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कौन ज्यादा असरदार: नाक में स्प्रे वाली वैक्सीन या कोरोना की जीवनरक्षक दवाएं

शोधकर्ताओं का कहना है कि दोनों दवाएं बराबर असरदार हैं। और डेक्सामेथासोन के साथ दिए जाने पर और भी असरदार पाएं गईं हैं। इन दवाओं का ट्रायल ब्रिटेन समेत छह अलग-अलग देशों में आईसीयू के करीब 800 मरीज़ों पर हुआ था।

Roshni Khan
Published on: 10 Jan 2021 8:59 AM GMT
कौन ज्यादा असरदार: नाक में स्प्रे वाली वैक्सीन या कोरोना की जीवनरक्षक दवाएं
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कौन ज्यादा असरदार: नाक में स्प्रे वाली वैक्सीन या कोरोना की जीवनरक्षक दवाएं (PC: social media)

लखनऊ: कोरोना की वैक्सीन तो आ गयी है लेकिन साथ साथ कोरोना के इलाज की दवाएं भी जरूरी हैं और पुख्ता दवाओं की भी खोज लगातार जारी है। कोरोना के गंभीर संक्रमण से ग्रसित मरीजों के इलाज लिए दो और जीवन रक्षक दवायें मिल गई हैं। ये दवाएं हैं टोसीलिजुमैब और सरीलूमैब। ये दवाएं पहले से ही बाजार में उपलब्ध हैं। जानें बचाने के साथ ही यह दवा, इसके इस्तेमाल से मरीज़ जल्दी ठीक हो रहे हैं और गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों को एक हफ़्ते तक आईसीयू में रखने की ज़रूरत पड़ रही है।

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दोनों दवाएं बराबर असरदार हैं

शोधकर्ताओं का कहना है कि दोनों दवाएं बराबर असरदार हैं। और डेक्सामेथासोन के साथ दिए जाने पर और भी असरदार पाएं गईं हैं। इन दवाओं का ट्रायल ब्रिटेन समेत छह अलग-अलग देशों में आईसीयू के करीब 800 मरीज़ों पर हुआ था। किसी भी दवा की तरह इनके भी साइड इफ़ेक्ट हैं और मरीज़ों को अधिक मात्रा में दिए जाने पर फेफड़ों और अन्य अंगों को नुकसान हो सकता है।

डॉक्टरों को ये दवा उन सभी कोविड मरीज़ को देने की सलाह दी जा रही है, जो डेक्सामेथासोन देने बावजूद गंभीर हालत में हों और जिन्हें काफ़ी देखभाल की ज़रूरत हो। इसके साथ साथ अब नक् में स्प्रे के जरिये दी जाने वाली वैक्सीन का भी ट्रायल भारत में शुरू होने वाला है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक स्प्रे वाली वैक्सीन इंजेक्शन की तुलना में बहुत कारगर होगी।

कीड़े मारने की दवा

एक अन्य दवा भी काफी इस्तेमाल की जा रही है जिसका नाम है आइवरमैक्टिन। ये दवा शरीर में जुएँ जैसे पैरासाइट मारने के लिए दी जाती है। ब्रिटेन में ही हुए एक शोध के दौरान जिन 573 मरीजों को यह दवा आइवरमैक्टीसन दी गई, उनमें से केवल 8 लोगों की मौत हुई। वहीं 510 लोगों को यह दवा नहीं दी गई तो उनमें से 44 लोगों की मौत हो गई। इससे पहले अप्रैल में आए शोध में कहा गया था कि परजीवियों से बचाने वाली इस दवा ने कोरोना से जंग में काफी अच्छा रिजल्टआ दिया था।

corona corona (PC: social media)

मात्र एक खुराक से 48 घंटे के अंदर सभी वायरल आरएनए खत्मब हो गए थे। लेकिन इस दवा के बारे में अलग अलग मत भी हैं। कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि आइवरमैक्टिन को कोरोना की दवा के रूप में घोषित करने से पहले और ज्या दा शोध की जरूरत है। आलोचकों ने कहा कि इससे पहले भी मलेरिया की दवा और कुछ अन्या दवाओं को लेकर दावे किए गए थे लेकिन वे सभी गलत साबित हुईं। भारत में भी पहले ये दवा काफी चली थी लेकिन बाद में इलाज के प्रोटोकॉल से इसे हटा दिया गया।

नाक में स्प्रे वाली वैक्सीन

रिसर्च में पता चला है कि इंजेक्शन वाली वैक्सीन की तुलना में नाक में स्प्रे वाली वैक्सीन कहीं ज्यादा असरदार होती है। ऐसी वैक्सीन पर कई देशों में काम चल रहा है। अपने देश में भी भारत बायोटेक कंपनी जल्द ही नेज़ल स्प्रे वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने जा रही है। नागपुर में इस वैक्सीन के पहले और दूसरे फेज का ट्रायल किया जाएगा। भारत बायोटेक के डॉ। कृष्णा इल्ला के मुताबिक उनकी कंपनी ने वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के साथ करार किया है। इस नेज़ल वैक्सीन में दो की बजाय सिर्फ एक ही डोज देने की जरूरत होगी। भारत बायोटेक अभी भी दो नेज़ल वैक्सीन वैक्सीन पर काम कर रहा है और ये दोनों ही वैक्सीन अमेरिका की हैं।

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अभी तक जो भी वैक्सीन बाजार में आई हैं, उसमें इंजेक्शन द्वारा वैक्सीन लगाई जाती है। चूंकि नाक से ही सबसे अधिक वायरस फैलने का खतरा रहता है, ऐसे में नेज़ल स्प्रे वैक्सीन के कारगर होने की अधिक संभावना है। वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसन की रिसर्च के मुताबिक, अगर नाक के द्वारा वैक्सीन दी जाती है तो शरीर में इम्युन रिस्पॉन्स काफी बेहतर तरीके से तैयार होता है। ये नाक में किसी तरह के इंफेक्शन को आने से रोकता है, ताकि आगे शरीर में ना फैल पाए। भारत से पहले यूनाइटेड किंगडम में नेज़ल स्प्रे वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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