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Anil Ambani Business Empire: कभी दुनिया के अमीरों में होती थी इनकी गिनती, आज है ऐसी हालत, दिवालिया हो रही कंपनियां
Anil Ambani Business Empire: अनिल की डिफेंस कंपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड भी दिवालिया हो चुकी है। यह वही डिफेंस कंपनी है जिसे रफाल को बनाने वाली कंपनी डसॉ एविएशन ने 2017 में अपना ऑफसेट साझेदार बनाया था।
Anil Ambani Business Empire: कहते हैं जब समय साथ देता है तो इंसान किसी भी बिजनेस या काम में हाथ लगाए तो उसे तरक्की मिलती है। लेकिन वहीं जब समय साथ न दे तो वह बिजनेस या काम चैपट हो जाता है। शायद ऐसा ही हो रहा है इस बिजनेसमैन के साथ जिसका समय साथ नहीं दे रहा है और उसके बुरे दिन आते जा रहे हैं। कभी दुनिया के अमीरों में होती थी इनकी गिनती लेकिन आज एक-एक कर उनकी कंपनियां दिवालिया हो रही हैं। हमारे देश में अंबानी परिवार सबसे रईस है, लेकिन भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी के छोटे भाई की कहानी उनसे काफी जुदा है। जहां मुकेश विवादों को अपने पास भी नहीं फटकने देते तो वहीं उनके छोटे भाई कई बार विवादों में फंस चुके हैं।
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यहां हम बात कर रहे हैं अनिल अंबानी की। धीरु भाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अंबानी की एक-एक कर कई कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं। उन पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। अब अनिल की डिफेंस कंपनी रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड भी दिवालिया हो चुकी है। यह वही डिफेंस कंपनी है जिसे रफाल को बनाने वाली फ्रांस की कंपनी डसॉ एविएशन ने 2017 में अपना ऑफसेट साझेदार बनाया था।
फ्रांस ये पीएम मोदी कर सकते हैं रक्षा सौदा-
अब पीएम नरेंद्र मोदी 13-14 जुलाई को फ्रांस की दो दिनों की यात्रा पर जा रहे हैं। पीएम मोदी को फ्रांस की राष्ट्रीय परेड में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया है। सूत्रों की मानें तो पीएम अपनी इस यात्रा के दौरान एक और बड़ा रक्षा सौदा कर सकते हैं, जिसमें नौसेना के लिए रफाल-एम की खरीद भी शामिल है। बता दें कि यह वही कंपनी है, जिससे भारत ने वायुसेना के लिए 36 रफाल खरीदे थे।
रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लि. को बनाया था अपना साझेदार-
दरअसल, रफाल को बनाने वाली कंपनी डसॉ एविएशन ने 2017 में अनिल अंबानी के मालिकाना हक वाली रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को अपना ऑफसेट साझेदार बनाया था। हालांकि इसको लेकर उस समय भी सवाल उठाए गए थे और अब फिर से सवाल उठने लगे हैं। विपक्ष ने उस समय सरकार पर सवाल उठाते हुए जोर-शोर से ये मुद्दा उठाया था और कहा था कि ऐसे समय में जब अनिल अंबानी समूह की अधिकतर कंपनियां बर्बादी की ओर बढ़ रही हैं और उन्हें डिफेंस कारोबार का बहुत तजुर्बेकार भी नहीं कहा जा सकता, फिर उनके साथ 30 हजार करोड़ रुपये का करार क्यों किया जा रहा है? इसको लेकर विपक्ष ने काफी विरोध किया था।
कभी दुनिया के 10 अरबपतियों में थे शामिल-
अनिल अंबानी कभी दुनिया के दस अरबपतियों में शामिल थे, लेकिन आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। अनिल कभी कम्युनिकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली उत्पादन और सप्लाई, पोत निर्माण, होम फाइनेंस जैसे तमाम बिजनेस में अपना परचम लहराते थे। लेकिन आज वे कर्ज के ऐसे जंजाल में फंस गए हैं कि उनकी कई कंपनियां कंगाल हो चुकी हैं और वहीं कई औने-पौने दामों पर बिक चुकी हैं। रिलायंस कैपिटल की नीलामी प्रक्रिया में जाने के बाद अनिल की एक और कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (आरएनईएल) भी कंगाली की राह पर है। बतादें ये वही कंपनी है, जिसके जरिए अनिल अंबानी ने डिफेंस सेक्टर में कदम रखा था। आरएनईएल की पैरेंट कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर है।
दरअसल, अनिल अंबानी समूह ने 2015 में पीपावाव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग लिमिटेड को खरीदा था। इसके बाद कंपनी का नाम बदल कर रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड कर दिया गया था और रफाल डील इस ग्रुप का पहला बड़ा सौदा था। फ्रांसीसी कंपनी डसॉ ने रिलायंस के साथ एक जॉइंट वेंचर शुरू किया और कंपनी का नाम रखा गया था डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड। इसमें रिलायंस की हिस्सेदारी 51 फीसदी जबकि दसॉ का 49 फीसदी थी। कंपनी ने नागुपर के मिहान स्थित स्पेशल इकोनॉमिक जोन में फैक्ट्री भी लगा ली और दावा है कि चरणबद्ध तरीके से लड़ाकू जहाजों के कल-पुर्जे यहां तैयार किए जा रहे हैं। लेकिन अनिल अंबानी की रिलायंस नेवल डिफेंस एंड इंजीनियरिंग भी कर्ज के दलदल में फंस चुकी है और कर्ज नहीं चुकाने पर कुछ पक्ष (लेनदार) उन्हें नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी घसीट ले गए हैं। एनसीएलटी की अहमदाबाद स्पेशल बेंच ने नीलामी की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है। स्वान एनर्जी के नेतृत्व वाली हेजल मर्केंटाइल कंसोर्टियम अनिल की इस कंपनी को खरीदने की दौड़ में सबसे आगे बताई जा रही है और इसने 2,700 करोड़ रुपये की बोली लगाई है।
एडीएजी कंपनियों की बाजार पूंजी-
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी की शेयरहोल्डिंग के मुताबिक मार्च 2023 तक आरएनईएल में प्रमोटर्स (अनिल अंबानी) की कोई हिस्सेदारी नहीं थी, जबकि इसमें सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी का 7.93 फीसदी हिस्सा था। विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास भी आधा फीसदी के करीब हिस्सेदारी थी। बाकी के शेयर आम निवेशकों के पास थे। मतलब साफ है कंपनी के डूबने से सबसे ज्यादा चपत किसी को लगेगी तो वह हैं आम निवेशक और एलआईसी।
आरएनईएल ने 2022 की जुलाई-सितंबर तिमाही के जो आंकड़े बीएसई को उपलब्ध कराए थे, उनके मुताबिक कंपनी की आय केवल 68 लाख रुपये थी। इसी अवधि में कंपनी ने अपना कुल घाटा 527 करोड़ रुपये बताया था। 19 अप्रैल 2023 की एक्सचेंज फाइलिंग में कंपनी ने 2021-22 के नतीजे बताए थे। इसके मुताबिक साल भर में कंपनी की आय 6 करोड़ 32 लाख रुपये रही, जबकि कुल घाटा 2086 करोड़ रुपये का था।
जॉइंट वेंचर पर पड़ेगा असर-
शेयर मार्केट के जानकारों की मानें तो आरएनईएल के दिवालिया हो जाने का असर भारत-फ्रांस के जॉइंट वेंचर डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड पर भी निश्चित तौर पर पड़ेगा। क्योंकि जॉइंट वेंचर लगभग बराबरी का है और ऐसे में दोनों कंपनियों को निवेश भी बराबर ही करना है। देखा जाए तो ऐसे में डसॉ तो अपना हिस्सा निवेश करेगी, लेकिन अनिल अंबानी अपने हिस्से का निवेश कैसे करेंगे। अनिल के हिस्से का क्या होगा।
जब अनिल ने माना कि वे दिवालिया हो चुके हैं-
बात 2020 की है जब चीन के बैंकों के कर्ज से जुड़े विवाद पर इंग्लैंड के हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। इस दौरान अनिल अंबानी ने माना था कि वह दिवालिया हैं और कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं। अनिल के वकील ने हाई कोर्ट में अपनी दलील में कहा था, अनिल अंबानी की नेटवर्थ जीरो है, वे दिवालिया हैं। इसलिए वे बकाया नहीं चुका सकते। परिवार के लोग भी उनकी मदद नहीं कर पाएंगे। अब यहां यह सवाल उठ रहा है कि जब अनिल अंबानी पैसे की तंगी के कारण एक के बाद एक अपनी जमी-जमाई कंपनियों से हाथ धो रहे हैं, तो वे कैसे रफाल के लिए बने जॉइंट वेंचर्स को चला पाएंगे।
जानकारों की मानें तो डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड अनिल अंबानी ग्रुप की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की सब्सिडियरी है तो ऐसे में हो सकता है कि जॉइंट वेंचर्स की शर्तें कुछ अलग हों और ये साझा उपक्रम चलता रहे। लेकिन अनिल अंबानी ग्रुप की इस समय जो खस्ता माली हालत है उसे देखते हुए ये उपक्रम शायद ही ‘मेक इन इंडिया’ के उस मकसद को पूरा कर पाए, जिसके लिए इसे शुरू किया गया था। वहीं रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की ऑफिशियल वेबसाइट पर भी इस जॉइंट वेंचर्स के फाइनेंशियल स्टेटमेंट अपडेट नहीं हैं। आखिरी बार 2019 में वहां फाइनेंशियल स्टेटमेंट जारी किया गया था। जिसमें बताया गया था कि 31 मार्च 2019 तक डसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड की कुल वित्तीय देनदारियां 142 करोड़ से अधिक थी, जबकि 31 मार्च 2018 को ये आंकड़ा 38 करोड़ 81 लाख रुपये का था।
इस कारण से इस हालत में पहुंच गए अनिल अंबानी-
अनिल अंबानी को करीब से जानने वाले आर्थिक विश्लेषक की मानें तो उनकी इस हालत की वजह वित्तीय कुप्रबंधन है। बँटवारे के बाद उन्हें जो कंपनियां मिली थीं, उनकी तरक्की पर ध्यान देने के बजाय अनिल नए धंधों में पैसा लगाते रहे जो उनके लिए एक घाटे का सौदा साबित हुआ। नई कंपनियां निवेशकों का भरोसा नहीं जीत पाईं और पहले से स्थापित कंपनियां पटरी से उतरने लगीं। परिणाम यह हुआ कि अनिल अंबानी कर्ज के दलदल में फंसते चले गए।
2007 में अमीरों की सूची में थे-
बात 2007 की है। मुकेश और अनिल में बँटवारे को दो साल हो गए थे। उस साल की फोर्ब्स की अमीरों की सूची में दोनों भाई, मुकेश और अनिल रइसों की लिस्ट में काफी ऊपर थे। मुकेश, अनिल से थोड़े ज्यादा अमीर थे। सूची के मुताबिक अनिल अंबानी 45 अरब डॉलर के मालिक थे और मुकेश 49 अरब डॉलर के मालिक थे।
फिर नहीं उबर पाए अनिल-
2007-2008 की मंदी ने बहुत से उद्योपतियों को तगड़ा झटका दिया था, जिनमें मुकेश अंबानी भी थे, उनकी दौलत में तकरीबन 60 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन वे इस मुश्किल समय से निकल आए और अपनी पुरानी स्थिति के नजदीक पहुंच गए और अब लगातार आगे बढ़ रहे हैं। इसके विपरित 2008 में कई लोगों का यह मानना था कि अनिल अंबानी अपने बड़े भाई मुकेश अंबानी से आगे निकल जाएंगे, खास तौर पर रिलायंस पावर के पब्लिक इश्यू के आने से पहले। रिलायंस पावर का इश्यू कई मायनों में ऐतिहासिक था और एक मिनट से भी कम समय में पूरा सब्सक्राइब हो गया था। माना जा रहा था कि उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना के एक शेयर की कीमत एक हजार रुपए तक पहुंच सकती है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अगर ऐसा हुआ होता तो अनिल वाकई मुकेश से बहुत आगे निकल जाते।
अनिल अंबानी का हर धंधा चैपट हो गया। उनका कोई भी धंधा पनप नहीं पाया। इस समय उनके ऊपर भारी कर्ज है। ऐसी स्थिति में अब वे कुछ नया शुरू करने की हालत में नहीं हैं। अनिल अंबानी इस समय अपने अधिकतर कारोबार को या तो बेंच रहे हैं या फिर उसे समेटने में लगे हैं। अब अनिल अंबानी इस मुसीबत से कैसे पार पाएंगे यह तो कहना मुश्किल होगा।