बर्लिन : कभी मोबाइल फोन को कैंसर के लिए जिम्मेदार बताया जाता है, तो कभी ब्रेन ट्यूमर के लिए। हालांकि हमारे पास अभी भी बहुत ठोस सबूत नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब ये हरगिज नहीं कि मोबाइल फोन से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज किया जा सकता है। माना जाता है कि मोबाइल फोन से सबसे बड़ा खतरा होता है रेडिएशन का। इनसे रेडियो तरंगें निकलती हैं, जो हमारे शरीर के अंदर पहुंचती हैं। ऐसे कई शोध हुए हैं जो ब्रेन ट्यूमर के कारण के तौर पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल की ओर इशारा करते हैं लेकिन स्विट्जरलैंड के ट्रॉपिकल एंड पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के मार्टिन रोएसली का मानना है कि मोबाइल फोन से निकलने वाली तरंगों से डरने की कोई जरूरत नहीं है।
यह भी पढ़ें: नई गुलामी की चपेट में है सारी दुनिया
रोएसली का कहना है कि इन रेडियो तरंगों की फ्रीक्वेंसी इतनी कम होती है कि इसका शरीर पर कोई असर नहीं हो सकता। उनके अनुसार इसकी तुलना रेडियो और टीवी से निकलने वाली तरंगों से की जा सकती है। वे कहते हैं, 'ये रेडियोएक्टिव या एक्स रे जैसी किरणें नहीं हैं। इस तरह के रेडिएशन से डीएनए को सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं होता। स्मार्टफोन की लत ऐसी है कि छोटा हो या बड़ा, हर कोई हाथ में स्मार्टफोन लिए और सर झुकाए नजर आता है। फोन को देखते समय आपकी गर्दन झुकी रहती है और यह रीढ़ की हड्डी के लिए बेहद बुरा है। इससे सर्वाइकल का दर्द बढ़ता है व पीठ के दर्द की समस्या होती है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के फ्रैंक दे वोख्त का कहना है, 'अगर मोबाइल फोन के इस्तेमाल से कैंसर जैसी बीमारी में इजाफा होता, तो हमारे पास जो मौजूदा वैज्ञानिक तरीके हैं, उनके जरिए यह जरूर पकड़ में आ चुका होता। मिसाल के तौर पर धूम्रपान और फेंफड़े के कैंसर का सीधा संबंध ढूंढ लिया गया है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि मोबाइल फोन का किसी भी तरह से दिमाग पर असर नहीं पड़ता।
रोएसली ने 12 से 17 साल की उम्र के 700 युवाओं पर शोध किया और पाया कि फोन के इस्तेमाल से दिमाग की बातों को याद रखने की क्षमता पर असर पड़ता है। इसमें सबसे ज्यादा जिम्मेदार है फोन पर घंटों बातें करना। मस्तिष्क में पहुंचने वाला 80 फीसदी रेडिएशन फोन को सर के करीब पकड़ कर रखने की वजह से पहुंचता है। खास कर अगर फोन दाहिने कान पर लगा हो क्योंकि दिमाग का दाहिना हिस्सा यादों को समेट कर रखता है। लेकिन जहां तक टेक्स्ट मेसेज करने और ऐप्स के इस्तेमाल की बात है, तो इस शोध में उनका दिमाग पर बुरा असर नहीं देखा गया।
वोख्त का कहना है कि फोन को बाएं कान पर लगा कर या फिर हेडफोन्स और स्पीकर की मदद से इस बुरे असर से बचा जा सकता है। दोनों विशेषज्ञों का कहना है कि शारीरिक असर से ज्यादा मानसिक असर पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि स्मार्टफोन की लत लोगों के बर्ताव को बदल रही है। ऐसे में फोन के मानसिक असर की दिशा में अधिक शोध की जरूरत है।