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आम आदमी की बढ़ी मुश्किलें: आसमान छूने लगी दाल की कीमतें, इसलिए आई तेजी
कोरोना संकट के बीच लगातार बढ़ती महंगाई से आम आदमी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बीते कुछ महीने से सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं, इस बीच अब दालों के दाम भी बढ़ने लगे हैं।
नई दिल्ली: कोरोना संकट के बीच लगातार बढ़ती महंगाई से आम आदमी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बीते कुछ महीने से सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं, इस बीच अब दालों के दाम भी बढ़ने लगे हैं। जिससे आम आदमी के जेब पर भी बोझ बढ़ सकता है। दिल्ली समेत कई बड़े शहरों में दालोंं की कीमत में 15 से 20 रुपये की वृद्धि हुई है। पिछले साल इसी अवधि में चना दाल 70 से 80 रुपये बिक रहा था, जो कि अब 100 रुपये से ज्यादा की कीमत पर मिल रहा है। वहीं अरहर दाल की कीमत 115 रुपये प्रति किलो हो चुकी है।
सप्लाई बढ़ाने के लिए स्टॉक रिलीज करने की मांग
वहीं कारोबारियों की मांग है कि सरकारी एजेंसी NAFED को सप्लाई बढ़ाने के लिए अपना स्टॉक रिलीज करना चाहिए। डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन दूसरी ओर सप्लाई में गिरावट आई है। इसलिए कारोबारियों ने 2020-21 के लिए आयात कोटा जारी करने की मांग की है। हालांकि सरकार का कहना है कि सप्लाई की स्थिति ठीक है और अगले तीन महीने के अंदर बाजार में खरीफ सीजन की फसल भी आने लगेगी। इस साल काफी ज्यादा पैदावार का अनुमान है।
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दाल की कीमतों में आई तेजी (फोटो- सोशल मीडिया)
93 लाख टन तक हो सकता है दालों का उत्पादन
बता दें कि हाल ही में कृषि आयुक्त एसके मल्होत्रा ने इंडियन पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन (IPGA) की ओर से आयोजित किए गए एक वेबिनार में बताया था कि भारत को उम्मीद है कि खरीफ सीजन में करीब 93 लाख टन तक दालों का उत्पादन होगा। वहीं अरहर का उत्पादन बढ़कर 40 लाख टन होने की उम्मीद है। जो कि पिछले साल 38.3 लाख टन रहा था।
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क्यों बढ़ रही दालों की कीमतें?
कारोबारियों के मुताबिक, कोरोना वायरस के चलते लागू हुए लॉकडाउन के दौरान तुअर की कीमतें प्रति किलोग्राम 90 रुपये तक बढ़ गई हैं, जो कि बाद में प्रति किलोग्राम 82 रुपये तक घट गईं। हालांकि अब फिर से कीमतों में वृद्धि हो रही है। फेस्टिव सीजन की मांग के चलते दालों की मांग में तेजी आई है। कारोबारियों को डर है कि कर्नाटक में ज्यादा बारिश की वजह से अरहर की फसल को नुकसान पहुंचेगा। पैदावर में दस फीसदी नुकसान हो सकता है। कहा जा रहा है कि जब तक नई फसल नहीं आएगी, तब तक कीमतों में तेजी बनी रहेगी।
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