TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

शंभूनाथ डेः एक खोज ने ब्लू डेथ को बना दिया साधारण सी बीमारी, मरते थे लाखों

उस समय संसाधन भी कम थे हैजा से गांव के गांव वीरान होते चले गए। लोग मरते गए। इस बीमारी के बारे में खोज और अनुसंधान में लगभग सौ साल लग गए।

Roshni Khan
Published on: 31 Jan 2021 2:14 PM IST
शंभूनाथ डेः एक खोज ने ब्लू डेथ को बना दिया साधारण सी बीमारी, मरते थे लाखों
X
शंभूनाथ डेः एक खोज ने ब्लू डेथ को बना दिया साधारण सी बीमारी, मरते थे लाखों (PC: social media)

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: अगर हम बात करें 'ब्लू डेथ' की तो आज के दौर में शायद बहुत ही कम लोगों को पता हो कि इसे कॉलरा या आम भाषा में हैजा कहा जाता है। यह बीमारी आज से तकरीबन दो सौ साल पहले 1817 में फैली थी। जिस तरह चीन से आई बीमारी कोरोना से आज तक करीब 222 लाख लोगों की मौत हुई है। ठीक इसी तरह उस समय इस बीमारी से उस समय लगभग 180 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद भी कई साल तक इसका प्रकोप भारत और अन्य देशों को झेलना पड़ा था।

ये भी पढ़ें:ट्रेंडी टेस्ट रेस्टोरेंट: सिद्धार्थनगर में मूक बधिर लोगों को देगा रोजगार, पढ़ें पूरी खबर

हैजा से गांव के गांव वीरान होते चले गए

उस समय संसाधन भी कम थे हैजा से गांव के गांव वीरान होते चले गए। लोग मरते गए। इस बीमारी के बारे में खोज और अनुसंधान में लगभग सौ साल लग गए। 1884 में रॉबर्ट कॉख नामक वैज्ञानिक ने उस जीवाणु का पता लगाया जिसकी वजह से हैजा होता है। इसका नाम दिया वाइब्रियो कॉलेरी।

बीमारी का इलाज ढूंढा जाना बाकी था

अभी सिर्फ इसकी पहचान हुई थी। बीमारी का इलाज ढूंढा जाना बाकी था। और इलाज तब होता जब यह पता चलता कि ये जीवाणु शरीर में किस जगह जाकर एक्टिव हो रहा है। कौन सा कैमिकल छोड़ रहा है जो जहर बन जा रहा है। खोज होती रहीं। अनुसंधान जारी रहे और लगभग 75 साल बाद भारतीय वैज्ञानिक शंभूनाथ डे ने हैजे की सही वजह का पता लगाया और तब जाकर लाखों लोगों की जान बच सकी।

शंभूनाथ डे को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे

लेकिन इतनी अद्भुत खोज के बावजूद शंभूनाथ डे को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे। काम उन्होंने नोबल पुरस्कार प्राप्त करने का किया था लेकिन न तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला, न ही देश में उन्हें और उनके योगदान को सम्मान दिया गया। शंभूनाथ डे की जयंती की पूर्व संध्या पर आइये आप का परिचय इस नोबल पर्सन से कराते हैं। शंभूनाथ डे का जन्म 1 फरवरी 1915 को बंगाल के हुगली जिले में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी संसाधनों का अभाव था लेकिन उन्हें पढ़ने का शौक था।

उन्हें कोलकाता मेडिकल कॉलेज से स्कॉलरशिप मिल गई

बच्चे की मेधा को देखते हुए उनके एक रिश्तेदार ने उनकी पढ़ाई का खर्च उठाया बाद में उन्हें कोलकाता मेडिकल कॉलेज से स्कॉलरशिप मिल गई। साल 1939 में उन्होंने अपनी मेडिकल प्रैक्टिस भी शुरू की लेकिन उनकी रुचि अनुसंधान में थी। इसलिए साल 1947 में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के कैमरोन लैब में पीएचडी में दाखिला लिया।

यहां उन्होंने अपना सारा ध्यान सिर्फ रिसर्च में लगाया। मशहूर पैथोलोजिस्ट सर रॉय कैमरोन उनके मेंटर थे। शंभूनाथ डे दिल की बीमारी से संबंधित एक विषय पर शोध कर रहे थे।

हैजे से भारत में हो रही लोगों की मौतों से वह व्यथित हो उठे

लेकिन हैजे से भारत में हो रही लोगों की मौतों से वह व्यथित हो उठे। और हैजा के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया लेकिन प्राथमिकता वर्तमान शोध थी हालांकि उन्होंने इस बीमारी पर भी अनुसंधान करने की ठान ली। शोध कार्य पूरा कर 1949 में वह भारत लौटे यहां उन्हें कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी विभाग का निदेशक नियुक्त किया गया। बंगाल में इस समय हैजे का कहर टूटा हुआ था।

Cholera Cholera (PC: social media)

इस बीमारी पर रिसर्च में जुट जाते थे

डॉ. शंभूनाथ अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद इस बीमारी पर रिसर्च में जुट जाते थे। अस्पताल हैजे के मरीज़ों से भरे थे। इसी के साथ उनकी शोध आगे बढ़ रही थी। उन्हें पता था कि रॉबर्ट कॉख नामक वैज्ञानिक ने हैजे के कारण का पता लगाया था। रॉबर्ट कॉख की धारणा थी कि यह जीवाणु व्यक्ति के सर्कुलेटरी सिस्टम यानी कि खून में जाकर उसे प्रभावित करता है।

शंभूनाथ ने जब इस पर प्रयोग किया तो रॉबर्ट कॉख की अवधारणा गलत निकली। रॉबर्ट की अवधारणा के विपरीत यह जीवाणु व्यक्ति के किसी और अंग के ज़रिए शरीर में जहर फैला सकता था।

इंसान के शरीर में खून गाढ़ा होने लगता है और पानी की कमी होने लगती है

शंभूनाथ डे की यह बड़ी खोज थी उन्होंने यह भी पता लगाया कि वाइब्रियो कॉलेरी खून के रास्ते नहीं बल्कि छोटी आंत में जाकर एक टोक्सिन/जहरीला पदार्थ छोड़ता है। इसकी वजह से इंसान के शरीर में खून गाढ़ा होने लगता है और पानी की कमी होने लगती है। यह एक ऐतिहासिक शोध थी। 1953 में उन्होंने इस खोज का प्रकाशित किया। उनकी इस खोज के बाद ही हैजे का उपचार शुरू हुआ।

इजाद हैरॉल्ड हैरीसन ने 1940 के दशक के मध्य में ही कर लिया था

हैजे के उपचार में इस्तेमाल होने वाले ऑरल डिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) का इजाद हैरॉल्ड हैरीसन ने 1940 के दशक के मध्य में ही कर लिया था।

इसलिए ओआरएस घोल के जरिये जब इलाज शुरू हुआ तो चमत्कारिक परिणाम आए इस घोल को कोई भी घर पर बना सकता था।

शंभूनाथ डे ने 1959 में यह भी पता लगा लिया

शंभूनाथ डे ने 1959 में यह भी पता लगा लिया कि इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न टॉक्सिन का नाम एक्सोटोक्सिन है। वह इस पर और शोध करना चाहते थे लेकिन साधनों की कमी के चलते नहीं कर पाए। लेकिन जितना काम उन्होने कर दिया था उसके बाद तो क्रांति सी आ गई। बंगाल और अफ्रीका में मुंह के ज़रिए पर्याप्त मात्रा में पानी देकर हजारों मरीज़ों की जान बचाई गई।

ये भी पढ़ें:किसान आंदोलन को लेकर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बुलाई सर्वदलीय बैठक

1978 में डब्ल्यूएचओ ने हैजा उन्मूलन के लिए ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट्स (ओआरएस) को मान्यता दी। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा दस्त हों तो 75 से 125 मिली. ओआरएस घोल देना चाहिए। दो वर्ष से अधिक आयु के बच्चे को 125 से 250 मिली. घोल देना चाहिए। बच्चे को तीन बार से ज्यादा दस्त आए तो दो सप्ताह तक ओआरएस का घोल दे सकते हैं। इस तरह शंभूनाथ डे की खोज के चलते ब्लू डेथ जैसी महामारी एक सामान्य बीमारी बन गई।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।



\
Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story