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यहां रथ खींचने से मिलता है मोक्ष, जानें रथयात्रा से जुड़ी ये धार्मिक बातें

जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद देवी-देवताओं के लिए मंदिर के दरवाजे एकादशी को खोले जाते हैं, विधिवत स्नान और मंत्रोच्चार के बीच विग्रहों को पुनः स्थापित किया जाता है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है। पुरी यात्रा के दौरान एकता में अनेकता देखने को पूरी तरह से मिलता है।

suman
Published on: 23 Jun 2020 2:41 AM GMT
यहां रथ खींचने से मिलता है मोक्ष, जानें रथयात्रा से जुड़ी ये धार्मिक बातें
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जयपुर: जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा निकाली जाती है यानि आज। । कहा जाता है कि भक्तों के साथ रथयात्रा का भगवान को भी बेसब्री से इंतजार रहता है। ये यात्रा आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। ओडिशा के पुरी में होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा देश के धार्मिक उत्सवों में से एक है, जिसमें भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु आते हैं।इस धार्मिक यात्रा को लेकर जगन्नाथ मंदिर में तैयारियां कुछ दिन पहले ही पूरी कर ली जाती है। लेकिन इस बार कोरोना के चलते इसका उत्साह कुछ कम होगा। लेकिन श्रद्धा में कोई कमी नहीं रहेगी।

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रथयात्रा से जुड़ी बातें

पुरी का जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं के चार पवित्र धामों में से एक है। ये मंदिर 800 साल से अधिक पुराना है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, जगन्नाथ रूप में विराजित है। साथ ही यहां उनके बड़े भाई बलराम और उनकी बहन देवी सुभद्रा है जिनकी पूजा की जाती है। पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्माण किया जाता हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी, बहन देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।

रथों के नाम

भगवान के रथ का नाम भी अलग-अलग होता है और रंग भी । बलभद्र के रथ का रंग हरा-लाल और इसे तालध्वज कहते हैं, भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष और देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है। इन रथों की उंचाई भी भगवान जगन्नाथ का 45.6 फीट ऊंचा रथ, बलरामजी का 45 फीट ऊंचा रथ और देवी सुभद्रा का 44.6 फीट ऊंचा रथ होता है।

बिना किसी धातु के रथ का निर्माण

ये सभी रथ नीम की लकड़ियों से बनाए जाते है, इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथों के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के से शुरू होता है और निर्माण अक्षय तृतीया से होता है।

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रथ खींचने से मिलता है मोक्ष

जब ढोल, नगाड़ों,और शंखध्वनि के बीच श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं। उन्हें परम आनंद की प्राप्ति होती है। जिसे भी रथ को खींचने का अवसर मिलता है, वो किस्मतवाला माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष मिलता है।

मौसी बाड़ी में करते हैं भगवान विश्राम

जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ मौसी बाड़ी (गुंडीचा मंदिर )जाता हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ मौसी के घर में विश्राम करते हैं। इसे आड़प-दर्शन कहा जाता है।

पौराणिक मान्यता

कहा जाता है कि ये भगवान की मौसी का घर है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।कहते हैं कि रथयात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को खोजते हुए यहां आती हैं। तब भगवान दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी गुस्सा होकर रथ का पहिया तोड़ देती है। बाद में भगवान देवी लक्ष्मी को मनाते है।

बहुड़ा यात्रा और घरों में नहीं होती पूजा

यात्रा के 10 वें दिन सभी रथ फिर से मेन मंदिर की ओर जाते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद देवी-देवताओं के लिए मंदिर के दरवाजे एकादशी को खोले जाते हैं, विधिवत स्नान और मंत्रोच्चार के बीच विग्रहों को पुनः स्थापित किया जाता है। इस अवसर पर घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है। पुरी यात्रा के दौरान एकता में अनेकता देखने को पूरी तरह से मिलता है।

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