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खरमास:आत्मा-परमात्मा के मिलन का मास, फिर भी कहते हैं अमांगलिक, जानें क्यों
पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्री से दूर रहना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए।
जयपुर: इस साल खरमास 16-17दिसंबर से लग रहा है। प्रत्येक साल लगने वाला खरमास 17 दिसंबर से शुरू होगा। इस बार खरमास 27 दिनों का होगा। खरमास का समापन 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन होगा। खरमास के दौरान कोई भी नया कार्य आरंभ करना वर्जित माना गया है।
आत्मा से परमात्मा का मिलन
शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य जब तक गुरू की राशि मीन अथवा धनु में होता हैं, तब तक का समय खरमास कहलाता है। खरमास को शून्य मास भी कहा जाता है यही कारण है कि इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है और गुरू परमात्मा का स्वरूप है। सूर्य के गुरू की राशि में आने पर आत्मा से परमात्मा का मिलन होता है। इसलिए कहा गया है कि खरमास के दौरान जितना संभव हो भगवान की भक्ति और उपासना करनी चाहिए। इस अवधि में भगवान में ध्यान केन्द्रित करना आसान होता है इसलिए भक्ति का फल जल्दी प्राप्त होता है।
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लग्न
13 जनवरी 2021 की रात 10.25 के बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। वहीं,आज से 62 दिनों बाद 16 फरवरी माघ शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि से शहनाई फिर से गूंजेगी। विवाह का लग्न आरंभ हो जाएगा। साल 2021 का पहला शुभ लग्न 17 फरवरी को है। शादी के लिए यह बेहद शुभ मुहूर्त है। विवाह पंचमी को बसंत पंचमी भी कहा जाता है इसी दिन मां सरस्वती की भी पूजा-अर्चना होती है।
कर्कश मास
खर का अर्थ है कर्कश, गधा, क्रूर या दुष्ट। सीधे-सीधे कहें, तो अप्रिय महीना। इस माह में महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत सूर्य निस्तेज और क्षीणप्राय हो जाता है। सूर्य 16 दिसंबर को जब वृश्चिक राशि की यात्रा समाप्त करके धनु राशि में लंगर डालेंगे, खरमास का आगाज होगा। अनोखी बात यह है कि देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में जब सूर्य चरण रखते हैं, यह जीव और जीवन के लिए उत्तम नहीं माना जाता। शुभ कार्य इस काल में वर्जित हैं, क्योंकि धनु बृहस्पति की आग्नेय राशि है। इसमें सूर्य का प्रवेश विचित्र, अप्रिय, अप्रत्याशित परिणाम का सबब बनता है।
नरकगामी
कहते हैं कि इस माह में मृत्यु होने पर व्यक्ति नरकगामी होता है। खरमास के महीने में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। मान्यता है कि खरमास में यदि कोई प्राण त्याग करता है तो उसे नर्क में निवास मिलता है। इसका उदाहरण महाभारत में भी मिलता है, जब भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे होते हैं लेकिन खरमास के कारण वे अपने प्राण इस माह नहीं त्यागते। जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भीष्म पितामह अपने प्राण त्याग देते हैं।
मान्यताएं...
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में सूर्य के रथ के साथ महापद्म और कर्कोटक नाम के दो नाग, आप तथा वात नामक दो राक्षस, तार्क्ष्य एवं अरिष्टनेमि नामक दो यक्ष, अंशु व भग नाम के दो आदित्य, चित्रांगद और अरणायु नामक दो गन्धर्व, सहा तथा सहस्या नाम की दो अप्सराएं और क्रतु व कश्यप नामक दो ऋषि संग संग चलते हैं।मार्गशीर्ष और पौष का संधिकाल स्वयं में बेहद विशिष्ट है। यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है।
इस दौरान यदि बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निर्मुक्त होकर, स्वयं में प्रविष्ट होकर खुद को तराशा, निखारा एवं संवारा जाए, तो व्यक्ति उत्कर्ष का वरण करता है।धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में अजीब सी उग्रता के कारण इस मास के मध्य शादी-विवाह, गृह आरंभ, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्य अमांगलिक सिद्ध हो सकते हैं। इसीलिए शास्त्रों ने इस माह में इनका निषेध किया हैं।
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दूसरी मान्यता...
खरमास के संबंध में एक और कथा भी है। संस्कृत में खर गधे को कहा जाता है। माना जाता है कि सूर्य देव ने एक बार खर को अपने रथ में जोत लिया था। तभी से खर मास शुरू हो गया। चूंकि सूर्य देव के रथ में सात घोड़े होते हैं, जिनसे वे अपने मार्ग पर भ्रमण करते हैं। सूर्य से ही संपूर्ण जगत में प्रकाश पहुंचता है। यदि वे कुछ क्षण भी रुक जाएं तो पूरा तंत्र बिगड़ सकता है। उनके रथ के घोड़े बिना विश्राम किए हमेशा दौड़ते रहते हैं। एक बार सभी घोड़ों को प्यास लगी, लेकिन सूर्य देव रथ को रोक नहीं सकते थे।
सूर्य का ताप बहुत कम होने लगा
चलते-चलते एक जलस्रोत आया। वहां दो खर पानी पी रहे थे। सूर्य देव ने अपने घोड़ों को पानी पीने के लिए खोल दिया और दोनों खरों को रथ में जोत लिया। घोड़े पानी पीने लगे। उधर सूर्य देव का रथ चल पड़ा, लेकिन दोनों खर सात घोड़ों जितने शक्तिशाली नहीं थे। इससे सूर्य देव के रथ की गति धीमी हो गई। इसका प्रभाव पृथ्वी पर भी हुआ और सूर्य का तेज कम हो गया।
यह समय तब से खर मास कहलाने लगा। इस दौरान सूर्य का ताप बहुत कम हो जाता है और मकर संक्रांति के बाद ही सूर्य का तेज बढ़ने लगता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति से सूर्य देव अपने रथ के सातों घोड़ों को रथ में पुन: लेकर आगे बढ़ते हैं। खरमास में गीता, रामायण, हनुमान चालीसा आदि ग्रंथों के दान का विशेष महत्व है।
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खरमास में नहीं करने योग्य और करने योग्य कार्य
इस मास में सत्यनारायण भगवान की पूजा, होम, जप, योग, ध्यान, दान, तीर्थ में स्नान करना उत्तम होता है। पुरुषोत्तम मास में जमीन पर सोना, पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्री से दूर रहना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। किसी प्राणी से द्रोह नहीं करना चाहिए। परस्त्री का भूल करके भी सेवन नहीं करना चाहिए। देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसी, स्त्री और बड़े लोगों की निंदा नहीं करनी चाहिए।
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कोई मांगलिक कार्य न करें, शास्त्रों के अनुसार खरमास में विवाह, जनेऊ, कन्या विदाई, मुण्डन, कर्ण छेदन, भूमि पूजन, गृह निर्माण आरंभ, गृह प्रवेश, नया कारोबार आरंभ नहीं किया जाता है।बृहस्पति जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है।