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क्या है वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की कहानी, क्यों हैं दोनों जुड़े हुए
आज वसंत पंचमी है। वसंत के आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना की सतत शुरुआत होती है। फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का फूल मानो सोने सा चमकने लगता है
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: आयो वसंत ऋतुराज, पहने सुभग पुहुप साज लिए सकल साज समाज, बजावत दुंदुभी बाज, सब दुख दमन शमन, करत मुदित मन वंदन, आयो वसंत ऋतुराज। डा. नवीन कुमार उपाध्याय की ये पंक्तियां वसंत का वास्तविक चित्रण करती हैं।
आज वसंत पंचमी है। वसंत के आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना की सतत शुरुआत होती है। फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का फूल मानो सोने सा चमकने लगता है, जौं और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता है, रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगती हैं। भंवरे भंवराने लगते हैं। लेकिन एक सवाल आप सबके मन में उठ रहा होगा कि वसंत पंचमी को क्यों मनाते हैं। ये दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष का पहला दिन भी तो हो सकता था तो आइए जानते हैं इसकी कहानी..
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वसंत पंचमी की कहानी
उपनिषदों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन मनुष्य मौन रहता था। कोई कुछ बोलता ही नहीं था। इसलिए अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं हुए, उन्हें लगा कि कहीं कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब ब्रह्मा ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्रीविष्णु की आराधना आरम्भ की।
विष्णुजी के आह्वान पर भगवती दुर्गा प्रकट हुईं
ब्रम्हाजी की स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु उनके सम्मुख प्रकट हुए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा का आह्वान किया। विष्णुजी के आह्वान पर भगवती दुर्गा प्रकट हुईं तो ब्रम्हा एवं विष्णु ने उनसे इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रम्हा और विष्णु की समस्या को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से श्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं, वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्, वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल होना शुरू हो गया। वायु चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा।
फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते - देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।
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विद्या और बुद्धि प्रदाता
चूंकि वह दिन वसंत पंचमी का था इसलिए हम मां सरस्वती के जन्म दिन और शब्द रस का संचार होने से वसंत का उत्सव इस दिन मनाते हैं। सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।
इसलिए भी वसंत पंचमी मनायी जाती है
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।