TRENDING TAGS :
Businessman Success Story: गरीबी व चॉल में बिता बचपन, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह लेते थे सलाह, बुढ़ापे में शुरू की कंपनी
Hasmukhbhai T. Parekh Success Story: पारेख का जन्म साल 1911 में 10 मार्च को गुजरात के सूरत में हुआ था। उनका बचपन अपने पिता के साथ चॉल में बिता था। उन्होंने अपने बलबूते के दम पर विदेश पढ़ने गए। उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में फेलोशिप मिली थी। साल 1992 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया था।
Success Story Businessman Hasmukhbhai T. Parekh: बिना संघर्ष न तो कोई सफलता मिलती है और न ही कोई बड़ा मुकाम मिलता है। एक बड़ा मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष काफी अधिक करना पड़ता है। तब जाकर दुनिया में आपकी जय जयकार होती है। आज एक ऐसी ही सफलता की कहानी लेकर आया हूं। यह सफलता की कहानी उन लोगों के लिए है, जो यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि अगर बचपन में परिस्थिति सही होती तो आज दुनिया में मेरा नाम हो रहा होता। अगर आप युवा हैं या फिर किसी आयु वर्ग के हों और जीवन में परिस्थितिओं का हवाला देते हुए बड़ा मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष नहीं कर रहे हैं तो ऐसे लोग देश की सबसे बड़ी होम फाइनेंस सेवा देने वाली कंपनी HDFC की शुरुआत करने वाले हसमुखभाई टी. पारेख (Hasmukhbhai Parekh) के संघर्ष की कहानी से प्ररेणा ले सकते हैं।
HDFC बना गया दुनिया का टॉप 10 बैंक
1 जुलाई, 2023 को एचडीएफसी बैंक व एचडीएससी का वियल हो गया। इस वियल के साथ एचडीएफसी बैंक दुनिया के टॉप 10 बैंकों में शुमार हो गया है, जहां आज तक देश का कोई बैंक नहीं पहुंच सका। एचडीएफसी की स्थापना करने वाले पारेख का बचपन बड़ा मुश्लिक भरा रहा है और उनका पूरा बपचन एक चॉल में अपने पिता के साथ बिताया। ऐसा न तो कभी उन्होंने ने सोचा था और न ही उनके परिवार वालों ने कि हसमुखभाई टी. पारेख एक दिन उस बैंक की स्थापना करें, जो देश का सबसे बड़ा बैंक कहलाएगा और लोगों का घर बनाने में सपना पूरा करेगा। आज भले ही पारेख हम लोगों के बीच न हो, लेकिन उनके संघर्ष की कहानी लाखों करोड़ युवा के लिए किसी प्ररेणा से कम नहीं है। संघर्ष में खास बात यह है कि पारेख से HDFC की स्थापना तब कि जब, वह बुढ़ापे की ओर चल दिये थे। उन्होंने 66 वर्ष की आयु में इसकी स्थापना की थी।
चॉल में बिता बचपन, अपने दम पर विदेश गए पढ़ने
पारेख का जन्म साल 1911 में 10 मार्च को गुजरात के सूरत में हुआ था। उनका बचपन अपने पिता के साथ चॉल में बिता था। चॉल वह जगह होती है। यहां काफी अधिक संख्या में लोग निवास करते हैं। इस जगह में रहने वाले लोग अधिकांश गरीब होते हैं। पारेख बचपन भले ही चॉल में बीता हो, लेकिन वह पढ़ने में बहुत होशियार थे। उन्होंने अपने बलबूते के दम पर विदेश पढ़ने गए। उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में फेलोशिप मिली थी। वहां से पढ़ाई पूरे करने बाद उन्होंने बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज से डिग्री पूरी की। अपने करियर की शुरुआत स्टॉक ब्रोकिंग फर्म हरिकिशनदास लखमीदास से की।
Also Read
आईसीआईसी बैंक में खेली सबसे लंबी पारी
कई साल यहां नौकरी करने के बाद वे साल 1956 आईसीआईसीआई बैंक में शामिल हो गए। यहां पर उन्होंने अपने जीवन की सबसे लंबी पारी खेली। पारेख ने यहां पर डेप्यूटी जनरल मैनेजर से लेकर बैंक के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर तक की जिम्मेदारी संभाली। ऐसा कहा जाता है कि आईसीआईसीआई बैंक आज जो भी मुकाम हासिल किया हुआ है, उसके पीछे पारेख का बहुत बड़ा हाथ हैं। उनके साथ काम कर चुके एक्सिस बैंक में उपाध्यक्ष-आईटी चित्राल शाह एक किस्सा शेयर करते हुए कहते हैं कि हसमुखभाई टी. पारेख ने भारत के दो सबसे बड़े और सबसे सम्मानित वित्तीय संस्थानों आईसीआईसीआई और एचडीएफसी को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हर आदमी का हो घर देखा था यह सपना
शाह कहते हैं कि उन्होंने यूके में पढ़ाई के दौरान आम लोगों के पास अपना घर होने का सपना देखने का साहस किया। चालीस साल बाद जब उन्होंने आईसीआईसीआई से पद छोड़ा, तब दस लाख भारतीयों के पास घर थे। पारेख हमेशा लोगों के बीच रहना पसंद करते थे। उन्हें आम लोगों के बीच रहना, उनके लिए काम करना पसंद था। उनका सपना था कि भारत के हर नागरिक के पास अपना मकान हो। ICICI बैंक से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने इसी सपने पर काम करना शुरू कर दिया।
बुढ़ापे में रखी HDFC की नींव
वह एक किस्सा याद करते हुए कहते हैं कि मंगलवार, नवंबर 8, 1994 को, जब मैं पुणे से अपने कार्यालय पहुंचा तो हसमुखभाई का फोन आया। धीमी आवाज़ में, उन्होंने पूछा: क्या आप आज मेरे साथ आकर दोपहर का भोजन करेंगे? वह कहते हैं कि उनके कोई संतान नहीं थी। उनकी भतीजी हर्षाबेन, जो एसएनडीटी में लाइब्रेरियन थी, घर में रहती थी और उनकी देखभाल करती थी। वह कहते थे (पारेख) शादी में खुश रहने के लिए प्यार होना ही काफी नहीं है। व्यक्ति को एक-दूसरे के साथ तालमेल बिठाना भी सीखना होगा। 68 साल की उम्र में जब ज्यादातर लोग रिटायर होने के बारे में सोचते हैं, जब वह सम्मान के साथ आईसीआईसीआई से इस्तीफा दे रहे थे। उन्होंने एक नई संस्था हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) शुरू की थी, यह देश का देश की ऐसी पहली संस्था थी जो पूरी तरह से हाउसिंग फाइनेंस पर समर्पित थी।
पूर्व प्रधानमंत्री लेते थे सलाह
एक्सिस बैंक में उपाध्यक्ष ने कहा कि एचडीएफसी को लॉन्च करने के लिए वह तत्कालीन वित्त सचिव डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने गए। डॉ. सिंह ने एक बार मुझसे कहा था कि यह (एचडीएफसी) एक अज्ञात साहसिक कार्य था (भारत में हाउसिंग फाइनेंस के लिए अपनी तरह का पहला)। कोई नहीं जानता था कि यह सफल होगा या नहीं। लेकिन उन्होंने विदेश से (फंड के लिए) वादे प्राप्त किए थे और वह थे उत्साही। भारतीय रिज़र्व बैंक बॉम्बे के गवर्नर के रूप में डॉ. सिंह ने कहा कि जब भी मुझे कोई संदेह हुआ, मैं उनके पास गया। वह हमेशा बहुत सकारात्मक थे, हमेशा आगे आते थे।
निजी जिंदगी में हमेशा रहा अकेलापन
पारेख ने भले ही प्रोफेशनल लाइफ जो कामियाबी हासिल की थी, लेकिन प्यार की जिदंगी में वे ज्यादा सफल नहीं हुए। उनकी कोई संतान नहीं थी, ऊपर बीच जिंदगी में पत्नी का साथ छोड़ गया, इससे उनकी निजी जिंदगी अकेलेपन में बीती। उनकी भांजी हर्षाबेन और उनके भांजे दीपक पारिख आखिरी पलों में उनके साथ रहे। 18 नवंबर, 1994 को पारिख ने दुनिया से अलविदा कह दिया। बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर में उनके अनोखे योगदान के लिए साल 1992 में भारत सरकार ने पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया।