Taliban Rule In Afghanistan: तालिबान राज को दुनिया के देशों का झटका, 80 फीसदी दूतावास कर्मचारी भागे

तालिबान को दुनिया में बने अफगान दूतावासों से झटका लगा है। 80 फीसदी कर्मचारी देश छोड़कर भाग चुके हैं। कई दूतावासों ने तो तालिबान की सरकार से अब तक कोई संपर्क ही नहीं किया है, फ्रांस व जर्मनी सहित कई दूतावासों में तैनात राजनयिकाें ने मेजबान देशों में शरण मांगी है।

Newstrack :  Network
Published By :  Deepak Kumar
Update:2021-09-20 08:42 IST

तालिबान।(Social Media)

Taliban Rule In Afghanistan: अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के कारण सैकड़ों अफगान राजनयिक दुनियाभर के देशों में अधर में हैं। उनके पास दूतावास चलाने के लिए धन नहीं, साथ ही वे अफगानिस्तान में फंसे परिवार के लिए चिंतित हैं।वहीं, अफगान विदेश मंत्रालय के 80 फीसदी कर्मचारी देश छोड़कर भाग चुके हैं। नतीजे में तालिबान के लिए कूटनीतिक मोर्चे पर बढ़ना मुश्किल हो रहा है। ज्यादातर दूतावासों से तालिबान का संपर्क कट गया है। मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि पूरा मंत्रालय खाली हो गया है। कर्मचारी नौकरी छोड़ चुके हैं या देश से बाहर जा चुके हैं।अन्य देशों में चल रहे अफगान दूतावास भी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में है। कई दूतावासों ने तो तालिबान की सरकार से अब तक कोई संपर्क ही नहीं किया है, फ्रांस व जर्मनी सहित कई दूतावासों में तैनात राजनयिकाें ने मेजबान देशों में शरण मांगी है। कई दूतावास पूर्व मंत्री हनीफ अतमार व पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह के संपर्क में हैं।

विदेशों में स्थित अफगान मिशन नहीं दे रहे मंत्रालय के संदेशों का जवाब

पजवॉक अफगान न्यूज के अनुसार कुछ दूतावास तो स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं, उनका राजस्व कहां से आ रहा है, इसका कोई पता नहीं है। एक दूतावास ने तो अपना कोई हिसाब ही देने से मना कर दिया है। पांच दूतावास ऐसे हैं, जो तालिबानी मंत्रालय की किसी बात का जवाब ही नहीं दे रहे हैं। कुछ ही ऐसे दूतावास हैं जिनसे तालिबान का संपर्क है। इन दूतावासों के राजदूत भी नहीं समझ पा रहे हैं कि मेजबान देश उन्हें मान्यता भी देंगे या नहीं।

विदेश मंत्री को रद्द करनी पड़ी राजदूतों के साथ बैठक

हालत ये है कि कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने राजदूतों के साथ वर्चुअल बैठक का आयोजन किया, जिसे बाद में रद्द करना पड़ा, क्योंकि अधिकांश दूतावासों से कोई जवाब ही नहीं मिला। विदेश मंत्रालय का राजनीतिक विभाग ही दूसरे देशों में दूतावासों से संपर्क रखता है। अब यहां भी कुछ ही अधिकारी बचे हैं।

अफगान महिला अधिकार कार्यकर्ता ने की ये अपील

पूर्व अफगान सरकार में शांति वार्ता प्रतिनिधिमंडल की सदस्य रह चुकीं महिला अधिकार कार्यकर्ता फौजिया कूफी ने रविवार को लड़कियों से अपील की, उन्हें अपने स्कूल खुद खोल लेने चाहिए। इसके अलावा उनके शिक्षकों को भी इसके लिए प्रदर्शन करना चाहिए। खामा प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कूफी ने कहा कि तालिबान ने महिला अधिकारों की रक्षा का वादा किया था, लेकिन सच्चाई यही है, महिला अधिकारों को सबसे ज्यादा खतरा ही तालिबान से है। असल में तालिबान ने बच्चों के लिए स्कूल शुरू करने ऐलान किया है, जिसका यूनिसेफ ने स्वागत करते हुए कहा था कि बच्चियों को भी स्कूल जाने की इजाजत दी जानी चाहिए। यूनिसेफ की प्रमुख हैनरिटा फोरे ने कहा, हम बहुत चिंतित हैं कि लड़कियों को स्कूल नहीं जाने दिया जा रहा है। यूनिसेफ पूरे प्रयास करेगा, ताकि लड़के-लड़की समान रूप से शिक्षा पा सकें।

निष्क्रिय हैं दूतावास

ब्रिटेन की नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ अध्येता अफजल अशरफ कहते हैं कि ज्यादातर दूतावास निष्क्रिय पड़े हैं। क्योंकि, तालिबान को मान्यता न मिलने से वे किसी सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं करते, उन्होंने उम्मीद जताई कि ज्यादातर दूतावास कर्मचारियों को शरण दी जा सकती है। क्योंकि तालिबान क्रूर कृत्यों के लिए कुख्यात रहा है।

दूत देश की संपत्ति: तालिबान

दूतावासों को काम जारी रखने का निर्देश देते हुए तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने कहा कि ये दूत देश की संपत्ति हैं। कनाडा में एक दूतावास कर्मी ने बताया कि फंड ही नहीं है तो वे कैसे काम जारी रखें। नई दिल्ली में दूतावास कर्मचारियों ने बताया कि हजारों अफगानाें को मदद की जरूरत है, लेकिन इतना धन नहीं है कि उनकी मदद कर पाएं। ऑस्ट्रिया में राजदूत मनिजा बख्तारी टि्वटर पर अफगानिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों पर लिखती रहती हैं। चीन में राजदूत जाविद अहमद कायम भी तालिबान के वादों पर भरोसा नहीं करने के लिए दुनिया को चेताते रहते हैं।

Tags:    

Similar News