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क्यों लक्ष्मण ने किया श्रीराम की आज्ञा का उल्लंघन, ये जानते हुए कि उनको मिलेगा मृत्युदंड

त्रेतायुग में भगवान राम का जन्म हुआ था भगवान राम को आदर्श पुरुष माना जाता है। उनके जैसा पुत्र, भाई, पति, पिता की कामन हर मनुष्य की होती है। लेकिन श्रीराम ने भी कई ऐसे उदाहरण पेश किए है जो जीवन में विकट परिस्थिति में लेने पड़ते हैं। इसी तरह मनुष्य के जीवन में रामायण का बड़ा महत्व हैं

suman
Published on: 9 April 2020 3:25 AM GMT
क्यों लक्ष्मण ने किया श्रीराम की आज्ञा का उल्लंघन, ये जानते हुए कि उनको मिलेगा मृत्युदंड
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लखनऊ: त्रेतायुग में भगवान राम का जन्म हुआ था भगवान राम को आदर्श पुरुष माना जाता है। उनके जैसा पुत्र, भाई, पति, पिता की कामन हर मनुष्य की होती है। लेकिन श्रीराम ने भी कई ऐसे उदाहरण पेश किए है जो जीवन में विकट परिस्थिति में लेने पड़ते हैं। इसी तरह मनुष्य के जीवन में रामायण का बड़ा महत्व हैं जो भगवान राम के जीवन से जुड़ा हैं। भगवान राम का जीवन सभी के लिए एक आदर्श और प्रेरणादायक हैं जो कि जीवन जीने की सीख देती हैं। सभी को यह तो पता ही हैं कि भगवान राम के भाई लक्ष्मण उनके साथ14 साल के वनवास पर गए थे। लेकिन क्या जानते हैं कि भगवान राम ने प्राणप्रिय भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था।

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एक पौराणिक कथा के अनुसार,

ये घटना उस समय की है जब श्रीराम लंका विजय करके अयोध्या लौटते है और अयोध्या के राजा बन जाते है। एक दिन यम देवता कोई महत्वपूर्ण चर्चा करने श्री राम के पास आते है। चर्चा शुरू करने से पहले वो भगवान राम से कहते है की जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करें। आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा। भगवान राम, यम को वचन दे देते है।

मृत्युदंड देना पड़ेगा

राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते है की जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते है। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतता है वहां पर ऋषि दुर्वासा का आते हैं। जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही।

लक्ष्मण ने दिया खुद का बलिदान

लक्ष्मण समझ गए कि ये एक विकट स्थिति है जिसमें या तो उन्हे रामाज्ञा का उल्लङ्घन करना होगा या फिर सम्पूर्ण नगर को ऋषि के श्राप की अग्नि में झोंकना होगा। लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा, ताकि वो नगर वासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें। उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी।

राम भगवान ने शीघ्रता से यम के साथ अपनी वार्तालाप समाप्त कर ऋषि दुर्वासा की आव-भगत की। परन्तु अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्यु दंड देना था। वो समझ नहीं पा रहे थे की वो अपने भाई को मृत्युदंड कैसे दे, लेकिन उन्होंने यम को वचन दिया था जिसे निभाना ही था।

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लक्ष्मण ने ली जल समाधी

इस दुविधा की स्तिथि में श्री राम ने अपने गुरु का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहा। गुरदेव ने कहा की अपने किसी प्रिय का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही है। अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो।

लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है की मैं आपके वचन की पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ। ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधी ले ली।

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