सावन, शिव और सोमवार, इस वजह से होती है सावन में बारिश

पौराणिक मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था। ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे।

SK Gautam
Published on: 17 July 2019 11:03 AM GMT
सावन, शिव और सोमवार, इस वजह से होती है सावन में बारिश
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लखनऊ: सावन माह को पूरे 12 मास में सबसे पवित्र मास माना जाता है। इस मास का प्रत्येक दिन पवित्र होता है। और हर दिन भगवान की आराधना के लिए उपयुक्त होता है। इस मास शिव पार्वती के साथ कृष्ण की पूजा भी की जाती है।जैसे बारिश होते ही कीड़े- मकौड़े पनपने लगते है। वैसे ही इस महिना लोग ज्यादा धार्मिक रहते है। ज्यादातर हिंदू घरों में मांस-मदिरा वर्जित रहता हैं।

महत्व: इस वजह से होती है सावन में बारिश

पौराणिक मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था। ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे। यहां तक कि इन्द्र देव भी यह चाहते थे कि भगवान शिव के शरीर का तापमान कम हो, इसलिए उन्होंने अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी। इस वजह से सावन के महीने में अत्याधिक बारिश होती है, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।

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इसलिए भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी है।सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है।

मान्यता: पौराणिक कथा का अनुसार, जो शिव और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष ने जब शिव भगवान का अपमान किया तो पति का अपमान होता सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपने पति रुप में पाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। उन्हें भगवान शिव पति रूप में रखा।

शिवलिंग की पूजा

सावन, सोमवार व शिवलिंग ये तीनों भगवान शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। जुलाई व अगस्त माह में सावन मास शुरु होता है। इस महीना में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। हरियाली तीज, ‘रक्षा बन्धन’, ‘नाग पंचमी’ । इस महीना में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह के प्रथम सोमवार से सोमवारी व्रत प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्त्री, पुरुष व खासकर कुंवारी लड़कियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखती है।

सावन मास के सभी सोमवार के दिन व्रत रखती है। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार, शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए।

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शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व हैं। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। इस सृष्टि में भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव लिंग की पूजा की जाती है। भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा शुरू हुई।

सावन व सोमवार

सोमवार दिन का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्रमा है। चंद्रमा मन के नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) महत्त्वपूर्ण योगदान है। चन्द्रमा भगवान शिव जी के मस्तक पर विराजमान है। भगवान शिव स्वयं साधक व भक्त के चंद्रमा अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार भक्त के मन को वश में तथा एकाग्रचित कर अज्ञानता के भाव सागर से बाहर निकालते है। यही कारण है की सोमवार दिन शिवजी के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

शिव को प्रिय है सावन

सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होती है जो शिव जी के गर्म शरीर को शीतलता प्रदान करती है। भगवान शिव ने सावन मास की महिमा बताते हुए कहा है कि तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से खूब बरसात होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। प्रजनन की दृष्टि से भी यह मास बहुत ही अनुकूल है। इसी कारण शिव को सावन प्रिय हैं।

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ये काम करें ये काम न करें

सावन माह भगवान शिव का माह है। इसके हर दिन व हर सोमवार को श्रीगणेशजी, शिव जी, पार्वती जी और नंदी की पूजा करें और शिवजी की पूजा में जल, दूध, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र यज्ञोपवि, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्ब पत्र, दूर्वा, आक, धतूरा कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिणा कपूर से आरती करनी चाहिए।

लेकिन ऐसी चीजें जिनका इस्तेमाल सावन में नहीं करना चाहिए। सावन में पूजा पाठ तो करना ही चाहिए, इसके अतिरिक्त कुछ कामों को निषेध माना जाता है।जानते हैं क्या....

सावन में हरी पत्तेदार सब्जियां बिल्कुल नहीं खानी चाहिए। दूध के सेवन से बचें। बैंगन न खाएं। शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं। बड़े-बुजुर्ग, बहन, गरीब, लाचार व्यक्ति एवं गुरु का अपमान न करें। मांस व शराब का सेवन न करें।घर में रखें साफ-सफाई का विशेष ध्यान।

पुराण व मान्यताएं व लाभ

शिवपुराण’ के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई नियम नहीं है। वैसे दिन−रात में केवल एक ही बार खाना फलदायक होता है। सोमवार के व्रत में शिव−पार्वती गणेश तथा नंदी की पूजा करना चाहिए।सावन मास में शिव जी को बेल पत्र ( बिल्वपत्र ) जाने अनजाने में किये गए पाप का शीघ्र ही नाश हो जाता है। अखंड बिल्वपत्र चढाने का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि अखण्ड बेलपत्र चढाने से सभी बुरे कर्मों से मुक्ति तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है।

इस मास में रूद्राभिषेक पूजन किया जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत में सावन माहात्म्य और शिव महापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है।ऐसी मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी से सीधे जल लेकर जलाभिषेक करने से शिव जी शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसी कारण श्रद्धालु कावड़िए के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। श्रीराम जी ने भी भगवान शिव जी को कांवड चढ़ाई थी।

श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है

सावन मास में ही भगवान शिव जी इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से किया गया था। यह भी मान्यता है कि शिवजी हर वर्ष सावन माह में अपने ससुराल आते हैं। इसी सावन मास में समुद्र मंथन भी किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला था उस विष को पीकर तथा कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा किये थे।

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यही कारण है कि विषपान से शिवजी का कंठ नीला हो गया है। इसी कारण ‘नीलकंठ” के नाम से जाने जाते हैं। देवी-देवताओं ने शिवजी के विषपान के प्रभाव को कम करने के लिए जल अर्पित किये थे। इसी कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सोमवारी व्रत सावन महीना के प्रथम सोमवार से शुरू हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को शिवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि सावन में शिवजी की आराधना तथा सोमवार व्रत करने से शिव जी शीघ्र ही प्रसंन्न हो जाते है। प्रसंन्न होकर भक्त के इच्छानुकूल मनोकामनाएं पूरा करते है।

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