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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay: युद्ध क्षेत्र में आध्यात्मिक संवाद, भगवद्गीता - ( अध्याय - 1/ पुष्पिका ( अंक - 8 )
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhag 8: श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद के स्थान का चयन भी अद्भुत है। सामान्यतः आध्यात्मिक - चर्चा नीरव एवं शांत वातावरण में होती है, जहां पहले से ही प्रश्नकर्ता एवं उत्तरदाता की मन:स्थिति इसके लिए तैयार रहती है।
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 Pushpika Bhag 8:
5-संवाद-स्थल की विशेषता -
श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद के स्थान का चयन भी अद्भुत है। सामान्यतः आध्यात्मिक - चर्चा नीरव एवं शांत वातावरण में होती है, जहां पहले से ही प्रश्नकर्ता एवं उत्तरदाता की मन:स्थिति इसके लिए तैयार रहती है। जैसे वातावरण शांत रहता है, वैसे ही प्रश्न कर्ता एवं उत्तरदाता दोनों का मन भी शांत एवं स्थिर रहता है।कोलाहल से दूर शांत वातावरण का चयन इसलिए किया जाता है ताकि प्रश्नकर्ता के मन में एकाग्रता आ सके। वह पूर्ण मनोयोग से श्रवण कर उसे हृदयंगम कर सके। श्री कृष्ण एवं अर्जुन कुरुक्षेत्र के मैदान में महायुद्ध में संग्राम करने आए थे। दोनों की मन:स्थिति युद्ध करने के लिए ही तत्पर थी। तथापि श्रीकृष्ण - अर्जुन का अमृतमय संवाद युद्धक्षेत्र में हुआ था। भगवद्गीता के अलावा आज तक न तो युद्धक्षेत्र में आध्यात्मिक संवाद हुआ है और न ही इसके भविष्य में होने की कोई संभावना ही है।
6-संवाद का परिणाम
भगवद्गीता को छोड़कर किसी भी आध्यात्मिक संवाद का परिणाम परिलक्षित नहीं होता है। प्रश्नकर्ता के जीवन में क्या परिवर्तन हुआ ? - यह स्पष्ट नहीं दिखता। श्री कृष्ण से संवाद करने के कारण अर्जुन की मानसिक दशा में काफी परिवर्तन हुआ था। युद्ध न करने की घोषणा करने वाला पलायनवादी अर्जुन श्रीकृष्ण - संवाद अर्थात् भगवत् - वाणी सुनकर पूरे मनोयोग से युद्ध में भिड़ गया था। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर बाल गंगाधर तिलक जी ने कर्मयोग पर आधारित "गीता रहस्य" जैसा विशाल ग्रंथ ही लिख डाला।
7- श्रीकृष्णार्जुन संवाद
भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में वास्तव में श्री कृष्ण - अर्जुन संवाद हुआ ही नहीं है। इसमें श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद नहीं है, अपितु अर्जुन - श्रीकृष्ण संवाद है। क्योंकि सर्वप्रथम अर्जुन ने श्रीकृष्ण को आदेश के रूप में कहा था, तत्पश्चात् श्रीकृष्ण ने आदेश का पालन करते हुए केवल एक लघु वाक्यांश ही कहा था। जैसा कि पहले बताया जा चुका है पुष्पिका संपूर्ण भगवद्गीता का प्रतिनिधित्व करती है। अतः श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद ही लिखा गया, जो कि पूर्णरूपेण उचित है। हर अध्याय के समापन पर पुष्पिका के अंतर्गत केवल अध्याय के नाम में ही परिवर्तन हुआ है।