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सावधान: यूपीआई के जरिए भी होने लगा फ्रॉड

raghvendra
Published on: 6 July 2019 11:04 AM GMT
सावधान: यूपीआई के जरिए भी होने लगा फ्रॉड
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नई दिल्ली: यूपीआई जानी यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस डिजिटल पेमेंट का तेज, आसान और सुरक्षित जरिया माना जाता है लेकिन अब जालसाजों ने इसमें भी सेंध लगा दी है। हाल के दिनों में यूपीआई पेमेंट के लिए फोन-पे जैसे एप, ओएलएक्स जैसे ऑनलाइन क्लासीफाइड पोर्टल और नेशनल पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पास जालसाजी की शिकायतें मिली हैं। अधिकांश शिकायतें सोशल मीडिया के जरिए की गई हैं। इनकी जड़ में यूपीआई का एक फीचर जिसके जरिए जालसाज लोगों के बैंक खातों से पैसे उड़ा लेते हैं।

यूपीआई में एक फीचर है जिसके जरिए कोई व्यक्ति या कोई विक्रेता किसी यूजर को रिक्वेस्ट भेज सकता है कि उसे एक रकम भेज दी जाए। यूजर एक सिक्यूरिटी पिन का प्रयोग करके लेनदेन को ऑथराइज करना होता है। यह पिन एटीएम पिन सरीखा होता है जिसे किसी को बताया नहीं जाना चाहिए। ऐसे में जालसाज बहाने से बातों में फंसा कर यूपीआई पिन जान लेता है और पैसा लूट लेता है। यूपीआई में दिया गया ‘रिक्वेस्ट मनी’ के इस फीचर से जालसाज लूट कर रहे हैं।

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एक अन्य तरीके में जालसाज किसी व्यक्ति को फोन करके कहते हैं वे किसी पेमेंट प्लेटफार्म से बोल रहे हैं और कैशबैक का एक ऑफर है। यूजर को फंसा कर कहा जाता है कि वह कलेक्शन रिक्वेस्ट के जवाब में अपना पिन डाल दे। पिन डालते ही यूजर के खाते से रकम डेबिट हो जाती है। कार्ड से लेनदेन में भी यही फ्रॉड किया जाता है। फर्क इतना है कि यूजर से ओटीपी शेयर करने को कहा जाता है लेकिन जालसाज ओटीपी का नाम न लेकर कहते हैं कि मैसेज में एक ‘कोड’ भेजा जाएगा बस उसी को शेयर करना है जिसके बाद आपको कैशबैक मिल जाएगा। ये कोड असल में ओटीपी होता है।

यूपीआई के सिस्टम में सेंध इस तरह लगाई जाती है कि जालसाज ऑनलाइन खरीदारी करके पेमेंट मोड में आपका ‘यूपीआई वीपीए’ यानी वर्चुअल पेमेंट एड्रेस भर देते हैं। चूंकि आपका वीपीए भरा गया है सो आपके पास मैसेज आएगा। बस, किसी और की खरीदारी का आप पेमेंट करके लुट जाते हैं। ऐसा बहुत नहीं होता लेकिन फिर भी शिकायतें तो आ ही रही हैं।

एक अन्य तरीके में जालसाज बैंक या यूपीआई प्लेटफाम्र्स के फर्जी कस्टमर केयर नंबर प्रचारित कर देते हैं। जब कोई व्यक्ति इन नंबर पर कॉल करता है तो उससे संवेदनशील जानकारी उगाह ली जाती है। गूगल पे के अनुसार अगर कोई आपको पैसा भेज रहा है तो कभी आपको पिन डालने की जरूरत नहीं होती। अगर कोई आपसे पिन डालने को कह रहा है तो इसका मतलब है कि आपके खाते से पैसा जाने वाला है।

फंसने पर क्या करें

अगर कोई व्यक्ति यूपीआई का इस्तेमाल करते वक्त फ्रॉड का शिकार हो जाता है तो पुलिस के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं है। आपका बैंक भी आपसे शिकायत दर्ज कराने को कहेगा। बैंक का तर्क होता है कि चूंकि यूजर ने स्वयं अपनी ओर से सुरक्षा जांच के उपाय पूरे किए हैं (पिन या ओटीपी डालना) सो बैंक ऐसे ही किसी के खाते से रकम निकाल कर आपको लौटा नहीं सकता।

पुलिस के पास जाने पर भी समस्या सुलझने में लंबा समय लगता है। अधिकांश मामलों में पीडि़त व्यक्ति, जालसाज, वास्तविक खाताधारक और जहां पैसा निकाला गया है - ये सब जगहें अलग-अलग होती हैं। ऐसे में जब चार-पांच जगह की पुलिस शामिल हो जाती है। सभी तरह की सूचना एकत्र करना और अपराधी को पकडऩा आसान नहीं होता।

हालांकि बैंक किसी यूपीआई आईडी के पीछे वाले व्यक्ति की जानकारी आसानी से पता कर भी लेते हैं लेकिन फ्रॉड के मामलों में ऐसी जानकारी किसी काम की नहीं रहती। दरअसल जालसाज किसी अन्य व्यक्ति के केवाईसी के जरिए बैंक खाता खोल लेते हैं फिर उसी खाते के जरिए फ्रॉड किया जाता है।

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जालसाजों से बचने का एक तरीका यह भी है कि किसी भी रिमोट शेयरिंग एप या सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल न करें। ‘एनी डेस्क’ नामक एप के बारे में बैंकों ने चेताया भी है। इस एप के जरिए कोई जालसाज आपको फोन या डेस्कटाप से समस्त जानकारी आराम से ले सकता है। दरअसल एनी डेस्क जैसे एप किसी भी व्यक्ति को आपके फोन या पीसी को रिमोट कंट्रोल करने की अनुमति देते हैं।

फ्लिपकार्ट का पेमेंट एप ‘फोन पे’ वालमार्ट के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। वालमार्ट ने पिछले साल १६ बिलियन डालर में फ्लिपकार्ट में कंट्रोलिंग हिस्सेदारी खरीदी थी। फोन पे के बारे में वालमार्ट कितना उत्साहित है यह इसी से पता चलता है कि पिछले महीने अमेरिका के अर्कंसास में हुई सालाना शेयरहोल्डर्स की मीटिंग में कंपनी के अधिकारियों ने कम से कम २० बार फोन पे का जिक्र किया। बताया जाता है कि फोन पे में वालमार्ट का दांव १४ बिलियन डालर का है। जब वालमार्ट ने फ्लिपकार्ट ग्रुप का ७७ फीसदी हिस्सा २१ बिलियन डालर में खरीदा था तब फोन पे की वैल्यूएशन १.५ बिलियन डालर की थी। फोन पे के प्रतिद्वंद्वी पेटीएम में पिछले साल बर्कशायर हैथवे ने ३०० मिलियन डालर का निवेश किया है। पेटीएम की वैल्यू १० बिलियन डालर आंकी गई थी। फोन पे पर अप्रैल महीने में ही २९० मिलियन लेनदेन किए गए। सालना ८० बिलियन डालर का लेनदेन इस एप से होता है।

यूपीआई अब विक्रेताओं के बीच काफी पॉपुलर हो रहा है। इस वर्ष जून में मर्चेंट यूपीआई लेनदेन ३१ फीसदी हो गया जबकि पिछले वर्ष अप्रैल में यह १६ फीसदी था। जून में करीब २४ करोड़ मर्चेंट पेमेंट किए गए। जबकि कुल यूपीआई डिजिटल पेमेंट ७६ करोड़ के करीब थे जिनकी वैल्यू १.४६ ट्रिलियन रही। यह ट्रेंड दर्शाता है कि पर्सन टू पर्सन पेमेंट के साथ साथ पर्सन टू मर्चेंट पेमेंट तेजी से बढ़ रहा है। जून महीने में गूगल पे पर २७ करोड़ लेनदेन, फोन पे पर २४ करोड़ १० लाख और पेटीएम पर १८ करोड़ से ज्यादा यूपीआई लेनदेन हुए। फिलवक्त १४४ बैंक यूपीआई प्लेटफार्म पर हैं। यूपीआई पेमेंट ने मोबाइल वॉलेेट पेमेंट को भी पीछे छोड़ दिया है। अप्रैल महीने में ३७ करोड़ ८८ लाख वॉलेट लेनदेन हुए जिनकी कीमत १५५.४८ बिलियन रुपए थी। जबकि इसी महीने ७८ करोड़ १७ लाख यूपीआई लेनदेन हुए जिनकी कीमत १.४२ ट्रिलियन रुपए थी।

ऑनलाइन शॉपिंग में भी फ्रॉड बहुत होते हैं। इनसे बचने के लिए सावधानी बरतना जरूरी है। वेबसाइट से खरीदारी करने से पहले गूगल पर उसके बारे में सर्च कर लें। अगर सर्च में कोई रिजल्ट नहीं आ रहा है या निगेटिव रिजल्ट हैं, तो ऐसी साइट से कभी भी शॉपिंग न कीजिए। अगर ऐसी साइट से खरीदारी की तो हो सकता है कि वे आपसे ऑनलाइन पेमेंट ले लें और प्रोडक्ट की डिलीवरी कभी न हो। दूसरा, वे आपके बैंक एकाउंट की डिटेल और दूसरे जरूरी डेटा की चोरी कर सकती हैं। ऐसी फर्जी वेबसाइट आमतौर पर फेसबुक और गूगल ऐड के जरिए आप तक पहुंच बनाती हैं।

वेबसाइट का कनेक्शन कितना सिक्योर है। ब्राउजर के एड्रेस बार में बेवसाइट का सिक्योरिटी स्टेटस देखिए। एचटीटीपीएस पेज को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। पेमेंट पेज को एचटीटीपीएस से ही शुरू होना चाहिए। वेबसाइट की डिजाइन, भाषा और व्याकरण को गौर से देखिए। इसमें कमी दिखने पर साइट से दूर रहिए। अगर वेबसाइट में बहुत अधिक विज्ञापन हैं तो उस पर संदेह करना चाहिए। कई बार फर्जी दिखने वाली वेबसाइट के झांसे में हम कैश ऑन डिलीवरी ऑप्शन के चक्कर में फंस जाते हैं। बहुत सस्ते सामान के झांसे में कतई न पड़ें। हो सकता है कि सामान जो दिख रहा है वह आप तक पहुंचे ही नहीं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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