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इस दिन है सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त, छात्र इस मंत्र का 11 माला करें जाप
उत्तर भारत में छः ऋतुएं पूरे साल को मौसम के हिसाब से बांटती हैं । हर मौसम का अपना आनंद है। परंतु पुरानी कहावत है- आया बसंत जाड़ा उड़ंत। यह दिन ऋतु परिवर्तन का परिचायक भी है। भगवान कृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता भी हैं। पक्षियों में कलरव,भौरो की गुंजन,, पुष्पों की मादकता से युक्त वातावरण बसंत ऋतु की विशेषता है।
जयपुर: उत्तर भारत में छः ऋतुएं पूरे साल को मौसम के हिसाब से बांटती हैं । हर मौसम का अपना आनंद है। परंतु पुरानी कहावत है- आया बसंत जाड़ा उड़ंत। यह दिन ऋतु परिवर्तन का परिचायक भी है। भगवान कृष्ण इस उत्सव के अधिदेवता भी हैं। पक्षियों में कलरव,भौरो की गुंजन,, पुष्पों की मादकता से युक्त वातावरण बसंत ऋतु की विशेषता है। पशु-पक्षियों तक में कामक्रीड़ा की अनुभूति होने लगती है। यह मदनोत्सव का आरंभ है। इसी दिन , कामदेव के साथ साथ रति व सरस्वती का पूजन भी होता है। होली का प्रारंभ भी इस दिन से होता है और समापन फाल्गुन की पूर्णिमा पर होलिका दहन पर होता है।
इस बार बसंत पंचमी जिसे श्री पंचमी भी कहा जाता है, 29 और 30 जनवरी को है। 29 को 10 .26 से पंचम मुहूर्त है तो उदया तिथि के अनुसार 30 को बसंत पंचमी होगी। और मुहूर्त के अनुसार 29-30 जनवरी दोनों दिन है। इस दिन भगवान विष्णु, मां सरस्वती तथा कामदेव की भी पूजा की जाती है। प्राकृतिक वातावरण तो वासंती होता ही है परंतु इस दिन पीले वस्त्र पहनने के साथ साथ पीले मीठे चावल बनाने एवं पतंग उड़ाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। वास्तव में यह नई ऋतु के आगमन का स्वागत है। छात्र पुस्तकों व लेखन सामग्री की भी पूजा करवाते हैं।
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सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
बसंत पंचमी की तिथि: 29 जनवरी 2020
पंचमी तिथि प्रारंभ: 29 जनवरी 2020 को सुबह 10 बजकर 45 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त: 30 जनवरी 2020 को दोपहर 1 बजकर 19 मिनट तक दोपहर तक यह अत्यंत शुभ मुहूर्त है। यदि आप किसी प्रकार की शिक्षा, कोर्स आरंभ करना चाहते हैं या कंपीटीशन के लिए कोई फार्म भरना चाहते हैं तो यह ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अबूझ मुहूर्तों में से एक है। नया व्यवसाय, आरंभ करने , गृह प्रवेश या नींवखोदने आदि के लिए विशेष फलदायी मुहूर्त है। आज आप कलम पूजन भी करवा सकते हैं।
मां सरस्वती वाणी की देवी हैं, अतः पत्रकारिता, मीडिया, लेखा , लेखन, छात्र ,न्यूजरीडर, टी वी कलाकार, गायक, संगीत ,वाद्य यंत्र , अध्यापन, ज्योतिष आदि से संबंधित लोगों को आज के दिन सरस्वती पूजन अवश्य करना चाहिए। यह योग विद्या एवं विद्यार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहेगा। शिक्षा में कमजोर छात्र इस बार मां सरस्वती की आराधना अवश्य करें ताकि उन्हें परीक्षा में आशा से अधिक सफलता प्राप्त हो । सेना, पुलिस, या सैन्य बल में जाने के इच्छुक युवा -युवतियां बसंत पंचमी पर आवेदन करें तो सफल रहेंगे। विवाह के लिए भी यह अबूझ मुहूर्त है। इस दिन अधिकांश विवाहों का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन संपन्न पाणि ग्रहण संस्कार करने से वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती ।
किसकी करें पूजा ?
बसंत पंचमी का पर्व भगवान विष्णु व सरस्वती जी की आराधना का पावन दिवस है। प्रातः काल स्नान के बाद पीले वस्त्र पहन कर धूप दीप, नैवेद्य , व लाल रोली से दोनों की पूजा अर्चना की जानी चाहिए परंतु इससे पूर्व गणेश जी का पूजन अवश्य होना चाहिए। पीले व मीठे चावलों का भोग लगाना चाहिए।
वाणी , शिक्षा एवं अन्य कलाओं की अधिष्ठात्री देवी मां की आराधना छात्रों को अवश्य करनी चाहिए। इस दिन सरस्वती सिद्ध करके मंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करनी चाहिए। कण्ठ में सरस्वती को स्थापित किया जाता है। स्वर,संगीत, ललित कलाओं,,गायन वादन,लेखन यदि इस दिन आरंभ किया जाए तो जीवन में सफलता अवश्य मिलती है। सरस्वती की आराधना में श्वेत वर्ण का अत्यंत महत्व होता हैै । अतः इनको अर्पित करने वाला नैवेद्य भी सफेद ही होना चाहिए।
पौराणिक कथा
विष्णु की आज्ञा से जब ब्रहमा ने सृष्टि की रचना की तो सबसे पहले मनुष्य को उत्पन्न किया तत्पश्चात अन्य जीवों का प्रादुर्भाव हुआ है। लेकिन सृष्टि की रचना करने के बाद भी ब्रहमा जी पूर्णतयः सन्तुष्ट नहीं हुये और चारों तरफ मौन का सन्नाटा छायाहुआ था। विष्णु जी की पुनः आज्ञा लेकर ब्रहमा ने अपने कमण्डल से जल लेकर पृथ्वी पर छिड़का जिससे पृथ्वी में कंपन उत्पन्न हुआ। कुछ क्षण बाद एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ।
ब्रहमा जी ने सौन्दर्य की देवी से वीणा बजाने का आग्रह किया
यह प्राकट्य एक सुन्दर चतुर्भज देवी का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था एंव अन्य दोनों में हाथों में पुस्तक व माला थी। ब्रहमा जी ने सौन्दर्य की देवी से वीणा बजाने का आग्रह किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया ।संसार के समस्त जीव-जन्तुओं की वाणी से एक मधुर ध्वनि प्रस्फुटित हुयी। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गई। पवन चलने से सरसराहट की अवाज आने लगी। उसी समय ब्रहमा ने उस देवी का नामकरण वाणी की देवी सरस्वती के रूप में कर दिया।तभी से बसंत पंचमी के दिन मॉ सरस्वती का जन्मोत्सव मनाया जाने लगा।
पूजा विधि
देवी सरस्वती की पूजा सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने की थी। प्रातःकाल समस्त दैनिक कार्यो से निवृत होकर स्नान ध्यान करके मां सरस्वती की तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद कलश स्थापित गणेश जी तथा नवग्रहों की विधिवत पूजा करें। सरस्वती जी का पूजन करते समय सबसे पहले उनको स्नान करायें। तत्पश्चात माता को सिन्दूर व अन्य श्रंगार की वस्तुये चढ़ायें फिर फूल माला चढ़ाये। मीठे का भोग लगा कर सरस्वती कवच का पाठ करें। माता श्वेत वस्त्र धारण करती हैं इसलिए उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं। प्रसाद के रुप में खीर अथवा दुध से बनी मिठाईयां चढा सकते हैं। श्वेत फूल माता को अर्पण किये जा सकते हैं।देवी सरस्वती के मन्त्र का जाप करने से असीम पुण्य मिलता है।
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कौन सा करें पाठ या मंत्र ?
यह मंत्र शिक्षा में कमजोर विद्यार्थी या उनके अभिभावक भी मां सरस्वती के चित्र को सम्मुख रख के 5 या 11 माला कर सकते हैं।
ओम् ऐं सरस्वत्यै नम:
वाक् सिद्धि हेतु ,यह मंत्र जाप करें-
ओम् हृीं ऐं हृीं ओम् सरस्वत्यै नमः
आत्म ज्ञान प्राप्ति के लिए-
ओम् ऐं वाग्देव्यै विझहे धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्!!
रोजगार प्राप्ति व प्रोमोशन के लिए-
ओम् वद वद वाग्वादिनी स्वाहा !
परीक्षा में सफलता के लिए आज से ही इस मंत्र का जाप मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख करते रहें-
ओम् एकदंत महा बुद्धि, सर्व सौभाग्य दायक:!
सर्व सिद्धि करो देव गौरी पुत्रों विनायकः !!