×

स्कूल भेजने से पहले एक बार बच्चे की ये जांच जरूर कर लें वरना...

बच्चे शैक्षिक विकास के बिना औपचारिक स्कूली शिक्षा में आ जाते हैं। बच्चों की इस कमी के लिए बचपन की शिक्षा और स्कूलों की बच्चों की ओर ध्यान में कमी मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जब बच्चे पहले से ही स्कूल में कम जानकारी या ज्ञान के साथ स्कूल में प्रवेश कर जाते हैं तो वह कक्षा में पिछड़ना शुरू कर देते हैं, बाद में, उनके लिए और बच्चों के बराबर आना कठिन होता जाता है।

राम केवी
Published on: 15 Jan 2020 5:31 PM IST
स्कूल भेजने से पहले एक बार बच्चे की ये जांच जरूर कर लें वरना...
X

रामकृष्ण वाजपेयी

प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों में "सीखने का संकट" है और यह संकट उनके पहली कक्षा में प्रवेश करने के पहले से ही होता है। यानी बच्चे जब स्कूल में पढ़ने जाते हैं तो वह मानसिक रूप से स्कूली शिक्षा के लिए तैयार नहीं होते हैं और वह लगातार साथियों में, पढ़ाई और जानकारी के लेबल पर पिछड़ते चले जाते हैं। यह बात असर 2019 के सर्वे में उभरकर सामने आयी है।

सर्वे के मुताबिक बहुत से बच्चे 6 साल की उम्र से पहले औपचारिक स्कूली शिक्षा में प्रवेश कर जाते हैं, बहुत से बच्चे शैक्षिक विकास के बिना औपचारिक स्कूली शिक्षा में आ जाते हैं। बच्चों की इस कमी के लिए बचपन की शिक्षा और स्कूलों की बच्चों की ओर ध्यान में कमी मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जब बच्चे पहले से ही स्कूल में कम जानकारी या ज्ञान के साथ स्कूल में प्रवेश कर जाते हैं तो वह कक्षा में पिछड़ना शुरू कर देते हैं, बाद में, उनके लिए और बच्चों के बराबर आना कठिन होता जाता है।

यह जानकारी शिक्षा की वार्षिक स्थिति की रिपोर्ट एएसईआर 2019 में 26 जिलों में ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के शिक्षा के शुरुआती सालों की स्थिति के विश्लेषण का अध्ययन करने के उपरांत दी गई है। चूंकि इस आयु वर्ग के बच्चों पर कोई बड़े पैमाने पर कोई डेटा उपलब्ध नहीं था। इसलिए, एएसईआर 2019 चार से आठ आयु वर्ग के बच्चों पर केंद्रित किया गया। इस अध्ययन के जरिये स्कूली शिक्षा और सीखने के प्रमुख आयामों का पता लगाने के प्रयास किये गए ताकि बच्चों के भविष्य के रास्ते को तय किया जा सके।

इसे भी पढ़ें

इसलिए पिछड़ रहे बच्चे, कभी नहीं कर पाते साथियों की बराबरी

प्रारंभिक वर्षों का ASER क्यों?

आरटीई अधिनियम 2009 में कहा गया है कि बच्चों को 6 वर्ष की आयु में कक्षा एक में प्रवेश करना चाहिए, राज्यों की सिफारिश है कि 3-6 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करें। हालांकि, मौजूदा आंकड़े और अध्ययन बताते हैं कि जमीनी हकीकत इससे अलग है।

असर 2019 में बच्चों के प्रारंभिक वर्षों का अध्ययन किया गया। इसमें चार से आठ वर्ष के बच्चों को लिया गया। इसमें देखा गया कि छोटे बच्चे क्या कर रहे हैं? क्या वे प्री-स्कूल / स्कूल में नामांकित हैं? क्या वे स्कूल के लिए तैयार हैं? वे प्री-स्कूल और शैक्षणिक कार्यों का प्रदर्शन कैसे करते हैं?

इन चार बिंदुओं पर बच्चों के मूल्यांकन की जरूरत

संज्ञानात्मक: क्या बच्चे रंग के आधार पर छाँट सकते हैं? क्या उन्हें स्थानिक जागरूकता है? क्या वे पैटर्न को पहचान सकते हैं? क्या वे सुलझाने में सक्षम हैं।

प्रारंभिक भाषा: क्या बच्चों को पता है कि उन्हें क्या देखना है, चित्र? क्या वे एक कहानी को समझ सकते हैं जो उनके लिए पढ़ी जाती है? क्या वे सक्षम हैं? अक्षर, शब्द, पाठ पढ़ने के लिए? क्या वे सरल सवालों के जवाब दे सकते हैं

प्रारंभिक संख्या: क्या बच्चे वस्तुओं को गिन सकते हैं? क्या वे उनकी तुलना कर सकते हैं? क्या वे 1-अंकीय और 2-अंकीय संख्याओं को पहचान सकते हैं और उनकी तुलना करते हैं?

सामाजिक और भावनात्मक: क्या बच्चे भावनाओं को पहचान सकते हैं और उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं?

क्या वे संघर्ष की स्थिति को हल कर सकते हैं? क्या वे दूसरों के साथ सहानुभूति रखते हैं?

यदि इन बिंदुओं पर शुरू से काम किया जाए तो बच्चों को बेहतर स्कूलिंग के लिए तैयार कर अच्छे नतीजे पाए जा सकते हैं।



राम केवी

राम केवी

Next Story