×

इन मंत्रों से पहले दिन करें शैलपुत्री रूप की पूजा, मां दुर्गा दूर करेंगी हर पीड़ा

नवरात्रि पर मां की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। इसके पीछे का तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।इस बार कलश स्‍थापना का शुभ मुहूर्त  सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 10 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। वैसे कलश स्‍थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त भी है। 

suman
Published on: 25 March 2020 11:03 AM IST
इन मंत्रों से पहले दिन करें शैलपुत्री रूप की पूजा, मां दुर्गा दूर करेंगी हर पीड़ा
X

जयपुर: नवरात्रि पर मां की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। इसके पीछे का तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।इस बार कलश स्‍थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 19 मिनट से 10 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। वैसे कलश स्‍थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त भी है। इस दिन चाहे कलश में जौ बोकर मां का आह्वान करें या नौ दिन के व्रत का संकल्प लेकर ज्योति कलश की स्थापना करें। मां से संकल्प करके खास तौर पर विनती करें कि इस महामारी से दुनिया को बचाएं। हम सब की रक्षा करें।

या देवी सर्वभुतेषू विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।’

वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। इस दिन कलश स्थापना और मां के प्रथम शैलपुत्री के पूजन के साथ नवरात्र शुरू हो जाता है।।

नवरात्रि के पावन पर्व के मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का ज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। पहले दिन शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है।

यह पढ़ें...राशिफल 25 मार्च: चैत्र नवरात्रि का पहला दिन कैसा रहेगा, जानिए…

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। ये नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

कैसे हुआ मां के शैल रूप का जन्म

मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म हुआ था। इनका वाहन वृषभ होने से देवी को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इनको सती के नाम से भी जाना जाता हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, केवल भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

यह पढ़ें...ऐसे करें चैत्र नवरात्रि में देवी मां का आह्वान, मां दुर्गा करेंगी सृष्टि का उद्धार

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव और दक्ष के अपमानजनक वचन से सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का ये अपमान न सह सकीं और योगाग्नि में खुद को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्तियां अनंत है।

suman

suman

Next Story