TRENDING TAGS :
अजन्मे भगवान शिव के जन्म, वेशभूषा और उनसे जुड़े रहस्य, कहते हैं बहुत कुछ
भगवान शंकर जितने सरल और साधारण दिखते हैं, उससे ज्यादा उनका पहनावा है। आज हम आपको शंकर की वेशभूषा और उनसे जुड़े 15 रहस्य बताने जा रहे है जो आपको अचम्भित कर देंगे।
लखनऊ भगवान शंकर जितने सरल और साधारण दिखते हैं, उससे ज्यादा उनका पहनावा है। आज हम आपको शंकर की वेशभूषा और उनसे जुड़े 15 रहस्य बताने जा रहे है जो आपको अचम्भित कर देंगे।
देवों के देव ‘महादेव’अजन्मा
देवों के देव ‘महादेव’…शिव को महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। वो अजन्मा है। सत्य-असत्य से परे हैं। शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी हैं। वो आदि हैं और अंत भी। शायद इसीलिए बाकी सब देव हैं। केवल शिव केवल शिव ही महादेव हैं। वो उत्सव, महोत्सव प्रिय हैं। शोक, अवसाद और अभाव में भी उत्सव मनाने की कला उनके पास है। तंत्र साधना में इन्हे ‘भैरव’ कहा गया है| भोलेनाथ हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति में से एक हैं। त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश (शिव)। वेदों में शिव को रुद्र के नाम से सम्बोधित क्रिया गया तथा इनकी स्तुति में कई ऋचाएं लिखी गई। सामवेद और यजुर्वेद में शिव-स्तुतियां उपलब्ध हैं। उपनिषदों में भी विशेषकर श्वेताश्वतरोपनिषद में शिव-स्तुति है। वेदों और उपनिषदों के अतिरिक्त शिव की कथा अन्य कई ग्रन्थों में मिलती है। यथा शिवपुराण, स्कंदपुराण, लिंगपुराण आदि।
यह पढ़ें...राशिफल 16 जुलाई: नौकरी व बिजनेस में किन राशियों को मिलेगा लाभ, जानें अपना हाल
चन्द्रमा
शिव का एक नाम 'सोम' भी है। सोम का अर्थ चन्द्र होता है। उनका दिन सोमवार है। चन्द्रमा मन का कारक है। शिव का चंद्र को धारण करना मन को नियंत्रित करने का प्रतीक है। हिमालय पर्वत और समुद्र से चंद्रमा का सीधा संबंध है।
चन्द्र कला का महत्व
भगवान शिव के सभी त्योहार और पर्व चंद्र मास पर आधारित है। शिवरात्रि, महाशिवरात्रि आदि शिव से जुड़े त्योहारों में चंद्र कलाओं का महत्व है।
कई धर्मों का प्रतीक चिह्न
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव चंद्रमा के श्राप का निवारम करने के कारण यहां चंद्र ने शिवलिंग की स्थापना की थी।
त्रिशूल
भगवान शिव के पास हमेशा एक त्रिशूल था। ये बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। इसकी शक्ति के आगे कोईभी शक्ति नहीं ठहर सकती। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैविक, भौतिक के विनाश का भी सूचक है । इसमें सत, रज और तम 3 शक्तियां है। साइंस में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन कहते है।
शिव का सेवक वासुकि
शिव के नागवंशियों से घनिष्ठ प्रेम था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में रहते थे। नागों का ईश्वर होने के कारण शिव का नाग या सर्प से अटूट संबंध है।
डमरू
सभी देवी-देवता के पास उनका वाद्ययंत्र है। शिव का वाद्य यंत्र डमरू है। शिव को संगीत का जनक कहा जाता है। उनके पहले किसी ने संगीत नहीं जाना। उनका तांडव नृत्य किसे नहीं पता। डमरू के घरों में रखा भी इसीले शुभ माना जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।।
शिव का वाहन वृषभ
वृष को शिव का वाहन कहते है। वे हमेशा शिव के साथ रहते है। वृष का अर्थ धर्म है। एक मान्याता के अनुसार वृष ही नंदी है। नंदी ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्षशास्त्र की रचना की थी।
यह पढ़ें...कोरोना मचाएगा प्रलय: 32 देशों के वैज्ञानिकों ने किया खुलासा, सुनकर हो जायेंगे हैरान
जटाएं
शिव को अंतरिक्ष के देवता कहा जाता है। उनका नाम व्योमकेश है। उनकी जटाएं वायु की प्रतीक है। उसमें गंगा की धारा भी है। रुद्र स्वरुप शिव उग्र और संहारक भी है।
गंगा
गंगा को जटा में धारण करने के कारण ही शिव को जल चढ़ाए जाने की परंपरा है। जब स्वर्ग से गंगा आई तो उसके प्रवाह को रोकने के लिए शिव ने अपनी जटा में गंगा को धारण करें।
शिव का धनुष पिनाक
शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। ये धनुष बहुत शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी-देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज को सौंप दिया गाया था।
शिव कुंडल
हिंदुओं में एक कर्ण छेदन संस्कार है। शैव,शाक्त और नाथ संप्रदाय में दीक्षा के समय कान छिदवाकर उसमें मुद्रा या कुंडल धारण करने की प्रथा है। छिदवाने से कई प्रकार के रोगों से तो बचा जा सकता है। साथ ही इससे मन भी एकाग्र रहता है। मान्यता के अनुसार इससे वीर्य शक्ति भी बढ़ती है।
यह पढ़ें...आसमान में बड़ा बदलाव: होगी दुर्लभ खगोलीय घटना, इन बड़े ग्रहों का रहेगा महत्व
रुद्राक्ष
माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसूओं से हुई थी। धार्मिक ग्रंथानुसार 21 मुख तक के रुद्राक्ष होने के प्रमाण हैं, परंतु वर्तमान में 14 मुखी के पश्चात सभी रुद्राक्ष हैं। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है तथा रक्त प्रवाह भी संतुलित रहता है।