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कोरोना काल और नौनिहालः शिक्षा का रुझान बढ़ा, असर की रिपोर्ट

पंद्रहवीं असर (एनअुल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) रिपोर्ट 2020-प्रथम चक्र जारी आज आन लाइन जारी हो गई। असर 2020 के निष्कर्ष में विभिन्न पहलुओं की जांच की गई। साथ ही कहा गया कि विद्यालयों में नामांकन में बदलावों का ठीक-ठीक आकलन तभी हो पाएगा जब विद्यालय फिर से खुलेंगे और बच्चे कक्षाओं में लौट पाने की स्थिति में होंगे।

Monika
Published on: 29 Oct 2020 1:02 PM GMT
कोरोना काल और नौनिहालः शिक्षा का रुझान बढ़ा, असर की रिपोर्ट
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कोरोना काल और नौनिहालः शिक्षा का रुझान बढ़ा, असर की रिपोर्ट

पंद्रहवीं असर (एनअुल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) रिपोर्ट 2020-प्रथम चक्र जारी आज आन लाइन जारी हो गई। असर 2020 के निष्कर्ष में विभिन्न पहलुओं की जांच की गई। साथ ही कहा गया कि विद्यालयों में नामांकन में बदलावों का ठीक-ठीक आकलन तभी हो पाएगा जब विद्यालय फिर से खुलेंगे और बच्चे कक्षाओं में लौट पाने की स्थिति में होंगे। देश में शिक्षा गुणवत्ता का वार्षिक आकलन करने वाली चर्चित असर 2020 रिपोर्ट (प्रथम चक्र) दुनिया भर के प्रतिभागियों के बीच बुधवार को ऑनलाइन जारी की गई। यह असर की 15वीं वार्षिक रिपोर्ट है।

नामांकन का रुझान हल्का सा बढ़ा

वर्ष 2018 की तुलना में असर 2020 के हमारे अंतरिम आकलन बताते हैं कि: अखिल भारतीय स्तर पर सरकारी विद्यालयों की ओर हल्का सा रुझान दिखता है असर 2018 के साथ असर 2020 (सितंबर 2020) के आंकड़ों की तुलना बताती है कि सभी कक्षाओं में और लड़के और लड़कियों दोनों में निजी से सरकारी विद्यालयों की ओर नामांकन का रुझान हल्का सा बढ़ा है।2020 में सरकारी विद्यालयों में लड़कों के नामांकन का प्रतिशत 64.4% पर आ गया जबकि 2018 में यह 62.8% था इसी तरह इसी अवधि में सरकारी विद्यालयों में लड़कियों के नामांकन का प्रतिशत 70% से बढ़कर 73% हो गया।

असर की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में 2020 में सरकारी विद्यालयों में लड़कों के नामांकन

जबकि उत्तर प्रदेश में 2020 में सरकारी विद्यालयों में लड़कों के नामांकन का प्रतिशत 51.9% पर आ गया जबकि 2018 में 41.8% था। इसी तरह की अवधि में सरकारी विद्यालयों में लड़कियों के नामांकन का प्रतिशत 48.4% से 57.2% हो गया। कई छोटे विद्यालयों कई छोटे का विद्यालयों में प्रवेश का आकलन अभी बाकी है। 2020 बताता है कि जहां सत्र 2020 में विद्यालयों में प्रवेश नहीं लेने वाले बच्चों का हिस्सा वर्ष 2018 की तुलना में ज्यादा है। ज्यादातर आयु वर्गों में यह अंतर बहुत कम है। विद्यालयों में नामांकित नहीं होने वाले बच्चों में अधिकतर कम उम्र और 7 वर्ष के दिखाई देते हैं। ऐसा संभवतः उनके विद्यालयों में प्रवेश नहीं हो पाने के कारण हुआ होगा। यह अनुपात खासतौर पर कर्नाटक यहां 6 से 7 वर्ष के 11.3% बच्चों का 2020 में नामांकन नहीं हुआ है। तेलंगाना 14% और राजस्थान 14.9%

पारिवारिक संसाधन

जबकि विद्यालय बंद है बच्चे सीखने के लिए मुख्यतः घर में उपलब्ध संसाधनों व मदद पर निर्भर हैं। इन संसाधनों में परिजन भी शामिल हैं, जो पढ़ाई में उनकी मदद करते हैं जैसे शिक्षित माता-पिता इसके अलावा टेक्नोलॉजी, टीवी, रेडियो या स्मार्टफोन या पाठ्य सामग्री जैसे मौजूद कक्षा की पाठ्य पुस्तकें आदि।

विद्यालयों में आने वाले बच्चों में बहुत थोड़े ही पहली पीढ़ी के विद्यालय यात्री हैं और औसतन चार में 3 से ज्यादा बच्चों के माता-पिता में कम से कम एक ने प्राथमिक कक्षा पांच स्तर या उससे ज्यादा शिक्षा पाई है। एक चौथाई से ज्यादा बच्चों के माता-पिता 10वीं या उससे ज्यादा पढ़े हैं। अखिल भारतीय स्तर पर नामांकित बच्चों में से 60% से ज्यादा ऐसे परिवारों में रहते हैं जिसमें कम से कम 1 स्मार्टफोन है। यह प्रतिशत पिछले 2 वर्षों में बहुत बढ़ा है जो नामांकित बच्चों के बीच 36.5% से बढ़कर 61.8% हो गया है।

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ASER

प्रतिशत में यह बढ़ोतरी सरकारी व निजी दोनों तरह के विद्यालयों में नामांकित बच्चों के घरों में एक जैसी है। बच्चों के बीच तुलना में यह बढ़ोतरी महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल और त्रिपुरा में दिखाई पड़ती है जो 30% से भी ज्यादा है, जबकि उत्तर प्रदेश में नामांकित बच्चों में से 53.7% से ज्यादा ऐसे परिवारों में रहते हैं जिसमें कम से कम 1 स्मार्टफोन है। यह पिछले 2 वर्षों में बढ़ा है जो नामांकित बच्चों के बीच 30.4% से बढ़कर 53.7% हो गया है। प्रतिशत बढ़ोतरी सरकारी व निजी दोनों तरह के विद्यालयों में नामांकित बच्चों के घरों में एक जैसी है

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अखिल भारतीय स्तर पर मार्च 2020 में स्कूल बंदी से पहले अथवा बाद में चाहे जब भी हासिल की हो 80% से ज्यादा बच्चों के पास उनकी वर्तमान कक्षा की पाठ्यपुस्तक में मौजूद हैं। यह प्रतिशत सरकारी विद्यालयों के बच्चों 84.1% में निजी विद्यालयों के बच्चों 72.2% से राज्यों के लिहाज से यह पिक्चर सिर्फ तीन राज्यों में 70% से नीचे दिखाई देता है। राजस्थान 60.4%, तेलंगाना 68.1% और आंध्रप्रदेश 34.6% जबकि उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत सरकारी विद्यालयों के बच्चों 83.5% में निजी विद्यालयों के बच्चों 74.9 से ज्यादा है।

5-16 वर्ष आयु वर्ग

वर्ष 2005 से 2014 असर के तहत भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों के स्तर और 5-16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की पढ़ने व बुनियादी गणित करने की क्षमता की प्रति वर्ष जांच की जाती है। लगातार दस वर्षों तक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद 2016 से असर हर दूसरे वर्ष (2016, 2018) इस तरह के‘बुनियादी’ सर्वेक्षण को सामने ला रहा है। इस सर्वेक्षण में बच्चों की शिक्षा व सीखने संबंधी विभिन्न पहलुओं पर नजर रखी जाती है।

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14-18 वर्ष आयु वर्ग

वर्ष 2017 में असर ने 14-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का ‘बुनियादी से आगे’ की क्षमताओं,अनुभवों और आकांक्षाओं को परखने का प्रयास किया। वर्ष 2019 में असर की ‘वार्षिक रिपोर्ट’ में 4-8 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की शुरुआती मुख्य भाषाई व गणितीय क्षमताओं तथा संज्ञानात्मक व सामाजिक-भावनात्मक संकेतकों का जायजा लिया गया।

कोविड-19 15 वर्षों से जारी इस यात्रा में बाधा बनकर खड़ा

वर्ष 2020 में कोविड-19 15 वर्षों से जारी इस यात्रा में बाधा बनकर खड़ा हो गया। लेकिन देशभर में बच्चों की शिक्षा व सीखने के अवसरों पर इस महामारी के प्रभावों को व्यवस्थित तरीके से समझने की ज़रूरत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी । हालांकि बच्चों की पढ़ाई में मदद के लिए भारी मात्रा में डिजिटल पाठ्य सामग्री तैयार व वितरित की जा रही थी, लेकिन इस बात के सीमित प्रमाण मिलि रहे थे कि कितने बच्चों तक यह सामग्र पहुंच पा रही है। क्या वे इसकी मदद से पढ़ पा रहे हैं? और उनकी भागीदारी व समझ में इसका कोई असर पड़ भी रहा है?

असर 2020 पहला फोन आधारित असर सर्वेक्षण है। देश में स्कूल बंदी के छः महीने बाद सितंबर 2020 में सम्पन्न यह सर्वेक्षण ग्रामीण भारत के बच्चों के लिए दूर शिक्षा की प्रक्रियाओं, पाठ्यसामग्री, गतिविधियों की व्यवस्थाओं व पहुंच की पड़ताल करता है। साथ ही उन तौर-तरीकों का भी जायजा लेता है जिसमें बच्चे और उनके परिवार अपने घर से दूर शिक्षा के इन संकल्पों तक पहुंच पा रहे हैं।

असर 2020 का दायरा 26 राज्योंव 4 केंद्र शासित प्रदेशों तक सीमित था। इसके माध्यम से 52,227 घरों व 5-16 वर्ष की आयु के 59,251 बच्यों के अलावा 8,963 सरकारी प्राथसिक विद्यालयों के अध्यापकों अथवा प्रधानाध्यापकों तक पहुंच बनी। यह सर्वेक्षण उत्तर प्रदेश के 5,912 घरों व 5-16 आयु के7,882 बच्चों के साथ हुआ|

राम कृष्ण वाजपेई

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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