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Mobile Phone Addiction: मोबाइल फोन नहीं बल्कि डिप्रेशन साथ लेकर घूम रहे लोग
Mobile Phone Addiction: पढ़ाई से लेकर रोज-मर्रा के काम तक अब तकनीक पर आधारित ऑनलाइन हो गए। इससे लोगों की न केवल सामाजिक दूरी हुई बल्कि अधिक मोबाइल फोन के इस्तेमाल से डिप्रेशन भी हो गया।
Mobile Phone Addiction: बच्चे हो या बड़े सबके हाथ में स्मार्टफोन एक से बढ़कर एक अपग्रेड सीरीज देखने को मिलेगी। यदि स्मार्टफोन थोड़ी देर के लिए हाथों से छूटा तो बेचैनी महसूस होने लगती है। स्क्रीन पर उंगलियों से खेलना अब लत बन गया है। डिप्रेशन की बड़ी वजहों में इंटरनेट भी शुमार हो गया है। मनो रोग विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बड़ों एवं बच्चों के जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि मनोरग विशेषज्ञों का कहना है। बताया कि समय व्यतीत करने के लिए इस समय लोगों के पास स्मार्टफोन, टीवी एवं इंटरनेट जैसे साधन मौजूद हैं। स्मार्टफोन एवं टीवी में इंटरनेट के जरिए गेमिंग, सर्चिंग और स्क्रीन इंटरटेनमेंट के लोग आदी होते जा रहे हैं। इससे उनके स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगा है। बच्चों ने जहां अपनी आभासी दुनिया बना ली तो वहीं बड़े भी अब सोशल मीडिया पर की गई पोस्टों पर मनचाहे लाइक पाने की चाहत रखने लगे हैं। मनमुताबिक लाइक न मिलना भी अवसाद व तनाव की एक वजह बनता जा रहा है। बीते दिनों ऐसा एक दो नहीं बल्कि मरीजों की भरमार है।
तब जरूरत पड़ती है SSRI की
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मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि इंटरनेट के व्यापक इस्तेमाल के कारण जब मानव मस्तिष्क डिप्रेशन की तरफ चला जाता है। तब चिकित्सक मरीजों को सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (SSRI) साल्ट दे सकते हैं। यह मस्तिष्क में रासायनिक मैसेन्जर सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाकर काम करता है। इसे एंटी डिप्रेसेंट कहा जाता है। मालूम हो कि दसवीं बारहवीं के छात्रों में भी ऐसी समस्याएं आ रही है।
जब व्यवहार में दिखे परिवर्तन
इंटरनेट के अधिक प्रयोग से बच्चों व बड़ों के व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। चिड़चिड़ाहट, भूख-प्यास में कमी के साथ धुंधला दिखने की समस्या भी पैदा होने लगती है। इतनी ही नहीं बल्कि आंखों पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। इसके चलते लोगों को गहरी नींद नहीं आती। विशेषज्ञों ने बताया कि बच्चे फोन के चलते अपने माता-पिता से दूर हो गए है। ऐसे में डिप्रेशन के साथ कई अन्य अप्रिय घटनाएं भी हो सकती हैं।
कैसे बचे इंटरनेट की लत से?
इस मनोरोग से बचने के लिए लोगों को परस्पर संवाद स्थापित करने के साथ खुद को इनडोर गतिविधियों में शामिल करना होगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि मनपंसद संगीत, पौधों की देखभाल और स्वयं को सकारात्मक विचारों के ईद गिर्द रखने से काफी मदद मिलती है। माता-पिता बच्चे के लिए खुद रोल मॉडल बनें। पढ़ाई के नाम पर फोन लेने वाले बच्चों पर नजर बनाए रखें।
वहीं, मनोरोग विशेषज्ञ डॉ गणेश शंकर का कहना है कि इंटरनेट अवसाद की वजह बनता जा रहा है। इसकी लत से लोग एकांतवास में जा रहे हैं। पोस्ट पर मनचाहे लाइक न मिलने से भी अवसाद व तनाव होने लगा है। लोगों को अपनी जीवनशैली बदलनी होगी।