाए और भी डूबता जा रहा है। महंगाई को कंट्रोल करने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ अर्जेंटीना ने अपनी प्रमुख ब्याज दर को 97 फीसदी कर दिया है।

Update: 2023-05-21 11:45 GMT

Argentina Downfall: मुद्रास्फीति, महंगाई, आर्थिक संकट - इन सबसे पूरी दुनिया जूझ रही है । लेकिन कुछ देशों का हाल तो बहुत खराब है। इनमें शामिल है अर्जेंटीना, जो कभी बहुत खुशहाल देश हुआ करता था ।लेकिन आज जबर्दस्त आर्थिक संकट के शिकंजे में है। आलम यह है कि महंगाई को कंट्रोल करने के लिए सेंट्रल बैंक ऑफ अर्जेंटीना ने अपनी प्रमुख ब्याज दर को 97 फीसदी कर दिया है।
अर्जेंटीना की दास्तान विदेशी कर्जे, एक कल्याणकारी सिस्टम तथा कमाई से ज्यादा खर्चे के दलदल की है। यह एक ऐसा दलदल है जिससे अर्जेंटीना, जो कभी बेहद अमीर था, निकलने की बजाए और भी डूबता जा रहा है।

30 साल के शीर्ष स्तर पर महंगाई

वैसे तो दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अर्जेंटीना में यह एक बहुत बड़ी समस्या है। यहां वार्षिक मुद्रास्फीति की दर 100 फीसदी से अधिक हो गई है। तुलना के लिए बता दें कि अमेरिका मे वार्षिक मुद्रास्फीति दर 5 फीसदी से नीचे और पाकिस्तान में 31.5 फीसदी है। इससे आप अर्जेंटीना में महंगाई की स्थिति का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इस देश में महंगाई 30 साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार, अर्जेंटीना में मुद्रास्फीति दर1990 के दशक की शुरुआत के बाद से उच्चतम स्तर है। वर्तमान में ऐसी उच्च मुद्रास्फीति झेलने वाले सिर्फ दो ही अन्य देश हैं - वेनेजुएला और जिम्बाब्वे।अर्जेंटीना में बीते 12 महीनों में खाद्य कीमतों में मुद्रास्फीति 115 फीसदी रही है। अत्यधिक मुद्रास्फीति के चलते अर्जेंटीना की मुद्रा 'पेसो' में हुए निवेश का बड़ा आउटफ्लो हुआ है, जिससे इस वर्ष अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पेसो के मूल्य में 23 फीसदी की गिरावट आई है। ये बहुत बड़ी गिरावट है।

एक स्थायी बीमारी

1930 की महामंदी से पहले, प्रति व्यक्ति धन के मामले में अर्जेंटीना दुनिया के 10 सबसे अमीर देशों में से एक था। लेकिन 1950 के दशक के बाद से अर्जेंटीना हर पांच - दस साल में आर्थिक संकट में फंसता रहा है। मुद्रास्फीति के साथ अर्जेंटीना की चल रही लड़ाई 1980 के दशक या उससे भी पहले की है। लेकिन कोरोना महामारी, यूक्रेन रूस युद्ध, वैश्विक खाद्य आपूर्ति में कमी और तेल - गैस की स्थिति ने पहले से ही पस्त अर्थव्यवस्था को और भी नीचे धकेल दिया है। आज 10 में से 4 अर्जेंटीनियाई नगरिक गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।

एकमात्र उपाय - नोट छापते जाओ

अर्जेंटीना में राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता ही गया है। सरकार जितना कमाती है उससे कहीं अधिक खर्च करती है। घाटा पाटने के लिए सेंट्रल बैंक अधिक 'पेसो' प्रिंट करता रहता है, जिसका नतीजा ये होता है कि पेसो की वैल्यू लगातार कम होती जाती है। अंततः मुद्रास्फीति और भी बदतर हो जाती है।

घरेलू उपभोक्ताओं की सुरक्षा और राजस्व अर्जित करने के लिए, अर्जेंटीना सरकार निर्यात करों पर बहुत अधिक निर्भर रहती है। इस साल की शुरुआत में सरकार ने अपने टॉप एक्सपोर्ट आइटम, प्रोसेस्ड सोयाबीन पर निर्यात कर 33 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि का है और उसे अधिक से निचोड़ने के तरीके निकाले जाते रहे हैं।

कर्ज का संकट

अर्जेंटीना के सामने एक बड़ा कर्ज संकट भी है। अर्जेंटीना पर 2018 के बेलआउट पैकेज के हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का 40 बिलियन बकाया है। लेकिन इसके बावजूद अर्जेंटीना ने इस वर्ष की शुरुआत में आईएमएफ से 44 बिलियन डॉलर का और ऋण ले लिया। अब देश के सामने एक डिफ़ॉल्ट का संकट बन गया है। वैसे, अर्जेंटीना के साथ डिफॉल्ट का इतिहास रहा है। 1956 में आईएमएफ में शामिल होने के बाद से, अर्जेंटीना ने आईएमएफ से 22 मर्तबा वित्तीय सहायता पैकेज प्रोग्राम मांगे है और ये उसे मिले भी हैं।

इनमें से सबसे उल्लेखनीय 2001 के अर्जेंटीना वित्तीय संकट के दौरान था जब यह 21.6 बिलियन डॉलर के आईएमएफ ऋण पर डिफ़ॉल्ट कर गया था। यही नहीं, इसने अन्य लेनदारों को 95 बिलियन डॉलर मूल्य के बांड पर भुगतान भी रोक दिया था। 2001 के संकट के बाद से देश के नागरिक देश की पहले से ही गंभीर आर्थिक स्थिति को बदतर करने के लिए आईएमएफ की कठोर शर्तों को दोषी ठहराते रहे हैं। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज भी आईएमएफ के 2018 ऋण को जहरीला और गैर-जिम्मेदार ठहराते हैं।

बीता हुआ शानदार कल

1900 की शुरुआत में अर्जेंटीना, फ्रांस और जर्मनी से ज्यादा अमीर था। उस दौर में देश के कृषि और विनिर्माण वादे से आकर्षित हो कर दुनिया भर से लोग यहां आकर बस गए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जनरल जुआन पेरेनएक शक्तिशाली श्रम मंत्री बन गए और उन्हीं के साथ देश में लोकलुभावनवाद आ गया। जुआन पेरोन, श्रम संबंधों, पेंशन और सामाजिक सेवाओं के प्रभारी थे। उन्होंने जनता को खूब सब्जबाग दिखाए। कुछ साल बाद पेरोन अर्जेंटीना के राष्ट्रपति बन गए। उनके द्वारा स्थापित आंदोलन आज भी विभिन्न भेषों में जीवित है। उनकी नीतियां दीर्घकालिक आर्थिक विकास की कीमत पर अल्पावधि में लोकप्रिय आर्थिक कल्याण को प्राथमिकता देती हैं। इसने देश का बहुत नुकसान किया है।

वेलफेयर सिस्टम

अर्जेंटीना के पास विकासशील दुनिया में सबसे बड़ी कल्याण प्रणाली है और इसके तहत सभी नागरिकों के लिए सेवाओं, सुविचाओं, परिवहन और रिटायरमेंट लाभों को सब्सिडी दी जाती है। मिसाल के तौर पर, एक औसत अर्जेंटीनियाई अपनी बिजली के लिए प्रति माह 5 डॉलर से कम के बराबर भुगतान करता है। इसके बिल्कुल विपरीत, इतालवी और जर्मन परिवारों को अपने मासिक बिजली बिलों पर क्रमशः 230 और 270 डॉलर से अधिक का भुगतान करना पड़ता है।

बॉटमलाइन

अर्जेंटीना में बाजार की स्थिति ये है कि बैंकों ने अचल संपत्ति के लिए लोन देना बंद कर रखा है जिसके चले प्रॉपर्टी की खरीद सिर्फ कैश में ही होती है। लोग किसी भी तरह प्रॉपर्टी खरीदने की कोशिश में रहते हैं क्योंकि करेंसी की कोई वैल्यू रही नहीं है। जिंसों के दाम हर दिन बदलते रहते हैं। टूरिस्टों को विदेशों में डेबिट कार्ड का उपयोग करने पर हर लेनदेन में लगभग 50 प्रतिशत का टैक्स चुकाना पड़ता है। सरकार और जनता, दोनों किसी तरह डॉलर के जुगाड़ में लगे रहते हैं।

अर्जेंटीना में इस साल अक्टूबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं सो सरकार का पूरा ध्यान पेसो को और गिरने से बचाने और महंगाई को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है। इत्तेफाक से देश के अर्थव्यवस्था मंत्री सर्जियो मस्सा भी राष्ट्रपति के संभावित उम्मीदवार हैं क्योंकि पिछले महीने राष्ट्रपति अल्बर्टो फर्नांडीज ने घोषणा की थी कि वह फिर से चुनाव नहीं लड़ेंगे। मस्सा की सफलता इस मुद्रास्फीति से लड़ने के परिणाम से जुड़ी होने की संभावना है। बहरहाल, जीते भले ही कोई , अर्जेंटीना की स्थिति हाल फिलहाल सुधरने वाली नहीं है। कर्ज का जाल ही कुछ ऐसा ही है|

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