World Environment Day 2022: दुनिया बचाने का आखिरी मौका, जानिए क्या कहती है IPCC की रिपोर्ट

World Environment Day 2022: विकास की तेज़ रफ्तार और औद्योगिकरण के कारण ग्रीन हाउस गैस का अत्यधिक उत्सर्जन करके हमने पृथ्वी का तापमान 1.1 डिग्री बढ़ा दिया है।

Written By :  Dr. Seema Javed
Update:2022-06-05 06:50 IST

World Environment Day 2022 (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

World Environment Day 2022: डॉ. सीमा जावेद वर्ष 1972 में 5-16 जून स्टॉकहोम में ह्यूमन एनवॉयरमेंट (Human Environment) पर हुई संयुक्‍त राष्‍ट्र की पहली कॉन्फ्रेंस (United Nations First Conference) की 50वीं वर्षगांठ आज 5 जून को है। स्टॉकहोम सम्मेलन (Stockholm Conference) के प्रमुख परिणामों में से एक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का निर्माण था। जिसने आर्थिक विकास एवं प्रदूषण के बीच संबंध पर विकसित और विकासशील देशों के बीच एक संवाद की शुरुआत की।

50 वर्षों के मंथन के बावजूद न तो दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों (Greenhouse Gas) का उत्सर्जन रूका और न ही जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर लगाम कसी जा सकी। पिछले लगभग 150 वर्षों में 1850 से अब तक विकास की तेज़ रफ्तार और औद्योगिकरण के कारण ग्रीन हाउस गैस का अत्यधिक उत्सर्जन करके हमने पृथ्वी का तापमान 1.1 डिग्री बढ़ा दिया। जिसके चलते पृथ्वी के बीते 2000 सालों के इतिहास कि तुलना में अब, धरती का तापमान बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण झेलनी पड़ रही भीषण हीटवेव

भारत में इस वर्ष मार्च अप्रैल में जिस भयानक गर्मी या हीटवेव का सामना करना पड़ा है, उसे जलवायु परिवर्तन ने 30 गुना बढ़ाया यानी कि अगर मनुष्य की हरकतों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो यह भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता। अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो ऐसी हीटवेव की संभावना हर 5 साल में एक बार होगी। अगर हालत यही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब भीषण गर्मी के कर्ण धरती का एक तिहाई भू भाग अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के सामान रहने योग्य न रहे।

दुनिया बचाने का आख़िरी मौक़ा

हाल ही में नवीनतम इंटरगवर्नमेनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया बचाने का आख़िरी मौक़ा: अगर हम अगले आठ साल में वर्ष 2030 तक ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन आधे कर दें तो दुनिया विनाश से बच सकती है जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हमें अपने उत्सर्जन को जीरो पर लाना होगा। उत्सर्जन में कटौती के बिना, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना पहुंच से बाहर है। वैज्ञानिकों ने चैताया कि इस काम के लिए ऊर्जा क्षेत्र में बड़े बदलाव की आवश्यकता है और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में भारी कमी लानी होगी ।

आईपीसीसी ने चार खंडों वाली अपनी छठी असेसमेंट रिपोर्ट का तीसरा हिस्सा अप्रैल के पहले सप्‍ताह में जारी किया है। इसे इस बात की सबसे व्यापक समीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है कि कैसे दुनिया जलवायु परिवर्तन की रोकथाम कर सकती है।इसमें यह र्सिफ़ारिश की गयी है कि जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और भविष्‍य में उत्‍पन्‍न होने वाले डरावने नतीजों को रोकने के लिये फौरन सार्थक कदम उठाने और जीवाश्म ईंधन से हो रहे अक्षय ऊर्जा रूपांतरण का और बेहतर प्रदर्शन करने की जरूरत है।

रिपोर्ट से साफ़ है कि 2050 तक 'नेट-जीरो' तक पहुंचना दुनिया को सबसे खराब स्थिति से बचने में मदद करेगा। रिपोर्ट यह भी कहती है कि मौजूदा हालात ऐसे हैं कि 1.5 या 2 डिग्री तो दूर, हम 2.7 डिग्रीज़ कि तापमान वृद्धि की ओर अग्रसर हैं। एक और महत्वपूर्ण बात जो यह रिपोर्ट सामने लाती है कि नेट ज़ीरो के नाम पर अमूमन पौधारोपण या कार्बन ओफसेटिंग कि बातें की जाती हैं। मगर असल ज़रूरत है कार्बन उत्सर्जन को ही कम करना। न कि हो रहे उत्सर्जन को बैलेंस करने कि गतिविधियों को बढ़ावा देना।

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