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धनतेरस 2020: वेदकाल के अश्विनी कुमारों का पर्याय हैं भगवान धन्‍वंतरि

आयुर्वेद को अनादि एवं शाश्वत कहा गया है क्योंकि जब से आयु जीवन का प्रारंभ हुआ जब से जीव को ज्ञान हुआ तभी से आयुर्वेद की सत्ता प्रारंभ होती है शरीर इंद्रिय मन और आत्मा के सहयोग का नाम आयु है।

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Published on: 9 Nov 2020 3:45 PM GMT
धनतेरस 2020: वेदकाल के अश्विनी कुमारों का पर्याय हैं भगवान धन्‍वंतरि
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धनतेरस 2020: वेदकाल के अश्विनी कुमारों का पर्याय हैं भगवान धन्‍वंतरि

अखिलेश तिवारी

आयुर्वेद को अनादि एवं शाश्वत कहा गया है क्योंकि जब से आयु जीवन का प्रारंभ हुआ जब से जीव को ज्ञान हुआ तभी से आयुर्वेद की सत्ता प्रारंभ होती है शरीर इंद्रिय मन और आत्मा के सहयोग का नाम आयु है। नित्य प्रति चलने से कभी एक क्षण भर के लिए भी ना रुकने से इसे आयु कहते हैं।

आयु का ज्ञान जिस शिल्प विद्या से प्राप्त किया जाता है वह आयुर्वेद है। यह आयुर्वेद मनुष्यों की भांति वृक्ष पशु-पक्षी आदि से भी संबंधित है इसलिए इसके विषय में संहिताएं बनाई गई। ज्ञान का प्रारंभ सृष्टि के पूर्व हुआ ऐसा भी मानने वाले विद्वान है । सुश्रुत के विचार से आयुर्वेद पहले उत्पन्न हुआ और उसके बाद प्रजा उत्पन्न हुई। आयु के लिए क्या उपयोगी है क्या अनुपयोगी है यह जानना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार आयु संबंधी ज्ञान शाश्वत है केवल इसका बोध और उपदेश मात्र ही ग्रंथों में किया गया है।

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सुश्रुत संहिता के उपदेष्ठा धन्वंतरि

सुश्रुत संहिता के उपदेष्ठा धन्वंतरि हैं। जिन्होंने सुश्रुत प्रभृत शिष्यों को शल्य ज्ञान मूलक उपदेश दिया। वेद संहिता तथा ब्राह्मण भाग में धन्वंतरि का उल्लेख नहीं है महाभारत तथा पुराणों में इनका वर्णन मिलता है भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। कथा है कि समुद्र मंथन से निकले कलश के साथ अंडज रूप में उनका प्रादुर्भाव हुआ है। बाल्मिक कृत रामायण में इसका उल्लेख मिलता है जिसमें समुद्र मंथन द्वारा सदकमंडलु आयुर्वेदमय पुमान् धनवंतरि की चर्चा की गई है।

14 रत्नों में धन्वंतरि

कथा है कि समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में धन्वंतरि तथा अमृत भी थे। समुद्र से निकलने के पश्चात धन्वंतरि ने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान एवं भाग निर्धारित कर दें। इस पर भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि देवताओं में यज्ञ का विभाग तो पहले ही हो चुका है अतएव अब नया विभाग संभव नहीं है। देवों के अनंतर होने से तुम ईश्वर नहीं हो, हां दूसरे जन्म में तुम्हें सिद्धियां प्राप्त होंगी और तुम लोक प्रख्यात होगे। उसी शरीर से तुम देवत्व प्राप्त कर लोगे और ि‍द्वजातिगण तुम्हारी सब प्रकार से पूजा करेंगे तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाग भी करोगे। द्वितीय द्वापर में तुम पुनर्जन्म लोगे इसमें संदेह नहीं है।

सभी रोगों के निवारण में कुशल

इस वर के अनुसार पुत्र काम काशिराज धन्‍व की तपस्या से संतुष्ट होकर आदि भगवान ने उनके पुत्र रूप में जन्म लिया और धनवंतरि का नाम धारण किया। धनवंतरि सभी रोगों के निवारण में कुशल थे। कुछ स्थलों में समुद्र मंथन से आर्विभूत अमृत कलश लिए हुए श्‍वेतांबर धनवंतरि का वर्णन मिलता है । इन वर्णनों में धनवंतरि के चतुर्भुज होने का कोई उल्लेख नहीं है । बाद में विष्णु स्वरुप को आरोपित करके चतुर्भुज रूप की कल्पना की गई है। इन आख्यानों में धन्वंतरि को 'आयुर्वेद प्रवर्तक' या 'आयुर्वेददृक' कहा गया है।

वैदिक काल में जो महत्‍व अश्विनी कुमारों को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धनवंतरि भगवान को मिला । अश्विनी कुमारों के हाथों में जीवन और योग का प्रतीक मधुकलश था तो धनवंतरि के हाथों में अमृत कलश आया। भगवान विष्णु इस जगत की रक्षा करने वाले देवता हैं अतः रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि भगवान को भगवान विष्णु का अंश माना गया और देवता के रूप में धन्वंतरि का पूजन प्राचीन संहिताओं में उल्लिखित होने लगा।

इन आख्‍यानों से यह भी स्पष्ट होता है कि धनवंतरि केवल शल्य तंत्र के विशेषज्ञ ना होकर समस्त आयुर्वेद के ज्ञाता थे। सुश्रुत संहिता में महाराज श्री दिवोदास धनवंतरि ने स्वयं - "अहहि धन्वंतरिरादिदेव जरारुजो मृत्युहरोमराणाम" कह कर अपने आप को पूर्व में समुद्र मंथन द्वारा उत्पन्न हुए धनवंतरि का अवतार घोषित किया।

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इसलिए नहीं है वेदों में वर्णन

रामायण में महा मुनि विश्वामित्र ने विशाला नगरी के वैभव की कथा राम और लक्ष्मण को सुनाते समय धन्वंतरि तथा अमृत उत्‍पत्ति के विषय पर भी प्रकाश डाला है । इससे स्‍पष्‍ट है कि पुराणों में जो भ्‍गवान धन्‍वंतरि हैं, उनका प्राकट्य तो समुद्र मंथन से है लेकिन वेदों में उनका वर्णन इसलिए नहीं है कि तब आयुर्वेद का ज्ञान केवल अश्विनी कुमारों को ही प्राप्‍त था और वही इसके देवता थे लेकिन वेद काल के पश्‍चात भगवान धन्‍वंतरि ने काशिराज के घर जन्‍म लेने के बाद अपने विशि‍ष्‍ट तपोबल से देव दुर्लभ ज्ञान प्रापत किया है और पृथ्‍वी पर प्राणिमात्र के रक्षक देवता बन गए। इसलिए कृतज्ञ प्राणियों ने उन्‍हें भ्‍गवान का अंश माना और उनकी पूजा –अर्भ्‍यथना प्रारंभ कर दी।

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