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ममता के लिए नई मुसीबत बने पीरजादा, ओवैसी के साथ मिलकर बिगाड़ेंगे खेल
पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव अप्रैल-मई में प्रस्तावित हैं। इस चुनाव में ममता को भाजपा की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने ममता की तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है। वह लगातार टीएमसी में तोड़फोड़ करने में जुटी हुई है।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। शुभेंदु अधिकारी समेत कई नेताओं के टीएमसी से अलग होने के बाद ममता के एक और सिपाही ने उन्हें झटका देते हुए अपना अलग दल बना लिया है। ममता बनर्जी के करीबी माने जाने वाले और फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इंडियन सेक्युलर फ्रंट नाम से नई पार्टी बनाने का एलान किया है।
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पीरजादा की इस घोषणा को ममता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सियासी जानकारों का कहना है कि पीरजादा और एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ममता बनर्जी का चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं और इससे भाजपा को फायदा होगा।
नया दल बनाकर दिया ममता को झटका
पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव अप्रैल-मई में प्रस्तावित हैं। इस चुनाव में ममता को भाजपा की ओर से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा ने ममता की तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है। वह लगातार टीएमसी में तोड़फोड़ करने में जुटी हुई है।
हाल के दिनों में टीएमसी के कई नेताओं ने पार्टी छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले ली है। पार्टी में हो रही लगातार टूट के कारण ममता को भारी झटका लगा है। ऐसे में पश्चिम बंगाल के मुस्लिमों के बीच काफी असर रखने वाले फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा ने नया दल बनाकर ममता को बड़ा झटका दिया है।
सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना
इंडियन सेक्युलर फ्रंट नाम से नया दल बनाने की घोषणा के दौरान पीरजादा ने कहा कि नया दल राज्य की सभी 294 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य मुस्लिम और दलित जैसे वंचित वर्ग के लोगों को मुख्यधारा में लाना है।
अब्बास ने इस पार्टी का नया अध्यक्ष अपने भाई नौशाद सिद्दीकी को बनाया है। उन्होंने पश्चिम बंगाल के हर जिले में पार्टी का संगठन तैयार करने की भी घोषणा की। उन्होंने कहा कि जिलों में बैठकों का आयोजन कर लोगों को पार्टी की नीतियों से अवगत कराया जाएगा।
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कभी ममता के करीबी थे पीरजादा
फोटो-सोशल मीडिया
पश्चिम बंगाल की सियासत में पीरजादा को काफी समय से ममता बनर्जी का करीबी माना जाता रहा है। वैसे पिछले कुछ समय से वे ममता से नाराज चल रहे हैं और खुले रूप से तृणमूल कांग्रेस के प्रति विरोध जताते रहे हैं।
उन्होंने ममता सरकार पर मुस्लिमों की अनदेखी करने का बड़ा आरोप लगाया है। जानकारों का कहना है कि पश्चिम बंगाल के करीब 100 सीटों पर फुरफुरा शरीफ दरगाह का असर माना जाता है। ऐसे में बड़ी चुनौती वाले चुनाव में अब्बास सिद्दीकी का अपनी पार्टी बना लेना ममता के लिए काफी बड़ा झटका साबित हो सकता है।
मुस्लिमों में दरगाह का काफी सम्मान
फुरफुरा शरीफ दरगाह बंगाल के हुगली जिले में स्थित है और मुस्लिमों में दरगाह के प्रति काफी सम्मान है। दक्षिण बंगाल में दरगाह का काफी असर माना जाता रहा है। ऐसे में अब्बास सिद्दीकी के अलग होने से ममता बनर्जी को मुस्लिम मतों के नुकसान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
फोटो-सोशल मीडिया
ओवैसी के साथ उतरेंगे मैदान में
अब्बास सिद्धकी ने हाल में एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी से मुलाकात की थी और इस मुलाकात के बाद ओवैसी ने साफ तौर पर कहा था कि वह अब्बास की अगुवाई में पश्चिम बंगाल के चुनावी मैदान में उतरेंगे।
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उन्होंने यह भी कहा था कि पश्चिम बंगाल के संबंध में अब्बास जो भी फैसला लेंगे, वह हमें मंजूर होगा। सूत्रों का कहना है कि अब्बास और ओवैसी के बीच बंगाल चुनाव साथ लड़ने और सीटों के बंटवारे पर चर्चा भी हो चुकी है । पश्चिम बंगाल में करीब तीस फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और उनमें कम से कम 24 फीसदी बंगाली भाषी मुस्लिम है।
मुस्लिम मतों के बंटवारे की आशंका
अब्बास और ओवैसी के चुनाव मैदान में उतरने से मुस्लिम मतों में बंटवारे की संभावना प्रबल हो गई है। इसका सबसे बड़ा नुकसान ममता को उठाना पड़ेगा जबकि इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को मिलेगा।
यही कारण है कि सियासी जानकारों का कहना है कि अब्बास-ओवैसी मिलकर इस बार के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी का खेल बिगाड़ सकते हैं।
भाजपा की तगड़ी व्यूहरचना
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस बार पूरी ताकत लगा रखी है और वह हर मोर्चे पर ममता बनर्जी की घेराबंदी करने में जुटी हुई है। पार्टी के दो बड़े नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा बंगाल के चुनाव में व्यक्तिगत दिलचस्पी ले रहे हैं और पार्टी की चुनावी रणनीति को आक्रामक रूप देने में जुटे हुए हैं।
भाजपा की व्यूहरचना के कारण टीएमसी में भी टूट हो रही है और हाल के दिनों में पार्टी के कई नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। ऐसे में मुस्लिम मतों का बंटवारा ममता के लिए और बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है।
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