रोहिंग्या विवाद : मानवाधिकार संगठन के निशाने पर म्यांमार सेना

Update: 2017-10-10 09:50 GMT

नेपेडा : एक मानवाधिकार संगठन ने म्यांमार के हिंसाग्रस्त राखिने प्रांत के रोहिंग्या गांवों में मानवीय सहायता पहुंचाने से रोके जाने पर म्यांमार सेना की आलोचना की है। मानवाधिकार संगठन 'द बर्मा मानवाधिकार नेटवर्क(बीएचआरएन)' ने कहा कि अगस्त के अंतिम सप्ताह में राखिने प्रांत में फैली हिंसा के बाद यहां बुठीडौंग नगर निगम के समीप के गांवों में मानवीय सहायता नहीं पहुंचाई जा सकी है।

कार्यकर्ताओं ने कहा कि अधिकारियों ने राखिने प्रांत के उत्तर में संयुक्त राष्ट्र को भी वहां सहयता पहुंचाने से रोक रखा है। यहां रोहिंग्या समुदाय की बहुसंख्यक आबादी रहती है।

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एनजीओ के अनुसार, केवल स्थानीय संगठन एवं अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति को ही इस क्षेत्र में जाने दिया जा रहा है, लेकिन सभी को बौद्ध बहुल इलाकों में ले जाया जा रहा है।

म्यांमार के राखिने प्रांत में 25 अगस्त को रोहिंग्या उग्रवादियों ने यहां 30 पुलिस चौकियों पर हमला कर दिया था, जिसमें 12 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। इसके बाद सेना ने कथित रूप से नागरिकों को मारा, उनके घर को जलाया और महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया था।

इस घटना के बाद फैली हिंसा में पांच लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिम भाग कर बंग्लादेश चले गए।

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मानवाधिकार संगठन ने यह भी कहा कि बांग्लादेशी अधिकारी रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर बंग्लादेश जा रहीं नौकाओं को क्षतिग्रस्त कर रहे हैं। बांग्लादेश के अधिकारी रोहिंग्या समुदाय के लोगों पर मादक पदार्थ लाने के आरोप लगा रहे हैं और जो मछुआरे इन लोगों की मदद कर रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। इस वजह से हजारों की संख्या में रोहिंग्या समुदाय के लोग दोनों देशों को विभाजित करने वाली नाफ नदी के पास फंसे हुए हैं।

ऐसा अनुमान है कि इस हिंसा से पहले राखिने प्रांत में करीब 10 लाख रोहिंग्या समुदाय के लोग रहते थे। म्यांमार सरकार इन्हें बांग्लादेश का अवैध प्रवासी मानती है और इनलोगों के साथ वहां काफी भेद-भाव किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र ने इस हिंसा को 'जातीय नरसंहार' के रूप में रेखांकित किया था।

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