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Chhath Puja: छठ पूजा आज से शुरू, जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्योहार
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होने वाली छठ पूजा के पर्व की शुरूआत दो दिवस पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होती है। इस वर्ष षष्ठी तिथि 20 नवंबर को है इसलिए दो दिन पूर्व 18 नवंबर यानी आज से चार दिनों के इस त्यौहार की शुरूआत हो गई है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होने वाली छठ पूजा के पर्व की शुरूआत दो दिवस पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होती है। इस वर्ष षष्ठी तिथि 20 नवंबर को है इसलिए दो दिन पूर्व 18 नवंबर यानी आज से चार दिनों के इस त्यौहार की शुरूआत हो गई है। वैसे तो इसे पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन बिहार, यूपी और झारखंड में इसे खासतौर पर मनाया जाता है।
कोरोना की वजह से लगे कई तरह के प्रतिबंध
इस दिन लोग संतान की सुखी व निरोगी जीवन की कामना के साथ छठ माता का व्रत रखते है। इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण कई तरह के प्रतिबंध लागू है लेकिन छठ पर लोगों के उत्साह में कमी नहीं दिख रही है। छठ पूजा और व्रत से जुड़ी कई कथाएं और मान्यतायें प्रचलित है। आइये जानते है इन कथाओं व मान्यताओं के बारे में -
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ये है मान्यता
यह कथा देवासुर संग्राम की है। इस संग्राम में जब देवता हार गए तो देवताओं की माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव के जंगलों में छठी माता की पूजा-अर्चना की थी। माता अदिति की पूजा से प्रसन्न छठी माता ने उन्हे एक पराक्रमी पुत्र का आर्शीवाद दिया। जिसके बाद माता अदिति के इसी पुत्र ने देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। इस कथा के अनुसार जिस तरह छठी माता ने माता अदिति के दुुखों का निवारण किया था उसी तरह से इस दिन व्रत रखने व छठी माता की पूजा-अर्चना करने से सभी दुखों का निवारण होता है।
यहां से शुरू हुआ छठ पूजा का प्रचलन
एक अन्य कथा के अनुसार लंका विजय के बाद अयोध्या वापस लौटने पर सूर्यवंशी भगवान राम और सीता माता ने व्रत रखा था और सरयू में स्नान करके अपने कुल देवता सूर्य देव की उपासना की और अस्तगामी सूर्य को अध्र्य दे कर पूजा की। जिस दिन भगवान राम ने व्रत रखा था वह तिथि कार्तिक मास की षष्ठी तिथि थी। भगवान राम के इस व्रत को अयोध्या की जनता ने भी अपना लिया और वह भी इस तिथि में व्रत करने लगी। इसके बाद से ही छठ पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
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इसी तरह एक कथा के अनुसार एक राजा थे प्रियवंद। राजा प्रियवंद और उनकी पत्नी रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। पुत्र की अभिलाषा में वह महर्षि कश्यप के पास गए और अपनी व्यथा बताई। महर्षि कश्यप ने उन्हे एक यज्ञ करने को कहा। राजा ने यज्ञ किया और यज्ञ के फलस्वरूप् उन्हे पुत्र प्राप्ति भी हुई लेकिन यह मृत शिशु था। इससे निराश हो कर राजा एवं रानी दोनों ही आत्महत्या करने के लिए तैयार हो गए। इसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई और उन्होंने राजा को अपना परिचय देते हुए कहा कि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई है इसीलिए उन्हे षष्ठी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि उनके षष्ठी स्वरूप की पूजा-अर्चना करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस पर राजा प्रियवंद और रानी मालती ने षष्ठी देवी का व्रत और पूजन किया। जिसके बाद उन्हे पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने यह पूजा कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को की थी इसीलिए इस दिन इस व्रत और पूजा को किया जाता है।