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Bhagavad Gita Adhyay First: भगवद्गीता - अध्याय - 1 श्लोक (श्री कृष्ण और अर्जुन संवाद)

Bhagavad Gita Adhyay First: शंखनाद होने के पहले दुर्योधन ने पांडवों की व्यूहमय सेना को देखा तथा देखकर वह सर्वप्रथम आचार्य द्रोण के पास गया तथा उनसे पांडव पक्ष और अपने पक्ष के योद्धाओं की चर्चा की।

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Published on: 4 July 2023 12:44 PM GMT
Bhagavad Gita Adhyay First: भगवद्गीता - अध्याय - 1 श्लोक (श्री कृष्ण और अर्जुन संवाद)
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Bhagavad Gita Adhyay First (Pic: Social Media)

Bhagavad Gita adhyay first:

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पांडव:।।२०।।

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।

सरलार्थ - अर्जुन ने शस्त्र चलाने हेतु धनुष उठा कर श्री कृष्ण से यह कहा।

निहितार्थ - संजय प्रथम बार दुर्योधन के लिए 'दृष्ट्वा' शब्द का प्रयोग करते हैं। पुनः अब दूसरी बार 'दृष्ट्वा' शब्द का प्रयोग अर्जुन के लिए कर रहे हैं। दुर्योधन एवं अर्जुन दोनों ने देखा, लेकिन देखने के बाद दोनों के द्वारा उठाए गए कदम सर्वथा अलग -अलग थे। शंखनाद होने के पहले दुर्योधन ने पांडवों की व्यूहमय सेना को देखा तथा देखकर वह सर्वप्रथम आचार्य द्रोण के पास गया तथा उनसे पांडव पक्ष और अपने पक्ष के योद्धाओं की चर्चा की। पांडव पक्ष को देखकर उसने न तो धनुष - बाण उठाया और न ही गदा उठाया। शंखनाद पश्चात् धृतराष्ट्र की घोष - निनाद से भयभीत सेना को देखकर शस्त्र चलाने के लिए अर्जुन ने धनुष उठा लिया। यदि भीषण शंखनाद नहीं होता, तो अर्जुन निर्विकार ही रहता।

बाह्य - परिस्थिति का भी मानव मन पर तात्कालिक प्रभाव पड़ता है। बाहर की परिस्थिति भी मनुष्य पर अपना अमिट छाप छोड़ जाती है। किसी चूल्हे में कोयले अंगारों के रूप में दहक रहे हों, वहीं पास में पड़े ठंडे कोयले के टुकड़े को उस चूल्हे में डाल दिया जाए, तो वह टुकड़ा भी उन्हीं की तरह गर्म हो दहकने लगता है। यह बाह्य-परिस्थिति का परिणाम होता है। माहौल मनुष्य के मन को अपनी ओर मोड़ लेता है।

अब तक तो अर्जुन शांत था क्योंकि माहौल शांतमय था। पर अब तीव्र कोलाहल ने उसके भीतर वीर - रस का भाव संचार कर दिया, जिससे वह उत्तेजित हो उठा। उसके परिणाम स्वरूप उसने अपना गांडीव धनुष उठा लिया तथा धनुष उठा कर श्री कृष्ण को कहा।

यहां यह ध्यान देने की बात है कि रणक्षेत्र में धृतराष्ट्र - पक्ष की ओर से सर्वप्रथम दुर्योधन ने वक्तव्य रखा था, तत्पश्चात् भीष्म ने शंखनाद किया था। पर, पांडव - पक्ष में ठीक इसके विपरीत हो रहा है। पहले श्री कृष्ण शंखनाद करते हैं, उसके बाद अर्जुन शंखनाद कर अपना वक्तव्य रखने जा रहे हैं।

हम सब इस बात से अवगत हो चुके हैं कि भगवद्गीता के अंतर्गत सबसे पहले धृतराष्ट्र ने कहा, फिर संजय ने कहा तथा दुर्योधन ने कहा है। ये सभी धृतराष्ट्र - पक्ष के हैं। यहां सभी तीनों कहते हैं, पर कहने का ढंग अलग - अलग है। धृतराष्ट्र प्रश्न करते हैं, संजय युद्धक्षेत्र का वर्णन करते हैं एवं दुर्योधन दोनों सेनाओं का आकलन करता है तथा द्रोणाचार्य को दिशा - निर्देश देता है। पांडव - पक्ष की ओर से सर्वप्रथम अर्जुन अपना वक्तव्य रखने जा रहे हैं।

(मिथिलेश ओझा के फेसबुक पेज से साभार)

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