अमेरिकी चुनावः सियासत गरमाई, हार-जीत मानना है चुनौती
अमेरिकी के मात्र पांच फीसदी लोगों का मानना है कि इस बार का चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र होगा। चुनाव के बाद हिंसा की भी आशंका है, कुछ लोग चुनाव बाद किसी अनहोनी की आशंका में खाने-पीने की चीजें और पानी का स्टॉक जमा करके रख ले रहे हैं।
नई दिल्ली: कोरोना महामारी, डोनाल्ड ट्रम्प की हैरतंगेज स्टाइल, ईरान की नापाक हरकतें, डमी बैलट बॉक्स और रहस्यमयी ईमेल – इन सब ने अमेरिका के चुनाव को एक पोलिटिकल थ्रिलर बना दिया है। डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर अभी से अमेरिकी सेना से आग्रह कर रहे हैं कि वह शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन में मदद करे। हालात ये हैं कि अमेरिकी के मात्र पांच फीसदी लोगों का मानना है कि इस बार का चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र होगा।
चुनाव के बाद हिंसा की भी आशंका है, कुछ लोग चुनाव बाद किसी अनहोनी की आशंका में खाने-पीने की चीजें और पानी का स्टॉक जमा करके रख ले रहे हैं। दरअसल, अमेरिका में लोगों को इतने बड़े पैमाने पर चुनावी विवाद का अनुभव नहीं है, वहां कभी ऐसे हालात नहीं बने हैं जैसे इस बार के हैं। इस बार सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि डेमोक्रेट्स और उसके समर्थन वाला मीडिया इस प्रचार में पूरी ताकत से लगा हुआ है कि अगर ट्रम्प जीते तो वो फ्रॉड की बदौलत ही जीतेंगे। इस प्रचार से स्थितियां अभी से बहुत गरमायी हुई हैं।
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क्या है संभावना
वोटिंग का समय बढ़ा दिया जाए
हर चुनाव में कुछ व्यवधान-गड़बड़ी होती ही है। कभी चुनाव कर्मी देर से पहुँचते हैं, बिजली कट जाती है, इलेक्ट्रॉनिक मशीन फेल हो जाती है – कुछ भी व्यवधान आ सकता है। 2018 में फीनिक्स में एक पोलिंग स्टेशन की बिल्डिंग चुनाव से एक दिन पहले कुर्क हो गई थी जिसके कारण काफी अफरातफरी मच गयी थी। ऐसी घटनाएँ होने पर अधिकारी कोर्ट की शरण में जा कर वोटिंग का समय बढ़ाने की मांग कर सकते हैं।
यदि आखिरी दिन मतदाताओं की लम्बी लाइनें लगतीं है 3 नवम्बर को सम्भवतः देर रात या अगले दिन वोटिंग बंद घोषित की जा सकती है। वैसे तो ऐसी छिटपुट घटनाओं से काउंटिंग में कोई असर नहीं पड़ता लेकिन जब हालात नार्मल नहीं हैं तो कोई समस्या क्या रूप ले लेगी, कोई नहीं बता सकता।
जीत का झूठा दावा
एक सम्भावना ये भी बनती है कि प्रत्याशी नतीजा आने से पहले ही अपने को विजयी घोषित कर दें। वोटिंग बंद होने के बाद मीडिया, विदेशी ताकतों और प्रत्याशियों में कयास और अपने अपने दावों को बताने की होड़ लगनी तय है। एरिज़ोना और फ्लोरिडा जैसे राज्यों में जिस पार्टी के प्रत्याशी को बढ़त मिलेगी वो पार्टी और उसके समर्थक अपनी जीत की घोषणा कर सकते हैं।
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डेमोक्रेट्स और उसके समर्थक मीडिया की आशंका है कि शुरुआती परिणामों में अच्छी स्थिति होने पर ट्रम्प जरूर अपने को विजयी घोषित कर देंगे। बाद के परिणाम अगर उनके खिलाफ गए तो वे फ्रॉड का आरोप लगा सकते हैं। डेमोक्रेट समर्थक मीडिया इस तरह से प्रोजेक्ट कर रहा मानो ट्रम्प का जीतना असंभव है और अगर वे जीतते हैं तो जरूर कोई गड़बड़ी हुई होगी।
नार्थ कैरोलिना और फ्लोरिडा इस चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण राज्य हैं। इन दोनों राज्यों में 3 नवम्बर की रात में ही नतीजा आने का अनुमान है। इनमें से किसी भी राज्य में अगर बिडेन को शुरुआती जीत मिलती है तो इसका मतलब होगा कि एक – दो दिन में बिडेन ही स्पष्ट विजेता होने जा रहे हैं। लेकिन अगर ट्रम्प इन राज्यों में जीतते हैं तो इसका मतलब बिडेन की हार नहीं होगी। इसका मतलब होगा कि देश को अनिश्चितता के लम्बे दौर से गुजरना होगा। और जितनी देर होगी उतनी ही संभावना होगी कि अन्य समस्याएं पैदा हो जाएँ।
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सोशल मीडिया की तैयारी
चुनाव नतीजों के बाद या पहले कोई पक्ष झूठे दावे न करे इसके लिए सोशल मीडिया साइट्स ने तैयारी कर रखी है। झूठे दावों वाली पोस्ट को ब्लाक करने के लिए फेसबुक औत ट्विटर ने तंत्र बनाने की बात कही है। फेसबुक ने कहा है कि वह चुनाव में जीत वाले विज्ञापन ब्लाक कर देगा जब तक कि स्वतंत्र पर्यवेक्षक नतीजों के बारे में हामी न भर दें।
सशस्त्र ग्रुप गोलबंद होंगे
ये साफ़ है कि चुनाव नतीजे को कोई भी पक्ष बिना किसी समस्या के स्वीकार नहीं करेगा। जो पक्ष पीछे होगा वो सभी तरह की कानूनी राय जरूर लेगा। डेमोक्रेटिक प्रत्याशी जो बिडेन पहले से ही सैकड़ों वकीलों को तैयार रखे हुए हैं। हारने वाला पक्ष महीन से महीन कानूनी पेंच या चूक ढूंढेगा ताकि नतीजों को चैलेन्ज किया जा सके। शुरुआती 24 घंटों में सड़कों से लेकर ऑनलाइन – दोनों जगह संघर्ष की आशंका है। श्वेत और अश्वेत सशस्त्र गुट बीते दिनों में अपनी ताकत का अहसास करा चुके हैं और चुनाव नतीजे के बाद स्थिति बिगड़ने की ही आशंका है। अगर सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए तो उसे काबू कर पाना मुश्किल होगा क्योंकि दोनों ही पक्ष आग में घी डालते रहेंगे।
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हैकरों का हमला
चुनाव में साइबर हमलों की बार बार चेतावनी दी गयी है और ये साफ़ हो गया है कि ईरान और रूस अपनी हरकतों में जुटे हुए हैं। सबसे बुरी स्थिति ये होगी कि साइबर हैकर वोटों में ही हेरफेर कर दें। इससे बड़ा ख़तरा उन ग्रुप्स से है जो ये काल्पनिक रूप से बता रहे हैं कि उन्होंने वोटों को पहले ही बदल दिया है। विदेशी और देशी ताकतें अमेरिकी जनता का अपने ही लोकतंत्र में भरोसा डगमगाने की कोशिश कर सकते हैं। ये तत्व दरअसल किसी प्रत्याशी को हराना या जिताना नहीं चाहते बल्कि अमेरिकी चुनाव व्यवस्था को ही ध्वस्त कर देना चाहते हैं।
नीलमणि लाल
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