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200 से ज्यादा हाइडल प्रोजेक्ट उत्तराखंड में, जल प्रलय का होगा असर

उत्तराखंड में 98 जलविद्युत परियोजनाएं कार्यरत हैं और 111 निर्माणरत। वर्तमान कार्यरत परियोजनाओं की कुल स्थापना क्षमता 3600 मेगावाट है।

Shivani Awasthi
Published on: 7 Feb 2021 5:28 PM GMT
200 से ज्यादा हाइडल प्रोजेक्ट उत्तराखंड में, जल प्रलय का होगा असर
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नीलमणि लाल

लखनऊ। पहाड़ों और नदियों से भरपूर उत्तराखंड में चीन का उदाहरण अपनाया जा रहा है, आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से। जिस तरह चीन ने पहाड़ी इलाकों में नदियों को जगह जगह बांध कर पावर प्रोजेक्ट बनाये हैं और सरप्लस बिजली पैदा की है। उसी तरह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई देशों में काम किया गया है।

उत्तराखंड में 98 जलविद्युत परियोजनाएं कार्यरत हैं और 111 निर्माणरत। वर्तमान कार्यरत परियोजनाओं की कुल स्थापना क्षमता 3600 मेगावाट है। 21,213 मेगावाट की 200 परियोजनाएं योजना में हैं। 2032 तक उत्तराखंड से 1,32,000 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। उत्तराखंड सरकार हमेशा यह कहती है कि ऊर्जा उत्पादन उसकी आय का बड़ा स्रोत है। वह ऊर्जा प्रदेश के रूप में भारत में आगे बनना चाहती है।

2013 की उत्तराखंड आपदा

वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में जलविद्युत प्रोजेक्ट्स को भारी नुकसान पहुंचा था। ऐसोचैम ने पहले चरण में साढ़े आठ हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान लगाया था। बाद में 30 हजार करोड़ के नुकसान की बात कही गई। विष्णुप्रयाग, श्रीनगर गढ़वाल, फाटा ब्योंग, सिंगोली भटवारी, धौलीगंगा और मनेरी भाली परियोजना में भारी नुकसान हुआ है।

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रन ऑफ रिवर परियोजना

रन ऑफ रिवर परियोजनाओं में कोई बांध नहीं बनते। वे पानी को नहीं रोकती। कहा जाता है कि इस वजह से वे नुकसानदेह नहीं होती। ऋषि गंगा प्रोजेक्ट भी इसी तरह का है। लेकिन एक्सपर्ट कहते हैं कि हकीकत में 25 मेगावाट से अधिक की प्रत्येक परियोजना में पानी रोका जाता है। बांध बनता है। रन ऑफ रिवर बांध इस दृष्टि से और खतरनाक हैं कि पानी को रोकने के बाद सुरंग में डाला जाता है। सुरंगें भी 35 - 40 फुट चौड़ी और 5 किमी से लेकर 30 किमी तक लम्बी। हिमाचल की एक परियोजना में यह लंबाई 50 किमी है।

कमजोर पहाड़ की वजह से भू-स्खलन

कहा जाता है कि उत्तराखंड में हॉर्न की तेज आवाज़ से ही कंकड़ हिल जाते हैं। बिजली प्रोजेक्ट में विस्फोट की वजह से भू-स्खलन होते हैं। इन सुरंगों की वजह से पहाड़ के भीतर से स्रोत के एकदम से बह निकलने के कारण फ्लश फ्लड होते हैं। सुरंगों को बनाने में डायनामाइट इस्तेमाल किया गया है।

जलविद्युत परियोजना निर्माण के दौरान निकले मलबे की व्यापकता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक औसत परियोजना में दो लाख ट्रक मलबा निकलता है। परियोजनाओं ने अपना मलबा नदी किनारे और नदी के भीतर डाला। इस मलबे के साथ आने के कारण बांध से निकली बाढ़ आफत ही लाती है।

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2013 में जे पी ग्रुप की विष्णु प्रयाग परियोजना में भी यही हुआ। इसकी वजह से लामबगड़ बाजार, गोविंदघाट आदि बह गये। मनेरी-भाली परियोजना में सुरक्षा दीवार नहीं बनने के कारण तबाही ज्यादा हुई।

उत्तराखंड की जल विद्युत परियोजनाएं

- मनेरी भाली परियोजना की योजना 1960 के दशक में बनाई गई थी वर्ष 1984 में इसके प्रथम चरण को प्रारम्भ किया गया था। यह उत्तरकाशी जिले में भगीरथी नदी पर है।

- टिहरी बांध का निर्माण 1978 में प्रारम्भ हुआ था,यह परियोजना भगीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर निर्मित है यह राज्य की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है। यह भूकम्प क्षेत्र के ज़ोन-5 में आता है। यहां रिक्टर स्केल पर 7.5 से भी अधिक तीव्रता से भूकम्प आ सकते है।

- पिथौरागढ़ जिले में धौलीगंगा नदी पर 280 मेगावाट की पनबिजली परियोजना वर्ष 2005 मे शुरू की गई थी। कुमाऊं क्षेत्र में भूमिगत पावर हाउस और सुरंगों वाली यह पहली परियोजना है।

- कोटेश्वर बांध परियोजना टिहरी जिले में भगीरथी नदी पर निर्मित है। वर्ष 2000 में इस परियोजना को अनुमति प्राप्त हुई और 27 मार्च 2011 को इसका पहला चरण प्रारम्भ किया गया। यह बांध 400 मेगावाट विद्युत उत्पादन की क्षमता रखता है।

- चमोली जिले में अलकनन्दा नदी पर 400 मेगावाट की विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना का निर्माण एक प्राइवेट कंपनी के माध्यम से किया गया ।

- राष्ट्रीय जल विद्युत निगम द्वारा पिथौरागढ़ में धारचूला से 26 किंमी दूर छिरकला गांव के निकट धौलीगंगा नदी पर 280 मेगावाट की धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना निर्मित की गई है। इसमें 70 मेगावाट क्षमता की चार फ्रांसीसी टरबाइनें लगाई गयी हैं।

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