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देवानन्द की पुण्यतिथि पर विशेष: एक ऐसा अभिनेता जिसे फैशन फालो करता था
हिन्दी फिल्मी दुनिया में देवानन्द एक ऐसा नाम है जिसके नाम के बिना यहां का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता है। उन्होंने अभिनय के अलावा फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
श्रीधर अग्निहोत्री
मुम्बई: हिन्दी फिल्मी दुनिया में देवानन्द एक ऐसा नाम है जिसके नाम के बिना यहां का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता है। उन्होंने अभिनय के अलावा फिल्म निर्माण और निर्देशन के क्षेत्र में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। अपने पूरे जीवन में लोग उनकी फिटनेस और स्मार्टनेस की मिसाल देते रहे। हिंदी सिनेमा के सबसे सफल अभिनेताओं में से एक देव आनंद को बॉलीवुड में हमेशा याद किया जाएगा। उनकी बेहतरीन अदाकारी और लाजवाब स्टाइल के चर्चे सदियों तक होंगे। नौ साल पहले आज ही के दिन अचानक हार्टअटैक के कारण उनका निधन हो गया
एक सफल अभिनेता और निर्देशक
देवानन्द का असली नाम धर्मदेव आनंद था। उनका जन्म 26 सितम्बर 1923 को गुरदासपुर (जो अब नारोवाल जिला, पकिस्तान में है) में हुआ था। गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक प्राप्त देव आनंद के भाई, चेतन आनंद और विजय आनंद भी भारतीय सिनेमा में सफल निर्देशक थे। उनकी बहन शील कांता कपूर प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ है। भारतीय सरकार ने देव आनंद को भारतीय सिनेमा के योगदान के लिए 2001 में पद्म भूषण और 2002 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित किया।
उन दिनों देवानन्द काम की तलाश में थें। इसी सिलसिले में वह मुम्बई आए जहां उनकी भेंट अशोक कुमार से हो गयी। तो उन्होेंने उन्हें बॉम्बे टाकीज प्रोडक्शन की फिल्म जिद्दी में एक रोल दिला दिया। यह बात 1948 की है। अभिनेता के रूप में पहला ब्रेक 1946 में फिल्म “हम एक है ” से मिला जो फ्लॉप रही फिर वर्ष 1948 में जिद्दी उनकी पहली हिट साबित हुयी। इसके बाद देवानन्द ने अगले साल ही अपने भाईयों के साथ मिलकर कम्पनी बनाई। जिसमें उन्होने गुरूदत्त को फिल्म बाजी के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी। फिल्म सफल हुई और देवानन्द की पहचान बनना शुरू हो गयी। इसके बाद उन्होेंने कुछ भूमिकाए भी निभाई। जब राज कपूर की आवारा पर्दर्शित हुई, तभी देव आनंद की राही और आंधियां भी प्रदर्शित हुईं। इसके बाद आई टेक्सी ड्राईवर, जो हिट साबित हुई।
प्रेम कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं
देव साहब की जिंदगी के यूं तो सैकड़ों किस्से हैं लेकिन सुरैया से उनकी मोहब्बत और फिर इस प्यार का दर्दनाक अंत, किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। देव आनंद के लिए विद्या फिल्म इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस फिल्म में सुरैया पहली बार देव आनंद की नायिका बनीं और इसी के सेट पर दोनों के बीच प्यार हुआ था। दोनों ने तक कुल सात फिल्मों में काम किया और इस दौरान देव आनंद-सुरैया के प्यार की कहानियाँ नर्गिस-राजकपूर और दिलीप कुमार-मधुबाला के प्यार की तरह देशभर में फैल गईं। जो आज तक फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं और स्तंभों में बार-बार दोहराई जाती हैं। फिल्मी दुनिया में लोग आज भी देवानन्द की मिसाल देते हैं।
कहा जाता था कि देवानन्द फैशन को फालों नहीं करते थें फैषन उनका फालो करता था। उन्होंने अपने कॅरियर में ‘गाइड’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘बाजी’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘सीआइडी’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘अमीर गरीब’, ‘वारंट’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ और ‘देस परदेस’ जैसी सुपर हिट फिल्में दीं।
अपने 65 साल लंबे सिनेमाई करियर में की 114 फिल्मों में से 92 फिल्मों में लीड हीरो रहा। वही देव आनंद जिसे 10 साल तक भारत के सबसे महंगे सुपरस्टार होने देवानन्द ने निर्माता के तौर पर तीन लेखक के तौर पर दो तथा बतौर निर्देशक 17 फिल्में की।
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इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का किया था विरोध
देवानन्द ने इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का उस समय विरोध किया जब देश में कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। लेकिन देवानन्द ने इसका खुलकर विरोध किया। बाद में जब आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनावों की घोषणा हुई। तो उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में भी हिस्सा लिया। देवानन्द एक राजनीतिक दल का भी गठन किया पर बाद उनका राजनीति से मोह भंग हो या और उन्होंने अपनी नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया के नाम से एक राजनीतिक दल की भी स्थापना की।
वह मौत से नहीं डरते थें और कहा करते थें कि उनकी मौत पर कोई रोए नहीं। इसलिए जब उनका स्वास्थ्य बिगडा तो वह अपने आखिरी समय में देश से दूर ले गई। देवानंद नहीं चाहते थे कि भारत में उनके चाहने वाले उनका मरा मुंह देखें इसलिए उन्होंने जिंदगी के आखिरी पल लंदन में बिताने का फैसला किया।
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