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पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का समय होगा शुरू, श्राद्ध पक्ष में रखें इन बातों का ख्याल
पितृ पक्ष के समय पितरों का तर्पण कर उनके मोक्ष की कामना की जाती है। हिंदू धर्म और पंचांगों में श्राद्ध के लिए बहुत सारे नियम बने हैं। जिनका पालन करना हर एक हिंदू के लिए अनिवार्य है। श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद तो बना रहता है। उनकी आत्मा को भी शांति मिलती है।
जयपुर: भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का जो 16 दिन का समय होता है श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस बार 14 व 15 सितंबर, से अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष होगा। पितृ पक्ष या कहे श्राद्ध पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। अपने पितर,भगवान, परिवार और वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना श्राद्ध है। इसे पितृ पक्ष के नाम से भी जानते है। अपने पूर्वजों को याद करें और उनका तर्पण करवा कर उन्हें शांति और तृप्ति दें। ऐसा करने उनका आशीर्वाद सदा बना रहता है।
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पितृ पक्ष के समय पितरों का तर्पण कर उनके मोक्ष की कामना की जाती है। हिंदू धर्म और पंचांगों में श्राद्ध के लिए बहुत सारे नियम बने हैं। जिनका पालन करना हर एक हिंदू के लिए अनिवार्य है। श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद तो बना रहता है। उनकी आत्मा को भी शांति मिलती है।
श्राद्ध से जुड़े नियम कायदे-कानून को बहुत कम लोग जानते हैं। मगर इसे जानना जरुरी भी होता है। जो विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं करते वो अपने पुर्वजों के कोप का भाजन बनते हैं। आपको बता रहे हैं कि कैसे श्राद्ध के दौरान इन बातों का ध्यान रख सकते है।
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भोजन के दौरान मौन व्रत का पालन
ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर करवाएं, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं। जब तक ब्राह्मण मौन रहकर भोजन करें।
मारे गए पितरों का श्राद्ध दो दिन करें
जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हैं, उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं।
भूमि पर ना करें श्राद्ध
श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
भूखे ना लौटाएं किसी को
श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल का होना जरूरी है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
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बिना इनके श्राद्ध अधूरा
जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
श्राद्ध का ये समय है अवैध
इस समय श्राद्ध करना उचित नहीं माना गया है। शुक्ल पक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों में तथा अपने जन्मदिन पर।