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समाज के लिए प्रेरणा हैं ये दो महिलायें, मानसिक मंदित लोगों को करती हैं शिक्षित
ऐसे बच्चों को तलाशने में जुट गई जो इस बीमारी से पीडित था। आज वह सड़क पर रहने वाली मानसिक मंदित महिलाओं को कानूनी तौर पर अपने शेल्टर में लाती हैं। और उनमें सुधार करने का प्रयास करती हैं।
लखनऊ: आपने अक्सर देखा और सुना होगा कि मानसिक बीमारी से पीडित बच्चों को घरों में बांध कर रखा जाता है। उन्हें हमेशा दुत्कार मिलता है। और समाज भी इन्हें स्वीकार नहीं करता है। यूपी की राजधानी लखनऊ की दो मांयें ऐसे बचचों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। इनके जीवन में बेटी के जन्म के खुशियों के साथ ही एक ऐसी सूचना भी आई कि परिवार का हर शख्स दुखी था।
एक के बेटी की सोचने समझने सोचने की शक्ति कम थी तो दूसरी आर्टिज्म जैसी बीमारी से पीडित थी। जिगर के टुकड़े को समाज में बराबरी का दर्जा देने के लिए शहर की मांओं ने प्रयास शुरू किए। ये प्रयास सिर्फ उनके बच्चों तक सीमित नहीं रहेउन्हें ऐसे ही कई बच्चों के खयाल आये। और उन्होंने समाज के ऐसे बच्चों के लिए मां की भमिका निभाई।
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निरालानगर निवासी कुसुम कमल
निरालानगर निवासी कुसुम कमल ने वर्ष 2002 में बेटी वैष्णवी को जन्म दिया था लेकिन कुद दिनों बाद पता चला कि बच्ची का दिमाग विकसित नहीं हो पा रहा है। कुसुम बताती है कि वैष्णवी ऐसी हरकत करती थी कि लोग दुत्कार देते थे। बेटी की इस हरकत से हमें भी कभी कभी कुछ ऐसा सुनना पड़ता था कि आंख में आंसू आ जाते थे। ऐसे विशेष बच्चों को समाज के धारा से जोड़ने के लिए उन्होंने 2009 में दिल्ली मुंबई और मेरठ जाकर पढ़ाई किया। वर्ष 2012 में उन्होंने घर पर ही परवरिश नाम से एक स्कूल खोला। धीरे धीरे बच्चों ने आना शुरू किया। और उन्हें पढ़ाई के साथ रोजमर्रा के काम भी सिखाने लगी। आज वैष्णवी 12 साल की है। लेकिन उसमें नौ साल की बच्ची जैसा दिमाग है। अब इस समय उनके स्कूल में 85 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं।
इंदिरानगर के सेक्टर नौ निवासी शुभा सिंह
ऐसी ही कहानी इंदिरानगर के सेक्टर नौ निवासी शुभा सिंह की भी है। बेटी बोल नहीं पाती थी और वह खतरनाक बीमारी आर्टिज्म से पीडित थी। बेटी का ध्यान रखने के लिए शुभा ने अपने का ही घर में कैद कर लिया। ऐसे बच्चों को तलाशने में जुट गई जो इस बीमारी से पीडित था। आज वह सड़क पर रहने वाली मानसिक मंदित महिलाओं को कानूनी तौर पर अपने शेल्टर में लाती हैं। और उनमें सुधार करने का प्रयास करती हैं।
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