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बिहार चुनाव: क्या मगध का सियासी किला बचाने में कामयाब हो पाएंगे तेजस्वी?
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। चुनाव में हार का मुंह न देखना पड़े इसलिए सभी दल अभी से रणनीति बनाने में जुट गये हैं।
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। चुनाव में हार का मुंह न देखना पड़े इसलिए सभी दल अभी से रणनीति बनाने में जुट गये हैं।
वे परम्परागत वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए जी जान से लगे हुए हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहार के सियासी समीकरण बदल गए हैं। जेडीयू एक बार फिर से अपने पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ है, जिनके सहयोगी के तौर पर एलजेपी है और जीतन राम मांझी भी वापसी के मूड में हैं।
जबकि आरजेडी कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा और वामपंथी दलों के साथ मिलकर चुनावी किस्मत आजमा रही है।
वहीं अब मगध के इलाके में आरजेडी के किले को बचाने की चुनौती तेजस्वी यादव के कंधों पर है, क्योंकि नीतीश कुमार ने 2010 में बीजेपी के साथ मिलकर इस इलाके की सभी सीटों को अपने नाम कर लिया था।
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की फोटो (साभार-सोशल मीडिया)
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मगध का किला बचाने की जिम्मेदारी तेजस्वी के कंधों पर
आरजेडी को महज एक सीट मिली थी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका था। वहीं, जेडीयू को 16 सीटें मिली थीं और बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं। इसी का नतीजा था कि राज्य बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की सरकार बनी थी, अब फिर से वही समीकरण सामने हैं, जिससे तेजस्वी यादव को मुकाबला करना है।
बता दें कि मगध का इलाका लालू प्रसाद यादव की राजनीति का मजबूत गढ़ माना जाता है। बिहार की सियासत में मगध का इलाका प्रदेश की सत्ता का भविष्य तय करता है। लेकिन नीतीश कुमार का सियासी प्रभाव बढ़ने के साथ ही यह जेडीयू-बीजेपी का दुर्ग बन गया।
नीतीश कुमार इस इलाके की धुरी माने जाते हैं और यही वजह है कि 2015 में आरजेडी यहां अपने पैर मजबूती से जमाने में कामयाब रही थी, लेकिन अब नीतीश और बीजेपी एक साथ हैं तो तेजस्वी यादव के लिए मगध का सियासी साम्राज्य बचाने की चुनौती है।
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आरजेडी नेता लालू यादव की फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
2015 में मगध प्रमंडल की 26 सीटों में से 10 सीटें आरजेडी के खाते में
2015 के बिहार विधानसभा के चुनाव में मगध प्रमंडल की 26 सीटों में से 10 सीटें आरजेडी ने जीतकर अपना दबदबा कायम किया था।
इसके अलावा जेडीयू के खाते में 6 सीटें आई थीं और कांग्रेस को चार सीटें को मिली थीं। वहीं, एनडीए के खाते में छह सीटें आई थीं, जिनमें बीजेपी को 5 और जीतनराम मांझी की पार्टी को एक सीट मिली थी।
बिहार की सियासत में मगध का इलाका प्रदेश की सत्ता का भविष्य तय करता है। 2015 में आरजेडी ने अरवल की दो सीटों में से एक, जहानाबाद की तीन सीटों में से दो, औरंगाबाद की छह सीटों में से एक, नवादा की पांच सीटों में से दो और गया की 10 सीटों में से चार सीटें जीती थीं।
इसके पांच साल पहले आरजेडी का अरवल, जहानाबद, औरंगाबाद और नवादा जिले में खाता तक नहीं खुल सका था। आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस की भी स्थिति 2010 के मुकाबले 2015 में बेहतर हुई थी। उसने 2015 में औरंगबाद में दो और गया व नवादा में एक-एक सीट जीती थी, जबकि इससे पहले मगध में उसका खाता नहीं खुला था।
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