बकरीद पर कुर्बानी का महत्व, जानिए महज प्रतीक या देता है कोई संदेश

ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद का त्योहार मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत विशेष होता हैं। इस दिन को कुर्बानी के लिए जाना जाता हैं। यह दिन यह संदेश देता है कि समाज की भलाई के लिए आपकी कितनी भी अजीज़ वस्तु ही क्यों न हो, उसे कुर्बान कर देना चाहिए।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 31 July 2020 5:15 PM GMT
बकरीद पर कुर्बानी का महत्व, जानिए महज प्रतीक या देता है कोई संदेश
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बकरीद कुर्बानी स्पेशल इतिहास

जयपुर:ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद का त्योहार मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत विशेष होता हैं। इस दिन को कुर्बानी के लिए जाना जाता हैं। यह दिन यह संदेश देता है कि समाज की भलाई के लिए आपकी कितनी भी अजीज़ वस्तु ही क्यों न हो, उसे कुर्बान कर देना चाहिए। कुर्बानी का यह दिन त्याग की भावना जगाता है।

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महत्व

कल 1 अगस्त को बकरीद मनाया जाएगा। इसे ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा के नाम से भी जाना जाता हैं। रमजान के पाक महीने के समाप्त होने के 70 दिनों के बाद यह दिन आता हैं। इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने की 10 तारीख को इसे मनाया जाता हैं। बकरीद का यह त्यौहार कुर्बानी के महत्व को दर्शाता हैं। बकरीद पर इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी दी जाती है। ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबों लोगों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं। एक-दुसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं।

इतिहास

इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है

कुर्बानी देनी चाहिए

जानते हैं कुरान शरीफ में कुर्बानी को लेकर क्या कहा गया हैं।कुरान की रोशनी में देखा जाए तो जो लोग हज करने जा रहे हैं, उन्हें कुर्बानी जरूर देनी चाहिए। साथ ही उन लोगों को भी कुर्बानी देनी चाहिए, जिनकी क्षमता है कुर्बानी देने की। हर किसी के लिए कुर्बानी देना अनिवार्य नहीं है। इस्लामिक विषयों के जानकार ने बताया कि फुका में कुर्बानी का एक बड़ा नियम यह है कि जिनके पास 613 से 614 ग्राम चांदी है या आज के हिसाब से इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन है उन पर कुर्बानी फर्ज है यानी उसे कुर्बानी देनी चाहिए।

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कुरान के अनुसार कुर्बानी देने के लिए किसी से कर्ज लेना जायज नहीं है। जिनके ऊपर कर्ज है उन्हें पहले अपना कर्ज उतारना चाहिए, कर्ज रहते कुर्बानी देना अल्लाह को पसंद नहीं है, इसे अल्लाह कुबूल नहीं करते हैं।कुरान में बताया गया है कि जो लोग अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा समाज सेवा के लिए या जरूतमंद को दान में देते हैं उन्हें जानवर की कुर्बानी देने की जरूरत नहीं है। उनके द्वारा किया गया दान ही कुर्बानी के तौर पर अल्लाह कुबूल कर लेता है।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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