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कैंसर: जज्बे की वो कहानियां, जो औरों में जगा रहीं जीने की चाह

राहुल बताते है, “मैं जब दस साल का था तब एक दिन मेरी तबियत ज्यादा खराब हो गई थी। घरवालों ने डाक्टरों को दिखाया तब पता चला कि मुझें हॉचकिन लिम्फोमा है। डाक्टरों की बात सुनकर तब घरवाले भी अचरज में पड़ गये। मैं भी हैरान था कि मुझें आखिर कैंसर कैसे हो सकता है?

Aditya Mishra
Published on: 2 March 2019 11:06 AM GMT
कैंसर: जज्बे की वो कहानियां, जो औरों में जगा रहीं जीने की चाह
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लखनऊ: कहते हैं जिद, जज्बा और जुनून हो तो जिंदगी की हर जंग जीती जा सकती है। ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों के बारें में बता रहे है। जिन्हें छोटी उम्र में ही कैंसर की बीमारी हो गई लेकिन उन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी। आज वह ठीक हो चुके है और दूसरों को प्रेरित करने का काम कर रहे है।

क्या दस साल के बच्चे को भी कैंसर हो सकता है?

राहुल बताते है, “मैं जब दस साल का था तब एक दिन मेरी तबियत ज्यादा खराब हो गई थी। घरवालों ने डाक्टरों को दिखाया तब पता चला कि मुझें हॉचकिन लिम्फोमा है। डाक्टरों की बात सुनकर तब घरवाले भी अचरज में पड़ गये। मैं भी हैरान था कि मुझें आखिर कैंसर कैसे हो सकता है।? घर की माली हालत भी ठीक नहीं थी। लेकिन उस वक्त मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने अपने आप को संभाला। मेरा काफी समय तक ट्रीटमेंट चला। आज मैं बिल्कुल स्वस्थ हूं और पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहा हूं”।

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लगा...यहां तो मेरे जैसे और भी है!

आकृति चौहान बताती है, “मुझें छोटी उम्र में ही कैंसर हो गया था। जब से होश संभाला तबसे यही सोचती रहती थी कि आखिर मुझें ही कैंसर क्यों हुआ। ये सवाल अक्सर मेरे मन में घूमता रहता था। कई बार अपने से ही इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश करती लेकिन जवाब नहीं मिल पाता। थोड़े देर बाद सब कुछ भूलकर फिर से अपने काम में जुट जाती।

इस बीच पैरेंट्स मुझें हौसला देते रहे। एक बार केजीएमयू में कैंसर पर आयोजित कार्यक्रम में बुलाया गया। वहां जाने पर देखा मेरे जैसे बहुत से बच्चे थे। उन्हें देखकर मुझें मेरे सवालों का जवाब मिल गया था।

मुझें अंदर से काफी हिम्मत मिली। तभी से मैंने कैंसर सर्वाइवर के लिए काम करने का निर्णय किया। मैं बतौर केयर को- कोर्डिनेटर किड्स संस्था से जुड़ गई। जो कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए काम करती है। मेरी कोशिश रहती है कि मैं कुछ भी करके कैंसर पीड़ित बच्चों में हौसला बनाएं रखूं”।

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लोगों ने उड़ाया मजाक

सुगंधा मूल रूप से बिहार की रहने वाली है। वह बताती है, “मुझें मीठा खाना शुरू से ही पसंद था। लेकिन जब मैं मीठा खाती तो पेट में गोला सा बन जाता था और काफी तेज दर्द भी होता था। ऐसे में एक बार घरवालों के मन में आया तो डाक्टरों को दिखाने के लिए मुझें लोहिया इंस्टीटयूट और फिर वहां से क्वीन मेरी हॉस्पिटल ले आये। यहां कुछ जांचे कराई गई। रिपोर्ट देखने के बाद पता चला कि जर्म सेल ट्यूमर है।

उस वक्त मुझें इसके बारें में ठीक से जानकारी नहीं थी। मेरा कीमो शुरू हुआ। मुझें गंजा कर दिया। मुझें इस तरह देखकर लोगों ने मेरा मजाक बनाना शुरू कर दिया। स्कूल में मेरे साथ भेदभाव शुरू हो गया। मैं लोगों के पास जाने में घबराने लगी। खुद को कमरे में बंद करके रोती थी। इस बीच मेरे परिवार ने मेरा हौसला बनाये रखा। मेरा इलाज जारी रहा। अब मैं एक दम स्वस्थ हूं और कैंसर पीड़ित बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हूं।

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इन बातों का रखें ध्यान

उल्टी के साथ सिर में तेज दर्द होता हो तो इसे नजरअंदाज न करे।

बुखार ठीक न हो रहा हो तो फौरन डाक्टर को दिखाए।

शरीर में किसी तरह की गांठ नजर आये तो फौरन डाक्टर से मिले।

इलाज पूरा होने के छह माह से एक साल बाद तक एहतियात बरते।

शराब तंबाकू के सेवन से बचे।

Aditya Mishra

Aditya Mishra

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