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Bhagwan Ram Ki Kahani: प्रभु श्रीराम नहीं थे दशरथ की पहली संतान, आखिर क्यों नहीं रामायण या रामचरितमानस में इसका जिक्र!

Bhagwan Ram Ki Kahani: हमने अक्सर कई धर्मिक ग्रंथों और टीवी सीरियल में रामचरितमानस और रामायण पर आधारित कहानी देखी हैं। श्रीराम राजा के बड़े पुत्र तो थे लेकिन पहली संतान नहीं थे।

Snigdha Singh
Published on: 18 Jun 2023 4:34 PM IST (Updated on: 18 Jun 2023 5:04 PM IST)
Bhagwan Ram Ki Kahani: प्रभु श्रीराम नहीं थे दशरथ की पहली संतान, आखिर क्यों नहीं रामायण या रामचरितमानस में इसका जिक्र!
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Bhagwan Ram Ki Kahani (Symbolic Image: Social Media)

Bhagwan Ram Ki Kahani: भारतवर्ष में हिंदू धर्म में धार्मिक ग्रंथों और देवी देवताओं के लेकर लोगों की अपनी अलग-अलग आस्थाएं हैं। धार्मिक ग्रंथ वेद पुराण, भागवद्गीता और रामायण में हिंदू देवी-देवताओं का विशेष वर्णन किया गया है। इसी कड़ी में रामचरितमानस और रामायण में भगवान श्रीराम के जीवन का संपूर्ण वर्णन है। कुछ लोगों ने पढ़ा होगा तो बहुतों ने टीवी में देखा भी होगा। लेकिन क्या आपको ये जानकारी है कि भगवान श्रीराम राजा दशरथ की पहली संतान नहीं थे।

धार्मिक पुराणों के अनुसार राजा दशरथ की पहली संतान श्रीराम नहीं बल्कि शांता थी। श्रीराम की बड़ी बहन शांता। बहुत से लोग ऐसे होंगे, जो इनके विषय में नहीं जानते होंगे। रामचरितमानस और रामायण में राम की बहन का कोई उल्लेख नहीं था। वैसे तो राजा दशरथ की तीन रानी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा से चार पुत्र थे। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन चार भाइयों के अलावा बहन शांता भी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो कहानी है, वह कि रानी कौशल्या की बहन वर्षिणी अपने पति राजा रोमपद के कोई संतान नहीं थी। वह अयोध्या आई तो राजा दशरथ ने उनको दुःखी देखा। उनको दुःखी और उदास देखकर अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे दी। शांता अंग देश की राजकुमारी बन गई। शांता की शादी ऋषि श्रृंगी से उनकी शादी हुई थी।

यहां होती है श्रीराम की बहन शांता की पूजा

जिस तरह देशभर में प्रभु श्रीराम की पूजा अराधना होती है, उसी तरह भारत में ऐसी कई ऐसे स्थान हैं जहां बहन शांता की पूजा होती है। हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा स्थान है, जहां मुख्य रूप से प्रभु श्रीराम की बहन की पूजा होती है। देवी शांता का मंदिर हिमाचल में कुल्लू से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है, यहां उनकी शांता की प्रतिदिन पूजा होती है। वहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। वहीं मंदिर को सिद्ध मंदिरों में गिना जाता है। यहां इसलिए दशहरा और दिवाली धूमधाम से मनाया जाता है।



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Snigdha Singh

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